क्षेत्रीय
23-Apr-2025
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वाराणसी (ईएमएस)। लगातार बन रहे पुलों से गंगा की प्रकृति खतरे में पड़ गई है। बनारस में सामने घाट, चंदौली में बलुआ और मिर्जापुर में चुनार पुल के पास मिट्टी और रेत के टीले उभरने से धारा का प्रवाह बदल गया है। सामने घाट और बलुआ में पुल के दोनों तरफ की स्थितियां 100 मीटर पर एक दूसरे की विपरीत है।अपस्ट्रीम में रेत का टीला ऊंचा होता जा रहा है।यहां पर प्रवाह भी आबादी की ओर बढ़ रहा है, वही डाउनस्ट्रीम में प्रवाह बीचो-बीच में है। सामने घाट में वर्ष 2017 में पुल बनने के बाद से यह स्थितियां बीते दो-तीन वर्षों से दिखने लगी है। अप्रैल मध्य में पानी कम होने से यहां रेत के टीले ज्यादा उभरे हैं।ऐसा लग रहा है की गंगा दो धाराओं में बट गई है। अपस्ट्रीम में रेत बढ़ने से नदी का प्रवाह रामनगर किले की दीवार पर दबाव डाल रहा है, वहीं इसकी विपरीत दिशा में स्थित सामने घाट क्षेत्र में बालू और रेत उभरने से प्रवाह कम होता जा रहा है। डाउनस्ट्रीम में अस्सी और रविदास घाट के सामने नदी का प्रवाह पूर्व से अचानक पश्चिम की ओर हो जाता है। पूर्व में बालू का टीला बढ़ रहा है तो नदी के प्रवाह का दबाव शहरी इलाकों के पक्के घाट पर बना है। बलुआ में पुल अपस्ट्रीम में खम्भो के सामने रेत उभरने से नदी सराय सहित आसपास के गांवों में कटान हो रही है। चंदौली प्रशासन की माने तो पिछली बाढ में गांव का 10 बीघा से ज्यादा हिस्सा नदी में समा गया। नदी वैज्ञानिक प्रो. बी. डी.त्रिपाठी का मानना है कि पुल के खभों की डिजाइन गोल होने से टीले बन रहे हैं। गोल खंभे से पानी का दबाव कम हो जाता है और सिल्ट जमा शुरू हो जाता है। खभों की डिजाइन तिकोनी हो तो समस्या नहीं होगी। उदाहरण राजघाट पुल है। इसके आसपास कभी सिल्टिंग नहीं हुई। बी एच यू के न्यूरो सर्जन और घाट-वाक के प्रणेता प्रो. विजयनाथ मिश्रा का कहना है की गंगा किनारे जम रही रेत हटाना आवश्यक है। गंगा पार में लगातार रेत जमा होने से बाढ़ के समय उसका असर शहरी इलाकों में होता है। समय रहते प्रयास नहीं किए गए तो धारा का दबाव किनारे की ओर बढ़ेगा। अभी अप्रैल माह में गंगा की स्थिति यह है तोअभी मई और जून का महीना तो बाकी है। वाराणसी में इस वर्ष अप्रैल माह से ही गर्मी काफी तेज होने लगी। यहां का टेंपरेचर 42 से 43 डिग्री चल रहा है। डॉ नरसिंह राम/ईएमएस/23/04/2025