राष्ट्रीय
26-Apr-2025
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- दुनियां के सबसे बड़े समुद्री कछुओं की सुरक्षित पनाहगाह अंडमान-निकोबार नई दिल्ली (ईएमएस)। दुनिया के सबसे बड़े समुद्री कछुए लेदरबैक टर्टल्स की वैश्विक आबादी तेजी से घट रही है, और भारत के अंडमान और निकोबार द्वीप समूह अब इस संकटग्रस्त प्रजाति की आखिरी सुरक्षित पनाहगाह बन गए हैं। हर साल ये द्वीप 1,000 से अधिक लेदरबैक कछुओं के घोंसले बनाने का स्थल बनते हैं, जिससे यह इलाका उत्तरी हिंद महासागर में इस प्रजाति के लिए सबसे अहम प्रजनन क्षेत्र के रूप में उभर कर सामने आया है। दक्षिण फाउंडेशन और अंडमान वन विभाग की एक संयुक्त रिपोर्ट के मुताबिक, ग्रेट निकोबार और लिटिल निकोबार द्वीपों में सबसे ज्यादा घोंसले दर्ज किए गए हैं। कछुओं की यह अद्वितीय प्रजाति अब भारत की मुख्य भूमि से लुप्त हो चुकी है, और केवल इन द्वीपों में ही घोंसला बनाती पाई जाती है। हालांकि, इस शांत और जैव विविधता से समृद्ध क्षेत्र को अब 81,800 करोड़ रुपये की ग्रेट निकोबार विकास परियोजना से खतरा है। इस परियोजना में एक अंतरराष्ट्रीय कंटेनर टर्मिनल, हवाई अड्डा, बिजली संयंत्र और एक टाउनशिप का निर्माण प्रस्तावित है, जो कई संवेदनशील समुद्री और तटीय क्षेत्रों से होकर गुजरेगी जिनमें गैलाथिया खाड़ी जैसे कछुओं के प्रमुख घोंसले स्थल भी शामिल हैं। पर्यावरण विशेषज्ञों और संरक्षणवादियों ने चेतावनी दी है कि अगर ये परियोजनाएं बिना पर्यावरणीय संतुलन के लागू की गईं, तो इससे लेदरबैक कछुओं की बची-खुची आबादी पर विनाशकारी प्रभाव पड़ सकता है। बावजूद इसके, मई 2021 में पर्यावरण मंत्रालय की विशेषज्ञ समिति ने परियोजना को मंजूरी दे दी थी, जिससे इस मुद्दे पर बहस और तेज हो गई है। आईयूसीएन (अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ) पहले ही इस प्रजाति को कमजोर श्रेणी में सूचीबद्ध कर चुका है, जबकि प्रशांत क्षेत्र की कुछ आबादियां गंभीर रूप से संकटग्रस्त घोषित की गई हैं। मलेशिया जैसे देशों में लेदरबैक कछुओं के घोंसलों की संख्या 10,000 से घटकर अब सालाना सिर्फ 1-2 तक पहुंच चुकी है। संरक्षण विशेषज्ञों का कहना है कि यदि भारत ने इस मुद्दे पर तत्काल ध्यान नहीं दिया, तो लेदरबैक कछुए भारत से भी हमेशा के लिए गायब हो सकते हैं। ऐसे में जरूरत है कि विकास और संरक्षण के बीच संतुलन बनाया जाए ताकि जैव विविधता भी बचे और क्षेत्रीय विकास भी हो। हिदायत/ईएमएस 26 अप्रैल 2025