मुंबई (ईएमएस)। साल 2015 में आई छोटी सी फिल्म निल बटे सन्नाटा ने बिना बड़े सितारों या भारी प्रमोशन्स के वो कर दिखाया, जो बड़ी-बड़ी फिल्मों के लिए भी मुश्किल होता है। प्रोडक्शन हाउस ‘कलर यलो प्रोडक्शन्स’ के तहत बनी इस फिल्म ने यह संदेश दिया कि एक अच्छी कहानी के लिए जरूरी नहीं कि नामी चेहरे हों, बस सच्ची भावनाएं और मेहनत से रचा गया सपना होना चाहिए। फिल्म एक सिंगल मदर की कहानी कहती है, जो घरेलू सहायिका होने के बावजूद अपनी बेटी के लिए ऊँचे सपने देखती है। इस किरदार को स्वरा भास्कर ने बेहद संजीदगी से निभाया। उनकी परफॉर्मेंस ने दर्शकों को न सिर्फ भावुक किया, बल्कि सोचने पर भी मजबूर कर दिया कि समाज में किस तरह सपनों को वर्ग, उम्र या हैसियत के आधार पर सीमित कर दिया जाता है। निल बटे सन्नाटा की सबसे बड़ी खूबी यही थी कि उसने उम्मीद और हौसले की बात की, और दिखाया कि अगर इरादा पक्का हो, तो कोई भी बाधा मायने नहीं रखती। यह फिल्म उस पुरानी सोच को तोड़ती है कि एक सफल फिल्म में पुरुष लीड जरूरी होता है। इस फिल्म में कैमरे के दोनों ओर महिलाएं थीं सामने स्वरा भास्कर, और निर्देशन की कमान थामे अश्विनी अय्यर तिवारी, जिनके लिए यह पहली फिल्म थी। उन्होंने एक ऐसी कहानी कही जो हर उम्र, हर वर्ग और हर जेंडर को छू गई। नौ साल बीत जाने के बाद भी निल बटे सन्नाटा उतनी ही प्रासंगिक, ताज़ा और प्रेरणादायक लगती है। यह सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि एक दृष्टिकोण है एक भरोसा कि परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन हों, अगर उम्मीद थामे रखी जाए, तो ज़िंदगी बदली जा सकती है। यह फिल्म उन गिनी-चुनी कहानियों में से एक है जो आपको मुस्कुराना सिखाती है, और यह यकीन दिलाती है कि जहां भी हों, आप आगे बढ़ सकते हैं। सपनों की कोई एक्सपायरी डेट नहीं होती, और यही बात निर्देशक आनंद एल राय और फिल्म निल बटे सन्नाटा ने साबित कर दी। सुदामा/ईएमएस 25 अप्रैल 2025