(30 अप्रैल 2025 अक्षय तृतीया पर विशेष लेख ) सनातन धर्म के तीज त्योहारों में अक्षय तृतीया का महत्व है। अष्ट चिरंजीवियों में महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले महर्षि परशुरामजी का जन्म अक्षय तृतीया के दिन हुआ था। इसीलिए अक्षय तृतीया के शुभ अवसर पर श्री परशुराम जयन्ती मनाई जाती है। स्थान-स्थान पर चल समारोह का आयोजन किया जाता है। इसी दिन श्री परशुरामजी के जीवन से सम्बन्धित घटनाओं पर संस्मरणात्मक भाषण प्रसारित कर युवा पीढ़ी को महर्षि के विषय में अवगत करवाया जाता है। अक्षय तृतीया का दिन विशेष दान पुण्य का दिन है। इस दिन पितृ के निमित्त भी दान दिया जाता है- एष धर्म घटो दत्रो ब्रह्म विष्णु शिवात्मकरू। अस्य प्रदानात् तप्यन्त पितरोऽपि पितामहारू।। (धर्म सिन्धु) इस दिन खरबूजा, आम, पंखा, पानी से भरा कलश, शकर सत्तू, दक्षिणा सहित दान किया जाता है। ग्रीष्म ऋतु का प्रारम्भ हो जाने से दान दी गई इन समस्त वस्तुओं का विशेष महत्व हो जाता है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान का भी विशेष महत्व है। इस पवित्र अवसर पर अबूझ मुहूर्त रहता है। अतरू कई समाज द्वारा सामूहिक विवाह, गृह प्रवेश मुंडन, यज्ञोपवीत संस्कार का आयोजन किया जाता है। यह एक प्रशंसनीय पहल है क्योंकि विवाह समारोह में धन का अपव्यय होता है। प्रतिस्पर्धात्मक आयोजन होने से फिजूल खर्च होता है। आलीशान होटलें और विशाल गार्डन जहाँ इव्हेन्ट मेनेजमेंट द्वारा विवाह समारोहों का आयोजन किया जाता है में अपनत्व का अभाव परिलक्षित होता है। आगन्तुक अतिथि अपने-अपने कक्ष में स्मार्ट फोन पर चर्चा में व्यस्त दिखाई देते हैं। संगीत निशा तथा प्री-वेडिंग कार्यक्रम भी प्रतिस्पर्धात्मक होते जा रहे हैं। अपनी क्षमता से अधिक नृत्य करने से कई प्रतियोगियों की जीवनलीला समाप्त हो जाती है, कुछ घायल भी हो जाते हैं। बारात के चल समारोह में नृत्य करते हुए आगे बढ़ना भी अत्यधिक चलन में है, जिससे सड़कों पर यातायात बाधित होता है। यह एक विचारणीय प्रश्न है जिसका निराकरण समाज के प्रबुद्धजनों को आपसी चर्चा के माध्यम से करना चाहिए। इन समारोहों में न्यूनता लाकर इनसे बचने वाली धनराशि को हम नव विवाहित दम्पति को उपहार स्वरूप दे दें तो उन्हें भविष्य में आवश्यकता के समय वे इसका सदुपयोग कर सकेंगे। अक्षय तृतीया, वसन्त पंचमी, देवोत्थान एकादशी, देवशयनी एकादश्ीा आदि ऐसी तिथियाँ हैं, जिन पर सामूहिक विवाह तथा उपनयन संस्कार का आयोजन कर कन्यादान का पुण्य अर्जित किया जा सकता है और एक बड़ी धनराशि का सदुपयोग नवयुगलों के लिए किया जा सकता है। अक्षय तृतीया के दिन ही भगवान श्रीकृष्ण ने वनवास के समय द्रौपदी को अक्षय पात्र भेंट किया था जो उन्हें सर्वदा उपयोग में आता था। एक बार दुर्वासा ऋषि अपने शिष्यों के साथ पांडवों से भेंट करने आए। अतिथि सत्कार के पश्चात् युधिष्ठिरजी ने उन्हें भोजन के लिए आमंत्रित किया। द्रौपदी के लिये यह एक विपदा की घड़ी थी, क्योंकि अक्षय पात्र का भोजन समाप्त हो चुका था। उन्होंने श्रीकृष्ण से प्रार्थना की। तत्काल उन्हें चावल का एक कण अक्षय पात्र में दिखाई दिया। ऋषि दुर्वासा अपने शिष्यों के साथा नदी से स्नान कर वापस आए, तब तक सम्पूर्ण भोजन तैयार था। जब सभी ने अपनी क्षुधा पूर्ति की और आशीर्वाद देकर वहाँ से बिदा ली। पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार पवित्र नदी गंगाजी का स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरण अक्षय तृतीया के दिन ही हुआ था। भगवान श्रीकृष्ण के परम मित्र सुदामा भी अक्षय तृतीया के दिन ही द्वारिकापुरी में उनसे मिलने आए थे। श्रीकृष्ण ने उन्हें अक्षयदान दिया था जिसका सुदामाजी को ज्ञान नहीं था। कहा जाता है कि त्रेता युग का आरम्भ भी अक्षय तृतीया के दिन हुआ था। हमारे सनातन धर्म में इतना अधिक महत्व रखने वाली अक्षय तृतीया के बारे में मत्स्य पुराण कहता है- तृतीयां समभ्यर्च सोपवासो जनार्दनम्। राजसूयफलं प्राप्य गतिमभ्य्रा च विन्दन्ति।। (मत्स्य पुराण अ. ६५) (यह लेखिका के व्यक्तिगत विचार हैं इससे संपादक का सहमत होना अनिवार्य नहीं है) .../ 28 अप्रैल /2025