- आतंक के खिलाफ खड़े हुए मुसलमान कभी पृथ्वी का स्वर्ग कहे जाने वाले कश्मीर की खूबसूरत वादियां एक बार फिर दहल गईं। हालांकि, ये कोई पहला मौका नहीं था जब आतंकियों ने निर्दोष लोगों की जान ली हो लेकिन जिस तरह से मजहब पूछ कर गोली मारी गई उससे साफ है कि पाकिस्तान, भारत में सामाजिक सदभाव बिगाड़ना चाहता है। हालांकि वो अपने इस मकसद में कभी कामयाब नहीं होगा। इस घटना के बाद कश्मीर की मस्जिदों से आतंक के खिलाफ आवाज बुलंद हुई। जगह-जगह मुसलमानों ने कैंडल मार्च निकालकर अपना गम जाहिर किया और चरमपंथियों की इस कायराना हरकत पर अपना गुस्सा जाहिर किया, उसने ये जता दिया कि भारत के मुसलमान आंतक के साथ नहीं है। कश्मीर के खूबसूरत और लोकप्रिय पर्यटक स्थलों में से एक पहलगाम में हुए आतंकी हमले में 28 लोगों को जान गंवानी पड़ी। जिस तरह से पर्यटकों को निशाना बनाया गया उससे जाहिर है कि आंतकी चाहते हैं माहौल बिगड़े और सैलानियों में खौफ पैदा हो। यहां ये भी बताना लाजमी होगा कि पिछले कुछ वर्षों में कश्मीर में सैलानियों की तादाद लगातार बढ़ रही थी। यहां साल भर में कोई दो करोड़ से ज्यादा पर्यटक पहुंच रहे थे। पर्यटकों की बढ़ती तादाद से ये जाहिर हो गया था कि घाटी में हालात सामान्य हो रहे हैं। लेकिन इस घटना ने कश्मीर के पर्यटन उद्योग को भी क्षति पहुंचाईं ही है साथ ही यहां के खुफिया तंत्र की खामियां भी सामने ला दीं हैं। इससे पहले भी आंतकवादी हमले करते रहे हैं। कभी तीर्थयात्रियों की बस पर हमला किया तो कभी जवानों के वाहन पर। एक सुरंग निर्माण स्थल के करीब उन्होंने गोलीबारी करके छह प्रवासी श्रमिकों और एक चिकित्सक की हत्या कर दी थी। इससे भी चिंताजनक बात यह है कि आतंकियों ने अपने पारंपरिक दायरे का विस्तार घाटी से जम्मू तक कर लिया। पिछले चार सालों में ढाई दर्जन से ज्यादा हमले हो चुके हैं इनमें कई नागरिकों की मौत हुई। हालिया घटना के पीछे कई वजह सामने आ रही है। अव्वल तो कनाडाई-अमेरिकी तहव्वुर राणा के प्रत्यर्पण से जोड़कर देखा जा रहा है। अमेरिका द्वारा उसे भारत को सौंपे जाने से पाकिस्तान बौखलाया हुआ है। इसके अलावा अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस की भारत यात्रा पर आए थे और ठीक ऐसे ही वक्त आंतकियों ने हमला किया। ये माना जा रहा है कि पाकिस्तान इंटरनेशनल लेबल पर कश्मीर को मुददा बनाए रखना चाहता है। इस हमले की साजिश रचने वाले चाहते थे कि कश्मीर को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ध्यान आकर्षित किया जाए। इसीलिए हमला तब किया गया, जब अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस भारत के दौरे पर थे और पीएम मोदी सऊदी अरब के दौरे पर थे। ये पहली बार नहीं है जब अमेरिकी नेताओं के भारत दौरे के समय कश्मीर में चरमपंथी हमला हुआ है। 20 मार्च 2000 को चरमपंथियों ने अनंतनाग के छत्तीसिंहपोरा में हमला कर 36 सिख ग्रामीणों को मार डाला था। तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के भारत दौरे के एक दिन पहले ये हमला हुआ था। तब भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने हमले की कड़ी निंदा करते हुए इसके लिए सीधे तौर पर पाकिस्तान को दोषी ठहराया था। दो साल बाद 14 मई 2002 को अमेरिकी सहायक विदेश मंत्री क्रिस्टिना रोका के भारत दौरे के समय चरमपंथियों ने फिर हमला किया। इस बार उन्होंने पहले कश्मीर के कालूचक में यात्रियों से भरी बस पर हमला किया और फिर आर्मी फैमिली क्वार्टरों को निशाना बनाया। इस हमले में 23 लोग मारे गए थे और 34 लोग घायल हो गए थे। मृतकों में दस बच्चे भी शामिल थे। चरमपंथी हमलों का मकसद कश्मीर मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान खींचना और यहां के पर्यटन उद्योग को कमजोर करना है। इसके अलावा पाकिस्तान के सेना प्रमुख ने कुछ ही दिन पहले कहा था कि कश्मीर उनके देश की ‘गर्दन की नस’ है। खुफिया एजेंसियों ने उनके बयान को आसन्न आतंकवादी हमले का संकेत माना। आतंकियों ने लोगों की धार्मिक पहचान की जांच करने के बाद उन पर हमला किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सऊदी अरब के दो दिवसीय दौरे पर जेद्दा पहुँचे थे। पाकिस्तान को मोदी का ये दौरा भी कहीं ना कहीं खल रहा था। इस हमले के बाद पीएम मोदी ने सऊदी अरब का दौरा संक्षिप्त कर दिया और बीच में ही स्वदेश लौट आए। पीएम मोदी का दौरा छोटा होने के बावजूद चार अहम समझौतों पर हस्ताक्षर हुए हैं। ये समझौते स्पेस और हेल्थ के क्षेत्र में हुए हैं और साथ में ही दोनों देशों के बीच इंडिया-मिडल ईस्ट-यूरोप इकनॉमिक कॉरिडोर पर भी सहमति बनी है। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के पीछे सरकार का मकसद यही था कि देश का कोई भी नागरिक दूसरे राज्यों की तरह कश्मीर में भी बिजनेस कर सके। लेकिन चरमपंथियों और चमरपंथी सोच की वजह से ऐसा अभी तक नहीं हो सका। पीएम पैकेज के जरिए नौकरी पर भेजे गए कश्मीर के मूल निवासी हिंदुओं की हत्या होने की वजह से कर्मचारियों में भी खौफ है। कुल मिलाकर, कश्मीर केवल राजनीतिक समस्या नहीं है और ना ही इसे सेना के जरिए काबू पाया जा सकता है। कश्मीर में अमनो-चैन तभी आ सकता है जब जिहादी चरमपंथ से छुटकारा मिलेगा। पुलवामा हमले और बालाकोट में हमले के बाद भारत ने जवाबी कार्रवाई की थी इसके बाद से पाकिस्तान की हिम्मत नहीं थी लेकिन अचानक से इतना दुस्साहस करना पाकिस्तान को भारी पड़ेगा। बहरहाल, इस घटना के बाद हिंदुस्तानियों के सामने भी ये चुनौती है कि वो चरमपंथियों के नापाक मंसूबों को समझे और सामाजिक सदभाव बनाए रखें। मोदी सरकार ने आंतक को शह देने वाले पाकिस्तान के खिलाफ दूतावास बंद करने, वीजा रद्द करने, सिंधु जल संधि रद्द करने सहित कुछेक और भी फैसले लेकर नकेल तो कस दी है। इधर, इस हादसे के बाद जिस तरह से भारत के मुसलमानों ने आतंकियों के खिलाफ विरोध जताया, अपना गम और गुस्सा जाहिर किया उससे पाकिस्तान को मिर्ची तो जरूर लगी होगी। (अधिवक्ता एवं लेखक- भोपाल, मप्र ) ईएमएस / 25 अप्रैल 25