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19-Apr-2025
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-मोहम्मद अली जिन्ना ने 1936 में रहने के लिए बनवाया था, लगा है इटालियन मार्बल मुंबई,(ईएमएस)। भारत-पाकिस्तान बंटावारे में मोहम्मद अली जिन्ना को दोषी माना जाता है तो वहीं पाकिस्तान में वह कायदे आजम के नाम से जाने जाते हैं। आजादी से पहले जिन्ना के मुंबई स्थिति घर जिन्ना हाउस को लेकर भी दो राय रही हैं। मुंबई के मालाबार में स्थित इस बंगले को एक वर्ग ढहाने की मांग करता रहता है तो वहीं कुछ लोगों का कहना है कि इस हेरिटेज प्रॉपर्टी को इस्तेमाल में लेना चाहिए। इससे ऐतिहासिक इमारत भी बनी रहेगी और उसका इस्तेमाल भी होगा। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक अब विदेश मंत्रालय की तरफ से इसके पुनरुद्धार की मंजूरी मिलने वाली है। फिलहाल इस संपत्ति की देखरेख की जिम्मेदारी विदेश मंत्रालय के पास है। एक रिपोर्ट के मुताबिक इस इमारत को डिप्लोमैटिक एन्क्लेव के तौर पर स्थापित किया जा सकता है। यह ऐसे ही होगा, जैसे दिल्ली में हैदराबाद हाउस है। ठीक उसी तर्ज पर मुंबई में जिन्ना हाउस रहेगा। जिन्ना हाउस का असली नाम साउथ कोर्ट है, लेकिन अंग्रेजी राज में बंटवारे के दौरान इसे जिन्ना हाउस कहा जाने लगा। इसे जिन्ना ने 1936 में अपने रहने के लिए बड़े अरमानों से बनवाया था, लेकिन फिर वह देश विभाजन के एजेंडे पर आगे बढ़े तो भारत उनके जेहन से छूट गया। फिर उनका यह घर मुंबई में भारत सरकार की संपत्ति बन गया, जबकि उनकी बेटी दीना वाडिया मरते दम तक इस पर हक पाने के लिए मुकदमा लड़ती रहीं। 2018 में इस बंगले को भारत सरकार ने विदेश मंत्रालय को सौंप दिया गया था, जबकि उससे पहले भारत संस्कृति संबंध परिषद के पास था। इस बंगले को 2 लाख रुपए की लागत से तैयार कराया गया था, लेकिन आज इसकी कीमत 1500 करोड़ रुपए है। इसकी वजह है कि आज यह मुंबई के सबसे पॉश इलाका मालाबार हिल्स में स्थित है। इसे जिन्ना ने इटालियन स्टाइल में बनवाया था और वहीं से मार्बल भी लाया गया था। इंग्लैंड से वापस लौटने के बाद जिन्ना जब मुंबई आए और मुस्लिम लीग पर पूरा कंट्रोल लिया तो उन्होंने मुंबई में एक आवास तैयार कराया। इसका नक्शा क्लॉड बैटले ने तैयार किया था, जो इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ आर्किटेक्ट्स के हेड थे। इसके अलावा इटली से कारीगरों को इसके निर्माण के लिए बुलाया गया था। तब के दौर में 2 लाख रुपए लगे थे और उसकी कीमत को इससे समझा जा सकता था कि 1947 में एक रुपए की कीमत 1 डॉलर के बराबर थी। यह बंगला ढाई एकड़ में बना है और सी फेसिंग है। इटालियन मार्बल से तैयार इस बंगले की कई दीवारें अब क्षतिग्रस्त हो चुकी हैं और पुनरुद्धार की जरूरत है। भारत बंटवारे के बाद इस बंगले को शत्रु संपत्ति घोषित किया गया, जैसा उन तमाम संपत्तियों के साथ हुआ था, जिनके मालिक पाकिस्तान चले गए थे। फिर भी कहा जाता है कि नेहरू इस बंगले को मोहम्मद अली जिन्ना को लौटाना चाहते थे। इसके अलावा एक विकल्प यह भी था कि जिन्ना की सहमति से किसी यूरोपियन को वहां किराये पर रहने दिया जाए, लेकिन जिन्ना की 1948 में मौत हो गई और नेहरू इस बंगले को लेकर कोई फैसला नहीं कर पाए। आखिर में 1949 में इस बंगले को भारत सरकार ने अपने नियंत्रण में ले लिया। 1981 तक यहां से ब्रिटिश हाई कमिशन चला, उसके शिफ्ट होने के बाद पाकिस्तान सरकार ने मांग की थी कि हमें कौनसुलेट दफ्तर यहां से चलाने की इजाजत दी जाए। मोहम्मद अली जिन्ना ने 1939 में अपनी वसीयत लिख दी थी। इसमें उन्होंने कहा था कि उनकी सारी संपत्ति की मालिक उनकी बहन फातिमा जिन्ना होंगी। वजह थी कि बेटी दीना के पारसी से शादी कर ली थी। फिर जब विभाजन हुआ तो उनकी बहन फातिमा भी साथ में पाकिस्तान चली गईं। ऐसे में बंगला शत्रु संपत्ति घोषित हो गया। लेकिन उनकी बेटी दीना ने इसे पाने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ी। उनका कहना था कि वह बेटी हैं और कानूनी वारिस भी हैं। सिराज/ईएमएस 19अप्रैल25