-पीएम शहबाज ने बुलाई राष्ट्रीय सुरक्षा समिति की आपात बैठक, लग रहीं अटकलें इस्लामाबाद,(ईएमएस)। पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच कूटनीतिक तनाव फिर चरम पर पहुंच गया है। भारत ने सिंधु जल समझौते को निलंबित करने, पाकिस्तानी नागरिकों के लिए वीजा छूट योजना रद्द करने और दिल्ली स्थित पाक उच्चायोग के सैन्य सलाहकारों को निष्कासित करने जैसे सख्त कदमों के बाद अब पाकिस्तान की तरफ से शिमला समझौता रद्द करने की अटकलें लगाई जा रही हैं। मीडिया के मुताबिक प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने गुरुवार को राष्ट्रीय सुरक्षा समिति की आपात बैठक बुलाई, जिसमें इस ऐतिहासिक समझौते से हटने पर विचार किया जा सकता है। पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक डार और रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने भारत के कदमों को एकतरफा और उकसावेपूर्ण करार देते हुए इसका जवाब देने की बात कही है। 1971 के युद्ध के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच शांति स्थापना के लिए 1972 में शिमला समझौता हुआ था। इसका उद्देश्य दोनों देशों के बीच विवादों को केवल द्विपक्षीय वार्ता के जरिए से सुलझाना था। इस समझौते ने नियंत्रण रेखा (एलओसी) की अवधारणा को मान्यता दी और अंतरराष्ट्रीय मंचों से कश्मीर मुद्दे को हटाकर भारत को रणनीतिक बढ़त दी। यदि पाकिस्तान इस समझौते को रद्द करता है, तो भारत इसे पाकिस्तान की कूटनीतिक अस्थिरता और गैर-जिम्मेदाराना रवैये के रूप में प्रचारित कर सकता है। इससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान की छवि को नुकसान पहुंचेगा और भारत को कश्मीर को आंतरिक मुद्दा बताकर कठोर रणनीति अपनाने की छूट मिल सकती है। इसके अलावा एलओसी की वैधता पर सवाल उठाने से भारत पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) में अपने प्रभाव को बढ़ाने की कोशिश कर सकता है। शिमला समझौता पाकिस्तान की एकमात्र वैधता का प्रतीक है जो उसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर संयमित दिखाता है। इसके रद्द होने से पाकिस्तान एफएटीएफ जैसी संस्थाओं की निगरानी में आ सकता है। साथ ही पहले से जूझती अर्थव्यवस्था और बढ़ती राजनीतिक अस्थिरता में यह कदम आत्मघाती साबित हो सकता है। भारत ने साफ कहा है कि आतंकवाद के प्रति उसकी नीति में कोई नरमी नहीं बरती जाएगी। यदि पाकिस्तान शिमला समझौता रद्द करता है, तो इससे न केवल क्षेत्रीय शांति को खतरा होगा, बल्कि भारत को कूटनीतिक और रणनीतिक रूप से लाभ मिलने की पूरी संभावना है। सिराज/ईएमएस 24अप्रैल25