:: इन्दौर में गेहूं की किस्मों, तकनीकी विकास और ग्लूटन जागरूकता पर हुई गहन चर्चा :: :: वैल्यू एडिशन से विज़न 2030 तक : गेहूं उद्योग के लिए तैयार हुआ रणनीतिक रोडमैप :: :: भारत के गेहूं उद्योग को वैश्विक मंच पर ले जाने की रणनीतियों पर विशेषज्ञों ने की बात :: :: स्वास्थ्य, तकनीक और सस्टेनेबिलिटी पर केंद्रित रहा गेहूं कॉन्क्लेव 2025 का दूसरा दिन :: इन्दौर (ईएमएस)। खाद्य चिंताओं ने हाल के वर्षों में अनाजों को लेकर कई तरह के प्रश्न खड़े किए हैं, इस प्रश्नों से कई तरह की भ्रांतियाँ भी आम लोगों में फैली। इन सब भ्रांतियों की चर्चा करने के लिए और हल देने के लिए डबल्यूपीपीएस सीईओ कॉन्क्लेव 2025 का दूसरा दिन गेहूं उद्योग के व्यापक भविष्य, टेक्निकल इनोवशन और वैश्विक नेतृत्व की दिशा में ठोस विचारों और योजनाओं के साथ संपन्न हुआ। 24 और 25 अप्रैल 2025 इन्दौर में आयोजित इस कॉन्क्लेव के दूसरे दिन उद्योग जगत के प्रमुख विशेषज्ञों, नीति निर्माताओं और उद्यमियों ने ‘वैल्यू एडिशन और इनोवेशन’, जैसे विषयों पर गहन मंथन किया। डबल्यूपीपीएस के चेयरमेन अजय गोयल ने बताया कि दूसरे और आखिरी दिन की शुरुआत ‘कीमत बढ़ाना और नयापन’ विषय पर चर्चा के साथ हुई, जहां बेकिंग और ब्रेक्फास्ट प्रोडक्ट्स के क्षेत्र में उभरते ट्रेंड्स को केंद्र में रखा गया। वक्ताओं ने इस बात पर ज़ोर दिया कि उपभोक्ता आज अधिक स्वास्थ्य-केंद्रित, सुविधाजनक और भरोसेमंद विकल्प चाहता है, और गेहूं उद्योग को इन अपेक्षाओं के अनुरूप नवाचार करना होगा। तकनीक और इनोवेशन पर हुए सत्रों में बताया गया कि मिलिंग और बेकिंग को अधिक स्वचालित और ऊर्जा-कुशल बनाने की दिशा में काम ज़रूरी है। इसके लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, डेटा एनालिटिक्स और स्मार्ट फार्मिंग टूल्स के उपयोग पर जोर दिया गया, ताकि उत्पादन से लेकर उपभोग तक पूरी प्रक्रिया को आधुनिक और टिकाऊ बनाया जा सके। इस कॉन्क्लेव में महिला कृषकों ने भी अपने विचार रखें और इसकी सफलता में सक्रिय योगदान दिया। आज पूरे देश और दुनिया में महिला कृषक कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ रही है और इस कृषि क्षेत्र की उन्नति में अपनी महती भूमिका निभा रही है। एक अन्य अहम चर्चा का विषय था गेहूं का अर्थशास्त्र – जिसमें मांग, आपूर्ति, मूल्य नीति और बाजार की स्थिरता जैसे मुद्दों को उठाया गया। विशेषज्ञों ने यह माना कि किसानों को उचित मूल्य और उपभोक्ताओं को स्थिर दरों पर गुणवत्तापूर्ण उत्पाद उपलब्ध कराने के लिए एक सशक्त मूल्य निर्धारण तंत्र की आवश्यकता है। फोर्टिफाइड आटा के माध्यम से जन स्वास्थ्य में सुधार की दिशा पर भी चर्चा हुई। इसमें आयरन, फोलिक एसिड और विटामिन बी12 जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों को आटे में शामिल करने की जरूरत बताई गई। इसे ‘हर घर पोषण’ जैसे अभियानों से जोड़ने और सरकार तथा उद्योग के बीच सहयोग की संभावनाओं पर भी बात हुई। वैश्विक व्यापार और सहयोग के सत्र में भारत और अन्य देशों – विशेषकर अमेरिका – के साथ मिलकर अनुसंधान, गुणवत्ता मानकों और निर्यात में बढ़त के अवसरों पर रोशनी डाली गई। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गेहूं उत्पादों की प्रतिस्पर्धा को बढ़ाने के लिए रणनीतिक साझेदारी और समझौतों पर जोर दिया गया। कॉन्क्लेव में सस्टेनेबिलिटी और पर्यावरण पर केंद्रित विचार भी सामने आए, जिनमें जल संरक्षण, मृदा स्वास्थ्य और प्राकृतिक संसाधनों के संतुलन जैसे विषय शामिल थे। क्लाइमेट-स्मार्ट एग्रीकल्चर को गेहूं उत्पादन के भविष्य से जोड़ते हुए, पर्यावरण अनुकूल कृषि तकनीकों की आवश्यकता रेखांकित की गई। कॉन्क्लेव के दौरान गेहूं की विभिन्न किस्मों और ग्लूटन पर भी चर्चा हुई। गोयल ने जानकारी दी कि दुर्म, सॉफ्ट और हार्ड गेहूं के साथ-साथ व्हाइट और एंसिएंट व्हीट जैसी वैरायटीज़ को विस्तार से समझाया गया। दुर्म गेहूं को पास्ता और सूजी जैसे उत्पादों के लिए उपयुक्त माना गया, जबकि सॉफ्ट गेहूं बिस्कुट, केक और मफिन जैसी हल्की बेकिंग के लिए आदर्श है। हार्ड रेड स्प्रिंग और विंटर गेहूं को हमने रोटी, पराठा और ब्रेड जैसे उत्पादों के लिए सबसे प्रभावी पाया। इन किस्मों की विशेषताएँ—जैसे कि उनमें मौजूद प्रोटीन की मात्रा, ग्लूटन स्तर, बनावट और रंग - इन्हें अलग-अलग उपयोगों के लिए उपयुक्त बनाती हैं। व्हाइट और एंसिएंट व्हीट को आजकल हेल्दी लाइफस्टाइल के लिए पसंद किया जा रहा है, खासकर बच्चों और बुज़ुर्गों में इनकी स्वीकार्यता बढ़ रही है। ग्लूटन को लेकर भी जागरूकता बहुत ज़रूरी है। यह गेहूं में पाया जाने वाला एक प्रोटीन है जो आटे को लचीलापन और आकार देने में मदद करता है। हालांकि यह ज़्यादातर लोगों के लिए सुरक्षित है, लेकिन जिन लोगों को सीलिएक रोग, गेहूं एलर्जी या ग्लूटन सेंसिटिविटी की समस्या है, उनके लिए यह नुकसानदायक हो सकता है। ऐसे लोगों के लिए मक्का, बाजरा, रागी, कुट्टू और क्विनोआ जैसे अनाज बेहतरीन ग्लूटन-फ्री विकल्प हो सकते हैं। इनसे न सिर्फ पोषण मिलता है, बल्कि स्वाद भी समझौते के बिना बरकरार रहता है। दिन का समापन नीति और नेतृत्व पर आधारित एक संवाद के साथ हुआ, जहां नीति निर्माताओं और उद्योग प्रतिनिधियों के बीच प्रत्यक्ष बातचीत हुई। डबल्यूपीपीएस ने गेहूं उद्योग के लिए एक दीर्घकालिक रणनीतिक रोडमैप प्रस्तुत किया, जिसमें नीति समर्थन, निजी क्षेत्र की भागीदारी और सामूहिक प्रयासों के ज़रिए वास्तविक बदलाव लाने की दिशा तय की गई। चेयरमेन अजय गोयल ने समापन भाषण में कहा कि आज हमने केवल समस्याओं पर बात नहीं की, बल्कि उनके समाधान की ठोस दिशा तय की। इस मंच पर हुई चर्चाएं आने वाले वर्षों के लिए मार्गदर्शक बनेंगी और हमें विश्वास है कि भारत आने वाले समय में गेहूं आधारित नवाचार और वैश्विक नेतृत्व का केंद्र बन सकता है। एक महत्वपूर्ण सेशन में “विज़न 2030” के तहत भारत के गेहूं उद्योग का भविष्य प्रस्तुत किया गया। इसमें टिकाऊ खेती, स्मार्ट तकनीकों के इस्तेमाल और वैश्विक खाद्य सुरक्षा में भारत की भूमिका पर ध्यान केंद्रित किया गया। यह भी स्पष्ट किया गया कि भारत सिर्फ आत्मनिर्भर बनने की दिशा में नहीं, बल्कि वैश्विक गेहूं आपूर्ति श्रृंखला में एक नेतृत्वकारी भूमिका निभाने की क्षमता रखता है।” उमेश/पीएम/25 अप्रैल 2025