नई दिल्ली (ईएमएस)। गंधमादन पर्वत का उल्लेख रामायण, महाभारत और पुराणों जैसे प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। जिस प्रकार तिब्बत की शांग्री-ला घाटी रहस्य से घिरी मानी जाती है, उसी तरह गंधमादन पर्वत क्षेत्र भी पौराणिक और आध्यात्मिक रहस्यों का केंद्र है। हिमालय के दुर्गम और रहस्य से भरे क्षेत्रों में स्थित गंधमादन पर्वत को भारत का सबसे रहस्यमयी इलाका माना जाता है। माना जाता है कि यह क्षेत्र बद्रीनाथ से लेकर मानसरोवर के बीच कहीं स्थित है, लेकिन इसकी सटीक भौगोलिक पहचान आज भी स्पष्ट नहीं है। यह पर्वत न केवल अपनी प्राकृतिक दुर्गमता और सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इसकी आध्यात्मिक महत्ता और अलौकिक कथाओं के कारण भी जाना जाता है। रामायण में वर्णित है कि हनुमान जी संजीवनी बूटी इसी गंधमादन से लाए थे। वहीं महाभारत में भीम और हनुमान जी का मिलन इसी स्थान पर हुआ था। श्रीमद्भागवत और विष्णु पुराण जैसे ग्रंथों में इसे कैलाश के उत्तर में स्थित, एक दिव्य और सुगंधित क्षेत्र के रूप में दर्शाया गया है, जहां सिद्ध ऋषि वास करते हैं। यह क्षेत्र कुबेर के स्वर्गिक साम्राज्य का हिस्सा भी माना जाता है। गंधमादन की विशेषता इसकी ऐसी रहस्यमयी स्थिति है, जो आज तक किसी आधुनिक मानचित्र में स्पष्ट नहीं हो सकी है। कुछ विद्वान इसे उत्तराखंड के बद्रीनाथ-केदारनाथ क्षेत्र के पास, तो कुछ इसे तिब्बत के कैलाश-मानसरोवर के उत्तर में मानते हैं। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, इस पर्वत की चोटी इतनी पवित्र मानी जाती है कि वहां किसी यान या वाहन से नहीं जाया जा सकता। केवल सच्चे साधक ही वहां पैदल पहुंच सकते हैं। कई साधकों ने दावा किया है कि गंधमादन में साधना के दौरान उन्हें हनुमान जी के दर्शन हुए कभी ध्यान में, कभी स्वप्न में, और कभी ऊर्जा के रूप में। यहां की शुद्ध हवा, प्राकृतिक एकांत और ऊर्जात्मक वातावरण ध्यान के लिए आदर्श माना जाता है। हालांकि इन अनुभवों को वैज्ञानिक रूप से सिद्ध नहीं किया जा सकता, परंतु ये कथाएं इस क्षेत्र को और रहस्यमय बना देती हैं। कुछ विद्वान इसे वास्तविक पर्वत मानते हैं, जबकि कुछ इसे आत्मज्ञान और आंतरिक शांति का प्रतीक कहते हैं। कई संतों और साधकों ने अपने प्रवचनों और अनुभवों में इस स्थान की अलौकिकता का उल्लेख किया है। आज भी बद्रीनाथ और केदारनाथ के क्षेत्र में रहने वाले साधु-संत गंधमादन को एक गुप्त और पवित्र भूमि मानते हैं। गंधमादन का उल्लेख केवल हिंदू धर्म में नहीं, बल्कि जैन और बौद्ध परंपराओं में भी मिलता है। जैन ग्रंथों में इसे ऋषभदेव जैसे तीर्थंकरों की तपोभूमि बताया गया है। तिब्बती बौद्ध परंपरा में ऐसे स्थानों को ‘गुप्त स्थल’ कहा जाता है, जहां उच्च साधना की जाती है। सुदामा/ईएमएस 20 अप्रैल 2025