(अग्निश्मन सप्ताह 14 अप्रैल से 20 अप्रैल पर विशेष) बेशक प्रतिवर्ष देश में 14 अप्रैल से 20 अप्रैल तक अग्निश्मन सप्ताह मनाया जा रहा हैl अग्निश्मन सप्ताह पर लोगों को जागरूक किया जाता हैl सेमिनार लगाए जाते हैं और रैलियों का आयोजन किया जाता है लाखों रुपये खर्च किये जाते हैंl आगजनी की घटनाओं में लोगों की लापरवाही के कारण वृद्धि हो रही हैl प्रतिवर्ष लोग आगजनी में जान गंवा रहे हैं जिन्दा जल रहे हैंl सतर्कता बरती जाये तो इन अग्निकांडो को रोका जा सकता हैl देश में हर वर्ष मजदूर दबकर व जलकर मारे जा रहे हैं। ताज़ा दर्दनाक अग्निकांड 2 फ़रवरी 2024 को बद्दी की परफ्यूम फैक्ट्री में घटित हुआ था जहाँ 35 लोग झूलस गए थे और एक महिला की मौत हो गई थीl आगजनी के समय करीब 50 कामगार मौजूद थे 30 कामगारों ने ऊपरी मंजिल से कूद कर अपनी जान बचा ली इनमे तीन की रीढ़ की हड्डी टूट गई मलिक पऱ लापरवाही बरतने का मामला दर्ज कर लिया है इससे पहले भी बद्दी में काफ़ी अग्निकांड हो चुके हैं लेकिन सबक नहीं सीख रहे हैं सरकारों को इस हादसे से संज्ञान लेना चाहिएl2019 में राजघानी दिल्ली में रानी झांसी रोड़ पर स्थिित अनाज मंडी में रविवार सुबह चार बजे आग लगने से 43 लोगों की दर्दनाक मौत हो गई थी तथा कई लोग घायल हो गए थे ।एडीआरएफ की टीम ने केवल 56 लोगों की जान बचा ली थी ।यह भीषण आग सुबह साढे चार बजे के करीब लगी थी।आग लगने का कारण शार्टसर्किट था । भारतीय दंड सहिंता की धारा 304 के अंर्तगत मालिक के खिलाफ गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज कर लिया है।यह मजदूर बिहार के समस्तीपुर के एक ही गांव के है।पलक झपकते ही अनाज मंडी शमशानघाट बन गई थी ।लाशों के ढेर लग गए थे ।चीखो पुकार मच गई थी ।मजदूर खाक ह गए थे । कैसी विडंबना है कि कभी सुरगों व उद्योगों में बेमौत मारे जा रहे हैं। मगर केन्द्र व राज्य की सरकारों को जरा सा सदमा होता तो मजदूरों के हितों में कदम उठाती लेकिन सरकारें तो तब जागती हैं जब बड़ा हादसा घटित हो जाता है।2025 के चार महिनों में उद्योगों में आग के काफी मामले घटित हुए है। देश में मजदूरों के साथ होने वाले हादसे थमने का नाम नहीं ले रहे हैं।कारखानों में जल कर मजदूर मर रहे हैं।गत वर्ष भी एक ही दिन में दो हादसों में 19 मजदूर मारें गए थे जब राजधानी दिल्ली के बाहरी जिले में स्थित बवाना औद्योगिक क्षेत्र में एक पटाखें की फैक्टरी के गोदाम में भीषण आग लगनें के कारण 17 लोगों की मौत हो गई थी और तीस लोग बुरी तरह झुलस गए थे। मरने वालों में 10 महिलाएं तथा 7 पुरुष थी।मजदूरों ने सपने में भी नही सोचा होगा कि यह पटाखा गोदाम शमशान बन जाएगा ।पल भर में जिन्दा लोग राख में बदल गए यह बहुत ही त्रासदी है।लगभग तीन घंटे की मश्क्कत के बाद आग पर काबू पाया जा सका तब तक सब कुछ राख हो चुका था।आग के कारणो का पता नहीं चल पाया है।प्रशासन को चाहिए कि लापरवाही बरतने वालों को सजा दी जाए ताकि फिर एसे हादसे न हो सके।दूसरे हादसे में कानपुर में भी दो मजदूरों की मलबे में दबने से दर्दनाक मौत हो गई। एक दिन में ही 19 मजदूर मारे गए।यह बहुत ही दुखद है। ।बीते वर्ष में रायबरेली के उंचाहार में एटीपीसी संयत्र का बायलर फटने से 30 मजदूरों की दर्दनाक मौत हो गई थी तथा 100के लगभग घायल हो गए थे।500 मैगावाट इकाई के बायलर में यह हादसा हुआ था उस समय 200 कामगार मौजूद थे सरकारों ने मृतकों को मुआवजे की घोषणा करती है मगर मुआवजा इसका हल नहीं है।एक ऐसा ही हादसा जयपुर के पास खातोलाई गांव में घटित हुआ था जहां टाªसफारमर फटने से 14 लोगों की मौत हो गई थी। इन हादसों ने औद्याोगिक क्षेत्रों में मजदूरों की सुरक्षा पर प्रशनचिन्ह लगा दिया है इन हादसों पर संज्ञान लेना होगा तथा मजदूरों की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम करने होगें ताकि भविष्य में ऐसे हादसों पर रोक लग सके। गत वर्ष जम्मू के उधमपूर से 80 किलोमीटर दूर रामबन जिले के चंद्रकोट में जम्मू-कश्मीर हाईवे पर टनल कर्मचारियों की बैरक में आग लगने से दस श्रमिक जिंदा जल गए थे। यह बैरक लोहे व फाईबर की बनी थी। यह बहुत ही दुखद हादसा था। आग लगने का कारण बिजली का शार्टसर्किट था।इस बैरक में 100 से अधिक लोग रहते थे। मगर छुटटी होने के कारण आसपास के लोग अपने घरों को चले गए थे। गनीमत रही की यह अपने-अपने घरों को गए थे वरना मृतको की संख्या 100 के लगभग होती ।नया वर्ष इन मजदूरों के लिए यमराज बन कर आया था और बेचारे टनल में ही जिन्दा जलकर राख हो गए थे इन अभागों ने सपने मे भी नहीं सोचा होगा की नया साल उनके लिए घातक साबित होगा।मारे गए मजदूरों में एक मजदूर हिमाचल के कांगड़ा का था तथा एक पंजाब का था बाकि बनिहाल-रामबन क्षेत्र के निवासी थे।सुरगं में घटित इस दर्दनाक हादसे ने कई प्रशन खड़े कर दिए है कि आखिर यह हादसे कब रुकेगें।यह कोई पहला हादसा नहीं है देश में अब तक हजारों मजदूर बेमौत मारे जा चुके है।एक साल पहले हिमाचल के बिलासपुर में भी एक ऐसा ही हादसा घटित हुआ था जब फोरलेन का काम करते समय सुरंग ढह गई और तीन मजदूर उसमें दब गए मगर 12 दिन की कड़ी मशक्क्त के बाद दो मजदूरों को जिन्दा निकाला गया था। एक मजदूर हिरदा राम कोई पता नहीं चल पाया था कि वह जिन्दा था या मर चुका था लगभग 9 महीने बाद उसका शव बरामद हुआ था। हिमाचल के जिला किन्नौर में एक निर्माणाधिन प्रोजेक्ट की दीवार गिरने से चार मजदूर बेमौत मारे गए थे। यहां पर 11 मजदूर काम कर रहे थे कि अचानक दीवार गिर गई सात मजदूर तो भागकर बच गए मगर बेचारे चार मजदूर जिन्दा दफन हो गए।इन मजदूरों पर 42 मीटर लंबी दीवार गिर गई थी। हिमाचल में ऐसे बहुत हादसे हो रहे है हमीरपुर में भी गत दिनों दर्जनों मजदूर मारे गए थे। 2015 के फरवरी माह में एक सप्ताह में दो दर्दनाक हादसों में 10 मजदूर मारे गए और 20 मजदूर घायल हो गए। पहला हादसा हिमाचल के कुल्लु में हुआ तथा दूसरा मुम्बई में हुआ। मुम्बई के अलीबाग में एक पटाखा फैक्ट्री में आग लगने से 9 मजदूर मारे गए थे और 19 घायल हो गए थे। और दूसरी घटना में 24 फरवरी 2014 को कुल्लु के मणीकर्ण में करंट लगने से एक मजदूर की मौत हो गई थी जो बिजली विभाग के एक ठेकेदार के पास काम कर रहा था इस दर्दनाक हादसे में एक अन्य मजदूर घायल हो गया था। गोवा के कनाकोना शहर में एक निर्माणाधीन इमारत गिरने से 7 लोगों की मोैेत हो गई थी और 40 से अधिक लोगों की इमारत के भितर दब गए थे। यह हादसा कनाकोना शहर में घटित हुआ था जो राजधानी पणजी से 80 किलोमीटर दूर था। यह हादसा दोपहर तीन बजे के करीब हुआ जब यह इमारत ढही उस समय 40 लोग काम कर रहे थे गत वर्ष महाराष्ट्र में एक इमारत के गिरने से 75 मजदूरों की असमय मौत गई थी और 60 मजदूर घायल हो गए थे आखिर कब तक मजदूर इमारतों में जमीदोज होते रहगें ।यह बहुत ही दर्दनाक हादसा था जिसने एक साथ इतने लोगों को लील लिया था । भले ही प्रशासन मुआवजे का मरहम लगाता है मगर जो बेमौत मारे गये क्या वे लौट आएगें यह एक यक्ष प्रशन बनता जा रहा है।ऐसे हादसे पहले भी हो चुके है जिसमें सैंकड़ों लोग लापरवाही के कारण मारे जा चुके हैं। इमारतों के नीचे दबकर मजदूर काल का ग्रास बन रहे है।हादसों को देखकर रौगंटे खडे़ हो जाते हैं देश के राज्यों में चल रहे ईटों के भठठों में मजदूर मारे जा रहे हैं।मजदूरों के पसीने से ही ईटें पकती हैं मगर भठठा मालिक मजदूरों का शोषण कर रहे हैं मजदूर खून-पसीना बहाकर काम करते है।मगर बदले में मेहनताना नाममात्र दिया जाता है।मालिक मजदूरों के सिर पर करोड़ों रुपया कमा रहे है।आंकडे़ बताते है कि 2001 से अप्रैल 2025तक हजारों मजदूर मारे जा चुके हैं। इस घटना ने सवाल खड़े कर दिये हैं कि बार-बार हो रहे इन हादसों के कारण क्या है इस घटना ने यह प्रमाणित कर दिया है कि बीती घटनाओं से न तो सरकार ने सबक सिखा और न ही लोगों ने सीखा। पिछले कई सालों से ऐसे दर्दनाक हादसे हो रहे हैं सरकारें ऐसी घटनाओ के बाद मुआवजों की घोषणा करने तथा जांच के आदेश देने में देरी नहीं करती। देश में प्रतिदिन ऐसे मर्मातंक हादसे होते है मगर प्रकाश में नहीं आते। ।इन हादसों में सैंकड़ों बच्चे अनाथ हो गए और कई मां-बहनों का सिदूर मिट गया और बहनों के भाई मारे गए।केन्द्र सरकार को इन हादसों के संदर्भ में छानबीन करवानी चाहिए तथा दोषियों को सजा देनी होगी। समय रहते इन घटनाओं को रोकने के लिए कारगर कदम उठाने होगें ताकि भविष्य में ऐसी दर्दनाक हादसों पर विराम लग सके।अगर अब भी सरकार ने लापरवाही बरती तो निदोर्ष लोग व मजदूर बेमौत मरते रहेगें।ऐसे हादसो पर रोक के लिए पुख्ता इंतजाम किए जाए ताकि भविष्य में ऐसे दर्दनाक की पुनरावृति न हो सके।एक सप्ताह पहले नालागढ़ में प्रवासीयों की झुग्गीयां जलने से एक मासूम बच्ची जिन्दा जल गई थीl2 फ़रवरी 2024 को बद्दी की परफ्यूम फैक्ट्री में घटित हुआ जहाँ 35 लोग झूलस गए और एक महिला की मौत हो गई थीl फैक्ट्री के प्रबंधक को गिरफ्तार कर लिया था आगजनी के समय करीब 50 कामगार मौजूद थे 30 कामगारों ने ऊपरी मंजिल से कूद कर अपनी जान बचा ली इनमे तीन की रीढ़ की हड्डी टूट गई मलिक पऱ लापरवाही बरतने का मामला दर्ज कर लिया है इससे पहले भी बद्दी में काफ़ी अग्निकांड हो चुके हैं लेकिन सबक नहीं सीख रहे हैं सरकारों को इस हादसे से संज्ञान लेना चाहिएl देवभूमि हिमाचल में हो रर्हे अिगनकांडों से जनमानस भयभीत होता जा रहा है।2025 के प्रथम माह जनवरी से ही आग का तांडव शुरु हो गया है। प्रतिदिन किन्नौर से लेकर भरमौर तक आग की घटनाएं होती जा रही है। आकड़ों के अनुसार शिमला के जुबबल में घटित हुआ जहां 32 कमरों का चार मंजिला मकान ओ की भेट चढ़ गया था ।गनीमत रही की जब यह आगजनी की घटना हुई घर में कोई मौजूद नहीं था। इससे पहले साल 2018 में शिमला के रोहड़ू में 41 घरों में आग लगी थी और ऐतिहासिक गांव कशाणी राख में बदल गया था और लोग बेघर हो गए थे। 21 जनवरी 2021 को कुल्लु के गड़सा में एक ढाई मंजिला मकान में ओ लगने से 43 साल के व्यक्ति की दर्दनाक मौत हो गई थी। मकान के अंदर सो रहा यह व्यक्ति जिंदा ही जल गया था। प्रदेश में भीषण अग्निकांडों में आज तक अरबों के हिसाब से संम्पतियां राख के ढेरों में बदल चुकी हैं, अग्निकांडों में हजारों लोग मौत के मुंह में समा चुके हैं। अग्निकांड़ों से कई परिवार तबाह हो चुके है। हिमाचल में अग्निकांड थमने का नाम नहीं ले रहे है।।इन अग्निकांडों से कई प्रशन सुलग रहे है।सैंकड़ों घटनाएं घटित हो चुकी है। मासूम जल कर मर रहे है बुजुर्ग भी मारे जा रहे है। लापरवाहियां लोगों के जीवन को राख में तब्दील कर रही है।आशियाने राख के ढेर में समाते जा रहे है।प्रदेश में निरंतर हो रहे इन अग्निकांडों पर संज्ञान लेना होगा ताकि जान माल की घटनाओं को रोका जा सके।आगजनी होने पर हैलिकाप्टरों की सेवाएं लेनी चाहिए ताकि आग को बुझााया जा सके और जिंदगियां बच सकें। जागरुकता ही इसका समाधान है।अस्सी प्रतिशत अग्निकांड़ों में शार्टसर्किट ही कारण निकलता है। इन हादसों को रोकने के लिए प्रदेश सरकार को कदम उठाने होगें। काफी आशियाने राख हो चुके है। आग को बुझानें की कोशिशों में लोग झुलस रहे है,मासूम जिन्दा जल रहे हैं। समझ नहीं आता कि हर बार शार्ट सर्किट के कारण ही आग लगती है, प्रदेश में हर जिले में आगजनी की वारदाते हो रही हैं ज्यादरतर मामले गांव में घटित हो रहे हैं। लोगो को भी चाहिए कि घरों में गल-सड़ चुकी बिजली की तारों को बदलवा देना चाहिए ताकि कोई अप्रिय हादसा न हो सके। पूरी तरह सर्तकता बरतनी चाहिए तथा विभाग को सूचित करना चाहिए। ज्वलनशील पदाथों को घर से दूर रखना चाहिए,और पशुओं का चारा व घास बगैरा भी गौशालाओं से काफी दूर रखना चाहिए क्योकि ऐसी सूखी चीजें जल्दी आग पकडती है, अक्सर देखा गया है कि सरकारी व निजी भवनों में आग बूझाने के यन्त्र ही नहीं होते हैं।स्कूलों व कालेजों में भी ऐसी व्यवस्था कम ही है जबकि स्कूलों में कई भयानक अग्निकांड़ हो चुके हैं। प्रशासन का चाहिए कि प्रत्येक सरकारी व प्राईवेट दफतरों में अग्निशमन यन्त्र उपलव्ध करवाए जाए ताकि तबाही कम हो सके, बिजली विभाग को समय-समय पर बिजली के खम्भों व तारों का निरिक्षण करते रहना चाहिए। सरकार ने जिला मुख्यालयों में तो अग्निशमन केन्द्र स्थापित किये है लेकिन जब तक यह गांव में पहुचते हैं तब तक मकान जलकर राख हो जाते है। सरकार को प्रत्येक बडे़- बडे़ शहरों से लेकर गांव तक छोटे-छोटे केन्द्र खोलने चाहिए ताकि आगजनी की घटनाओं पर काबू पाया जा सके। सरकार को चाहिए कि प्रत्येक गांव में आपदा कमेटियां गठित की जाए तथा उन्हे अग्निशमन का प्रशिक्षण दिया जाए ताकि भविष्य में होने वाली घटनाओं पर काबू पाया पा सके।आंकडों़ के अनुसार बीते साल 2024 में अगिनकांडों में बेतहाशा वृद्वि हुई थी। 17 जून 2020 को आगजनी की लपटों में एक ही परिवार के तीन लोगों की मौत से कई प्रशन सुलग रहे है। मंड़ी के सरकाघाट के समाहल गांव में मकान में आग लगने से तीन जांने जलकर राख हो गइ थी। आगजनी में मां व उसका नौ माह का बच्चा व चार साल की बच्ची की दर्दनाक मौत हो गइ र्थी।महिला बच्चों के साथ सोई थी। गत वर्ष कुल्लू के बंजार में सक अग्निकांड में पिता पुत्र की जलकर दर्दनाक मौत हो गई थी गत वर्ष भी बंजार उपमंडल की खाबल पंचायत में आग लगने से छह कमरों का मकान जलकर राख हो गया था।लोगों को खुले आसमान के तले रात गुजारनी पडी़ थी। 9 जनवरी 2019 को चंबा और शिमला में दो आगजनी की घटनाओं में दो मासूम बच्चे तथा एक मजदूर जल गया था ।चंबा में मासूम बच्चे जिन्दा जल गए थे यह बच्चे स्टोर रुम में खेल रहे थे। शिमला में संजोली में ढाबे में आग लगने से नेपाली मजदूर जिंदा जल गया था ।प्रतिवर्ष सैमीनार करवाए जाते है प्रतियोगिताएं आयोजित करवाई जाती है मगर न तो प्रशासन सबक सीखता है और न ही आम जनमानस सीखता है। अग्निशमन सेवा सप्ताह के शुरुआत के दिनो से ही सैंकड़ों घटनाएं हो चुकी हैं और बदस्तूर जारी है। प्रतिदिन कहीं न कहीं आगजनी की वारदातें हो रहीं है।2018 में मंडी जिला के बल्ह विधानसभा के नेरचैक बाजार में एक भीषण अग्निकांड में पांच लोगों की दर्दनाक मौत हो गई थी ।आग लगने का कारण शार्ट सर्किट था। बारात पहुचनें के चंद घंटों में आशियाना राख के ढेर में बदल गया था ।और पल भर में लोग जिन्दा जल गए थे। यहां बेटे शादी की खुशियां पल भर भी में राख हो गई और मातम छा गया था।हादसे का मंजर बहुत ही दर्दनाक था।मृतकों में एक सात साल का बच्चा भी था। 24 मई 2018 को औद्यौगिक क्षेत्र बददी के काठा में हुए अग्निकांड में एक 9 साल के मासूम की दर्दनाक की मौत हो गई थी मासूम जिन्दा जल गया था।और 45 झुग्गियां भी जल कर राख हो गई थी ।झुग्गियों में रखे सिलेंडर भी फट गए थे। । पिछले कई सालों से लोगों के आशियाने राख हो रहे है और लोग बेघर होते जा रहे हैं कई अग्निकांडा़े में बच्चों से लेकर बुजुर्ग भी जल रहे हैं।22 मई 2018 को जजैहली के रेशनगांव में एक अग्किांड में आग बुझाते हुए दो लोग बुरी तरह झुलस गए थे ।इस आगजनी में लाखों का सामान जलकर राख हो गया था । प्रदेश में हो रहे इन आग की घटनाओं को रोकना होगा।आग की घटनाएं दिल-प्रतिदिन बढ़ते ही जा रहे हैं। नालागढ़ के बद्दी में ही मकान में आगजनी के कारण एक बच्चा जलकर राख हो गया था। गत वर्ष कुल्लू की सैंज घाटी के कोटला गांव में आग लगने से लगभग 100 मकान जलकर राख हो गए थे। तथा चार मासूम बच्चे भी लापता हो गए थे बाद में सुरक्षित मिल गए थे।सरकार ने भी काफी मदद कर दी है और स्वयंसेवी संस्थाएं भी काफी मदद कर रही है मगर इस दर्दनाक हादसे के जख्म ताउम्र नहीं भर सकते क्योकि इस भीषण अग्निकांड़ में पूरा गांव जलकर राख हो गया था।इस भीषण अग्निकांड़ में चार मंदिर भी जलकर राख हो गए थे।गत वर्ष दीवाली की रात को भी प्रदेश में 43 स्थानों पर आगजनी की वारदातें हुई थी। इसमें हजारों बेजुवान मवेशी जिन्दा जलकर राख हो गए थे। गनीमत रही की इसमें किसी जनमानस की जान नहीं गई। इन अग्निकांडों से कई प्रशन सुलगते जा रहे हैं कि इनके मुख्य कारण क्या हैं।अधिकांश कांडों में बिजली का शार्ट सर्किट ही सामने आता है मगर कुछ मामलों में लोगों की लापरवाही के कारण भी ऐसी घटनाएं हो रही हैं।गत दस वर्षों में भीषण से भीषणतम अग्निकांड हो चुके हैं। 6 जनवरी 2008 को ऐतिहासिक मलाणा गांव में 150 घर राख हो गए थे। 24 दिसंबर 2011 को रोहड़ू में भी एक गांव जला था जिसमें80 मकान राख हो गए तथा 200 मवेशी मारे गए थे।27 जनवरी 2014 को शिमला में 110 साल पुरानी ब्रिटिश हकुमत की सबसे भव्य हैरीटेज बिल्डिंग गाॅर्टन कैसल आग की भेंट चढ़ गई इस ईमारत में एजी का कार्यालय था इस अग्निकांड में राज्य के 70 हजार पैशनधारकों का रिकार्ड जलकर राख हो गया था गाॅटन कैसल के कुल 266 कमरों मे से अधिकतर कमरे क्षतिग्रस्त हो गए थे।अग्निकांडों में कई ऐतिहासिक धरोहरें राख हो चुकी हैं। 2002 से लेकर अप्रैल 2025 तक हजारों अग्निकांड़ हो चुके है और इसमें अरबों की संम्पतियां राख हो चुकी है। जंगली जानवर व पशु भी मारे गए।घटनाओं में कमी नहीे आई है बल्कि इनमें बेतहाशा वृद्वि हो रही हंै । प्रदेश में कई आलिशान मकान व ईमारतें जलकर भस्म हो चुकी हैं। ।सरकारी भवनों से लेकर आम आदमी के घर राख होते जा रहे औद्यौगिक क्षेत्र बद्दी में एक दवा फैक्टरी में आग लगने से चार करोड़ का नुक्सान हुआ था।फायर बिग्रेड कर्मियों ने आठ घटों की मशक्कत के बाद आग की लपटों पर काबू पाया था।गनीमत रही कि कोई जानी नुक्सान नहीं हुआ। हर साल अरबों की संम्पति आगजनी की भेट चढ़ रही है मगर सरकार इसके बचाव में कारगर कदम नहीं उठा रही है केवल माल एक तिरपाल व थोड़ी सी राहत राशि देकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर अपना फर्ज निभा रही है लेकिन जिसका आशियाना जलता है उसके जख्म ताउम्र रिसते रहतें हैं।केवल मात्र मकान ही नहीं जलता उसमें हजारों स्मृतियां जलती हैं। प्रदेश में गौशालों में हुए अग्निकांडों में हजारों मवेशी व बैल ,गायें, व घोड़े जल कर मारे जा चुके है। हंालाकि दमकल कर्मचारी अपनी जान जोखिम में डालकर कुछ सम्पति को बचा लेतें हैं मगर कई दमकल कर्मी भी जान से हाथ धो चुके हैं।कुछ साल पहले गोहर उपमंडल में आग के कारण पूरा क्योली गांव जल गया था आग एक घर से दूसरे घर में फैलती गई और देखते ही पूरा गांव राख के ढेर में तब्दील हो गया। इस गांव के अधिकांश घर लकडी के बने थे तभी इतना बडा नुक्सान हुआ। 16 नवबर 2013 को शिमला के जाखू के समीप रिच मांउट में एक स्टोर मंे आग लगने से एक व्यक्ति की जलकर मौत हो गई थी। 26 नवबर 2013 का किन्नौर के निचार में आग लगने से दस घर आग की चपेट में जलकर राख हो गए इनमें सात परिवार रहते थे आगजनी में 51 कमरे आग की भेंट चढ़ गए थे। लोागों की मशक्कत की वजह से 20 घर जलने से बच गए। इस आगजनी में आग की चपेट में आने से एक व्यक्ति का हाथ जल गया और दूसरे का सिर फट गया और गंम्भीर चोटें आई थी। कुछ पशु भी जलकर मारे गये।इस आगजनी में लाखों का नुक्सान हुआ था। लोगों ने आग बूझाने के लाख प्रयास किये मगर दस घर सामने ही धू-धू करके जलकर खाक हो गए। सरकारों को इन हादसों को रोकने के लिए कारगर कदम उठाने होगें ।यह प्रदेश हित में है।समय अभी संभलने का है। सरकार द्वारा दिया जाने वाली राहत राशि में वृद्वि करनी चाहिए ताकि गरीब लोग फिर से अपने मकान बना सके मगर यह राशि उंट के मुह में जीरे के समान होती है जिससे आगजनी की भरपाई नहीं हो सकती। प्रदेश के लोगों को भी सावधानी बरतनी होगी तभी ऐसे अग्निकांड़ रुक सकते हैं।अन्यथा आशियाने जलकर राख होते रहेगें। ईएमएस / 19 अप्रैल 25