विश्व बौद्धिक सम्पदा दिवस- 26 अप्रैल 2025) रचनात्मकता, सृजनात्मकता और संरचनात्मकता मनुष्य की स्वाभाविक वृत्ति है, मानव की इन मौलिक विशेषताओं एवं उपलब्धियों को उचित सम्मान मिले, उचित प्रोत्साहन एवं पारिश्रमिक मिले, ऐसे नवाचार और रचनात्मकता को बढ़ावा देने के लिए ही हर साल 26 अप्रैल को विश्व बौद्धिक संपदा दिवस मनाया जाता है। इसका उद्देश्य बौद्धिक संपदा (आईपी) के बारे में जागरूकता बढ़ाना है और नवाचार तथा रचनात्मकता को प्रोत्साहित करने में आईपी की भूमिका को उजागर करना है। कृत्रिम बौद्धिकता के दौर में मानव की स्वतः स्फूर्त बौद्धिकता का संरक्षण, संवर्द्धन एवं प्रोत्साहन ज्यादा जरूरी है। 2025 की थीम ‘आईपी और संगीतः आईपी की धड़कन महसूस करें’ है। यह संगीत उद्योग में बौद्धिक संपदा (आईपी) की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर देता है, इस थीम का उद्देश्य आईपी के माध्यम से संगीत रचनाकारों की रचनाओं की रक्षा करना और उन्हें उनके काम के लिए उचित मान्यता दिलाना है। 26 अप्रैल को विश्व बौद्धिक संपदा दिवस के लिए इसलिए चुना गया क्योंकि इसी दिन 1970 में विश्व बौद्धिक संपदा संगठन की स्थापना करने वाला कन्वेंशन लागू हुआ था। यह दिन बौद्धिक संपदा अधिकारों जैसे पेटेंट, कॉपीराइट, ट्रेडमार्क आदि के महत्व को उजागर करता है, जो नवाचार और रचनात्मकता को बढ़ावा देने में मदद करते हैं। बौद्धिक संपदा दिमाग की रचनाओं से संबंधित है, जैसे आविष्कार, साहित्यिक सृजन, संगीत, कला और कलात्मक कार्य, डिजाइन और व्यापार में उपयोग किए जाने वाले प्रतीक, नाम और चित्र आदि। ऐसे रचनात्मक काम जो पहले नहीं किया गया हो, ये हमारी बौद्धिक संपदा है। इस रचनात्मक सम्पदा का कोई दूसरा अनाधिकृत उपयोग नहीं सके, इसके लिए हमें अपनी बौद्धिक संपदा को सुरक्षित एवं संरक्षित करवाना चाहिए। इसी उद्देश्य से यह दिवस बौद्धिक संपदा संरक्षण के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देता है, दुनियाभर में बौद्धिक संपदा संरक्षण के प्रभाव को विस्तार देता है, देशों से बौद्धिक संपदा संरक्षण कानूनों और विनियमों को प्रचारित और लोकप्रिय बनाने का आग्रह करता है, बौद्धिक संपदा अधिकारों के बारे में सार्वजनिक कानूनी जागरूकता बढ़ाता है। इसके साथ ही इसका बड़ा उद्देश्य है विभिन्न देशों में आविष्कार-नवाचार गतिविधियों को प्रोत्साहित करना और बौद्धिक संपदा क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय आदान-प्रदान को मजबूत करना है। भारत भी विश्व बौद्धिक संपदा संगठन का सदस्य है। इस संगठन की स्थापना 14 जुलाई 1967 को हुई थी, जिसका मुख्यालय जिनेवा, स्विट्जरलैंड में है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) के उद्भव एवं प्रचलन का बौद्धिक संपदा (आईपी) ढांचे पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है, जो एक बड़ी चुनौती है। हमें एआई जैसे नवाचार प्रोत्साहनों के उभरते परिदृश्य और मौजूदा आईपी ढांचे के लिए इसके द्वारा उत्पन्न चुनौतियों पर मंथन करना होगा। पेटेंट योग्यता दुविधाओं से लेकर कॉपीराइट पहेली तक, हम पाते हैं कि तेजी से तकनीकी प्रगति के बीच नवाचार को बढ़ावा देने और सामाजिक हितों की रक्षा करने के बीच एक नाजुक संतुलन है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता प्रौद्योगिकी और इंटरनेट के साथ हमारे संपर्क के तरीके में क्रांतिकारी बदलाव ला रही है। जैसे-जैसे एआई अभूतपूर्व गति से आगे बढ़ रहा है, इसका बौद्धिक संपदा के संरक्षण पर चुनौतीपूर्ण गहरा प्रभाव पड़ रहा है। चैटजीपीटी जैसे एआई चैट बॉट अविश्वसनीय रूप से परिष्कृत मानव-जैसे लिखित उत्तर दे सकते हैं, क्योंकि भाषा मॉडल की प्रश्नों और कार्यों को समझने और उन टेक्स्ट और डेटा के आधार पर प्रतिक्रियाएं देने की क्षमता है, जिन पर इसे प्रशिक्षित किया गया है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता अन्य क्षेत्रों में भी भी जैसे कला, लेखन, युद्ध, व्यापार, प्रबंधन, संगीत, फिल्म-निर्माण आदि में भी दखल बढ़ रहा है। एआई सार्वजनिक क्षेत्र में पहले से कहीं ज्यादा है और व्यवसाय में इसकी भूमिका दिनोंदिन बढ़ रही है। इसी के साथ बौद्धिक सम्पदा के सम्मुख सोशल मीडिया भी एक बड़ी चुनौती है। क्योंकि सोशल मीडिया के दौर में हर कोई दूसरों की रचनात्मकता एवं मौलिक सृजन को अपना बता कर पेश कर रहा है। इसलिए हर व्यक्ति को अपनी बौद्धिक संपदा के लिए जागरूक होना होगा। प्रत्येक व्यक्ति में कुछ अलग और रचनात्मक एवं मौलिक काम करने की क्षमता होती है। हम अपनी बौद्धिक संपदा को पांच तरीके से संरक्षित कर सकते हैं। इसमें पहला है कॉपीराइट, दूसरा पेटेंट, तीसरा ट्रेडमार्क, चौथा है औद्योगिक डिजाइन और पांचवा है भौगोलिक संकेतक। अगर आप कुछ लिखते हैं, जो आपका मौलिक लेखन है तो आप कॉपीराइट करा सकते हैं। इसके बाद व्यापार के क्षेत्र में होता है ट्रेडमार्क, जो आपका सिंबल होता है, जो किसी संस्था, कंपनी की पहचान के लिए होता है, उसे अगर ट्रेडमार्क करवा सकते हैं तो कोई दूसरा उस सिंबल का उपयोग नहीं कर सकेगा। अगर आपने कोई आविष्कार किया है तो उसे पेटेंट करा कर सुरक्षित रख सकते हैं। इसके बाद आता है औद्योगिक डिजाइन और भौगोलिक संकेतक। इस वर्ष की थीम संगीत पर केन्द्रित है। संगीत ने हमेशा लोगों को जोड़ने, बदलाव को प्रेरित करने और सांस्कृतिक विकास को आगे बढ़ाने में एक अनूठी भूमिका निभाई है। यह विषय इस बात पर प्रकाश डालता है कि कैसे आईपी अधिकार संगीतकारों और अन्य संगीत रचनाकारों की रचनाओं की रक्षा करते हैं। विश्व बौद्धिक संपदा दिवस डब्ल्यूआईपीओ का सबसे बड़ा बौद्धिक संपदा (आईपी) सार्वजनिक जनजागृति अभियान है। कॉपीराइट और अन्य बौद्धिक संपदा अधिकार संगीत उद्योग की प्रभावी मदद करते हैं। वे सुनिश्चित करते हैं कि संगीत रचनाकारों को उनके काम का श्रेय और भुगतान मिले। यह दिन यह भी दिखाएगा कि इन अधिकारों की मदद से संगीत को बेहतर बनाने में रचनात्मकता और नए विचार कितने महत्वपूर्ण हैं। आधुनिक समय में संगीत बौद्धिक एवं आर्थिक सम्पदा का बड़ा माध्यम है। आज की आपाधापी, तनाव एवं अवसादपूर्ण जीवन में संगीत ही एक ऐसा माध्यम है जो शांति, सुकून एवं आनन्द प्रदत्त कर सकता है। संगीत सुनने से इंसान को अलौकितता का अहसास होता है। डॉक्टर भी संगीत को सेहत के लिए फायदेमंद मानते हैं। संगीत को लेकर हुए अध्ययनों में पता चला है कि संगीत शरीर में बदलाव लाता है, जो स्वास्थ्य में सुधार एवं शांति स्थापित करता है। इसके अलावा जो मरीज अवसाद और निराशा के शिकार होते हैं, उन्हें इससे बाहर निकालने के लिए संगीत थेरेपी दी जाती है। संगीत मन और शरीर दोनों को ही आराम पहुंचाता है। संगीत अमूर्त कला है पर उसमें निहित शांति, सौन्दर्य एवं संतुलन की अनुभूति विरल है। संगीत अशांति के अंधेरों में शांति का उजाला है। यह अंतर्मन की संवेदनाओं में स्वरों का ओज है। इसीलिये संगीत एक बड़ी बौद्धिक सम्पदा है। शादी में ढोलक-शहनाई, भजन-मंडली में ढोल-मंजीरा, शास्त्रीय संगीत में तानपूरा, तबला, सरोद, सारंगी का हम सब भरपूर आनंद उठाते हैं। बचपन में संपेरों द्वारा बीन बजाते ही लहराते हुए सांप का खेल भी हमने खूब देखा है। इन संगीत प्रस्तुतियों से जुड़े कलाकार एवं संगीतकारों के लिये यह उनकी बौद्धिक सम्पदा है। यह दिन इन बौद्धिक संपदा से जुड़े अधिकारों के संरक्षण के महत्व को रेखांकित करता है, जो रचनाकारों और आविष्कारकों को उनके काम के लिए पुरस्कृत करने में मदद करता है एवं उनके उचित पारिश्रमिक को सुनिश्चित करता है। वैश्विक स्तर पर, युवा लोग नवाचार की चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, अपनी ऊर्जा और सरलता, अपनी जिज्ञासा और सरलता का उपयोग करके बेहतर भविष्य का मार्गदर्शन कर रहे हैं। नये विश्व के निर्माण में बौद्धिक सम्पदा की प्रभावी भूमिका है। तकनीकी विकास एवं आर्थिक प्रतिस्पर्धा के दौर में बौद्धिक सम्पदाओं को संरक्षित करते हुए बौद्धिक सम्पदाओं के रचनाकारों एवं मौलिक सृजनकर्ता के अधिकारों की रक्षा करना ही इस दिवस का ध्येय है और इसी में इस दिवस की सार्थकता है। (लेखक, पत्रकार, स्तंभकार) (यह लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं इससे संपादक का सहमत होना अनिवार्य नहीं है) .../ 25 अप्रैल /2025