हिंदी विज्ञान साहित्य परिषद, मुंबई ने दिनांक 17/4/25, को प्रख्यात परमाणु वैज्ञानिक डॉ आर चिदंमरम पर उनकी स्मृति में एक विशेष अंक को सफलता पूर्वक निकाला, जो उनके वैज्ञानिक कार्यों पर था इस हेतु विज्ञान व टेक्नोलॉजी प्रभाग के सचिव ने अपनी शुभकामना संदेश भी दि जिससे वैज्ञानिक के टीम का मान सम्मान बढ़ा परिषद 57 वर्षों से निरंतर वैज्ञानिक का सफल प्रकाशन कर रही है आज अधिक से अधिक हिंदी विज्ञान संस्थानो का कभी बुरा दौर चल रहा है जो चिंता की बात है अच्छे समय में सब साथ रहते हैं और बुरा समय में सब भागने लगते हैं या मज़ाक का पात्र बन जाते हैं हिंदी विज्ञान की सबसे पुरानी संस्थान, विज्ञान परिषद, प्रयाग, प्रयागराज की स्थापना सन 1935में हुई और उसकी पत्रिका विज्ञान शायद 2साल बाद 1937 में प्रकाशित हुई दरअसल हिंदी में सबसे पुरानी विज्ञान की पत्रिका विज्ञान ही थी जो आजादी के बाद से अब तक चल रही है उसका भी कोरोना के बाद आर्थिक संकट में घिर गई और लोगों से मदद मांगकर पत्रिका को 2औऱ 3अंक साथ मिलाकर चलानी पड़ी, बाद में विज्ञान परिषद, प्रयाग जो इलाहाबाद विश्वविद्यालय,प्र यागराज के जमीन पर बनी थी वो कहीं से फंड न मिलने के कारण, हॉल व : पोखरण-I और पोखरण-II परमाणु परीक्षणों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले प्रख्यात परमाणु वैज्ञानिक और क्रिस्टलोग्राफर डॉl आर चिदंबरम का शनिवार 4जनवरी 25 को निधन हो गया था ।वे 89 वर्ष के थे।वैज्ञानिक के रूप में अपने करियर में डॉl चिदंबरम ने भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र ( BARC) के निदेशक, परमाणु ऊर्जा आयोग (AEC) के अध्यक्ष और परमाणु ऊर्जा विभाग (DAE) के सचिव के रूप में काम किया है।पिछले कुछ दिनों से उनकी तबीयत ठीक नहीं थी।वैज्ञानिक़ रूप में अपने करियर में डॉl चिदंबरम ने भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र ( BARC) के निदेशक, परमाणु ऊर्जा आयोग (AEC) के अध्यक्ष और परमाणु ऊर्जा विभाग (DAE) के सचिव के रूप में काम किया। अतः उनकी याद में वैज्ञानिक का सफल प्रकाशन डॉ आर चिदंबरम अंक को निकाल कर उनके वैज्ञानिक कार्यों पर लेख प्रकाशित कर उनको अपना श्रद्धांजलि अर्पित की जो एक सही कदम है आज अधिक से अधिक हिंदी विज्ञान संस्थानो का कभी बुरा दौर चल रहा है जो चिंता की बात है अच्छे समय में सब साथ रहते हैं और बुरा समय में सब भागने लगते हैं या मज़ाक का पात्र बन जाते हैं हिंदी विज्ञान की सबसे पुरानी संस्थान, विज्ञान परिषद, प्रयाग, प्रयागराज की स्थापना सन 1935में हुई और उसकी पत्रिका विज्ञान शायद 2साल बाद 1937 में प्रकाशित हुई दरअसल हिंदी में सबसे पुरानी विज्ञान की पत्रिका विज्ञान ही थी जो आजादी के बाद से अब तक चल रही है उसका भी कोरोना के बाद आर्थिक संकट में घिर गई और लोगों से मदद मांगकर पत्रिका को 2औऱ 3अंक साथ मिलाकर चलानी पड़ी, बाद में विज्ञान परिषद, प्रयाग जो इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज के जमीन पर बनी थी वो कहीं से फंड न मिलने के कारण, हॉल व जो कमरा बनवाया था उसे किसी कार्यक्रम में पैसा लेने के का तर्क देकर इलाहाबाद यूनिवर्सिटी ने ऐ कहकर जमीन बापस ले लिया कमरे बुक करने की नौबत इसलिए आई की उसे चलाने हेतु पैसा तो चाहिए लेकर जब फंड ही बन्द हो गया तो यह मज़बूरी में करना पड़ा,2013 में विज्ञान परिषद का शताब्दी सामारोह में बहुत से विज्ञान लेखकों को सम्मान मिला जिन्होंने सहायता राशि भी दि जिसमें मुझे भी बुलाया गया उससे पहले उस समय के विज्ञान और प्रोधोगिकी विभाग के सचिव ने विज्ञान परिषद का दौरा किया और परिषद के शताब्दी समारोह हेतु 1करोड़ की राशि को स्वीकृति दि और बहुत धूमधाम से शताब्दी सामारोह हुआ जिसमें शुरुआत में पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम साहब ने उसका उद्धघाटन किया, जिसमें जाने माने परमाणु वैज्ञानिक, और भारत सरकार के पूर्व वैज्ञानिक सलाहकार डॉ (स्व ) आर चिदमरम सर मुख्य अतिथि के रूप में पधारे और विज्ञान परिषद के प्रधानमंत्री डॉ शिवगोपाल मिश्र ने उनका स्वागत किया और अतिथि के कर कमलों द्वारा विज्ञान परिषद की स्मारिका व पुस्तक का विमोचन हुआ इधर हिंदी विज्ञान में एक और नई क्रांति मुंबई के वैज्ञानिकों ने 1968 में हिंदी विज्ञान साहित्य परिषद की नींव रखी और 2साल बाद वैज्ञानिक पत्रिका का सतत प्रकाशन हुआ जो आज भी ऑनलाइन माध्यम से चल रही है जबकी विज्ञान प्रसार के बन्द होने से ड्रीम 2047 पत्रिका का अंक भी बन्द हो गया, अतः राष्ट्रीय अस्तर पर हिंदी विज्ञान साहित्य परिषद, मुंबई ही एक मात्र ऐसी संस्था बची है जो इन उद्देश्यों क़ो पूर्ण कर सकती एक विशेष अंक डॉ राजगोपाल चिदंबरम की स्मृति में एक विशेष अंक निकाली गई क्योंकि इस महान परमाणु वैज्ञानिक का भारत में नाभिकीय ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाया औऱ पोखरण 2 परमाणु परीक्षण में मुख्य भूमिका थी खासबात यह है कि वे बहुत पहले हिन्दी विज्ञान के अध्यक्ष भी थे और उनका आकस्मिक निधन मुंबई में परमाणु वैज्ञानिक डॉl चिदंबरम का 4 जनवरी 2025 में 88 वर्ष की आयु में निधन हो गया, वे भारत के परमाणु कार्यक्रम के प्रमुख वास्तुकारों में से एक थेl, हिंदी विज्ञान साहित्य परिषद क़ो मार्गदर्शन दिखाने वाले खुद दुनिया से चलें गए और हिन्दी विज्ञान साहित्य हिन्दी विज्ञान की लोकप्रिय पत्रिका वैज्ञानिक से जुड़े सभी विज्ञान लेखकों पाठकों और सृजनशील व्यक्तियों के निरंतर सहयोग, स्नेह, विश्वास और वैज्ञानिक से लगाव है। इसके मुख्य संपादक श्री राजेश कुमार मिश्र हैं व संपादकीय बोर्ड के सदस्य सर्वश्री, राजेश कुमार, केके वर्मा, डॉ संजय कुमार पाठक व वैज्ञानिक के व्यवस्थापक ,सर्वश्री श्री नवीन त्रिपाठी, बीlएनl मिश्र,अनिल अहिरवार, प्रकाश कश्यप, बधाई के पात्र हैँlविज्ञान साहित्य का ऐसा मिला-जुला ढंग उस साहित्य के सृजन में सहायक होता है जो पूर्णत: भौतिकवादी होता है तथा शुद्ध कला का निर्माण नहीं करता हैlहिंदी विज्ञान की पत्रिका वैज्ञानिक का योगदान विज्ञान संचार हेतु जरुरी है ताकि इससे नवविज्ञान लेखकों क़ो एक वैज्ञानिक मंच मिल सके,विज्ञानlसंचार आज की जरुरत है अतः विज्ञान संचार से देश दुनिया में विज्ञान के प्रति रूचि पैदा करती है अतः सभी वैज्ञानिक संस्थान का यह दायित्व बनता है कि विज्ञान संचार के प्रति अपना शोध को प्रचार प्रसार कर लोगों को जागरूक करे, विज्ञान प्रसार आज बन्द हो गया है और विज्ञान परिषद का ऑफिस भी प्रिंटिंग प्रेस में अस्थाई कार्यालय बनाया क्योंकि एलाहाबाद यूनिवर्सिटी ने अपनी जमीनवापस ले ली है उनके अनुसार विज्ञान परिषद को जिस उद्देश्य के लिए जमीन दि गई थी वो पूरा नहीं हुआ जो इस बात को दर्शाता है कि किसी भी विज्ञान की संस्था को अपना उद्देश्य पूर्ण करना चाहिए वैज्ञानिक के इस विशेष अंक में विज्ञान औऱ टेक्नोलॉजी मंत्रालय के सचिव ने अपनी शुभकामना संदेश भी दिया डॉ चिदंबरम के इस विशेष अंक के प्रकाशित होने के बाद अवश्य ही नवीन विज्ञान लेखकों को विज्ञान में एक नई प्रेरणा मिलेगी,हिंदी विज्ञान साहित्य परिषद इसके लिए वैज्ञानिक का नियमित प्रकाशन कर रही है और भविष्य में भी करेगीl हिन्दी विज्ञान की लोकप्रिय पत्रिका वैज्ञानिक से जुड़े सभी विज्ञान लेखकों पाठकों और सृजनशील व्यक्तियों के निरंतर सहयोग, स्नेह, विश्वास और वैज्ञानिक से लगाव है। इसके मुख्य संपादक श्री राजेश कुमार मिश्र हैं व संपादकीय बोर्ड के सदस्य सर्वश्री, राजेश कुमार, केके वर्मा, डॉ संजय कुमार पाठक व वैज्ञानिक के व्यवस्थापक ,सर्वश्री श्री नवीन त्रिपाठी, बीlएनl मिश्र,अनिल अहिरवार, प्रकाश कश्यप, बधाई के पात्र हैँlविज्ञान साहित्य का ऐसा मिला-जुला ढंग उस साहित्य के सृजन में सहायक होता है जो पूर्णत: भौतिकवादी होता है तथा शुद्ध कला का निर्माण नहीं करता हैl हिंदी विज्ञान की पत्रिका वैज्ञानिक का योगदान विज्ञान संचार हेतु जरुरी है ताकि इससे नवविज्ञान लेखकों क़ो एक वैज्ञानिक मंच मिल सके। (यह लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं इससे संपादक का सहमत होना अनिवार्य नहीं है) ईएमएस / 19 अप्रैल 25