राष्ट्रीय
19-Apr-2025
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रांची (ईएमएस)। झारखंड की राजधानी रांची के कांके प्रखंड स्थित बोड़ेया गांव में एक ऐसा ऐतिहासिक उदाहरण मौजूद है, जहां चार सौ साल पहले ही पानी बचाने की अनोखी योजना बनाई गई थी। यहां स्थित मदन मोहन मंदिर सिर्फ धार्मिक आस्था का केंद्र नहीं, बल्कि जल संरक्षण की मिसाल भी है। जल संकट और सूखे की आशंकाओं के बीच जल संरक्षण आज की सबसे बड़ी जरूरत बन गई है। 1665 में नागवंशियों के शासनकाल में ब्राह्मण लक्ष्मी नारायण तिवारी द्वारा निर्मित यह मंदिर ग्रेनाइट पत्थरों से बना हुआ है। खास बात यह है कि मंदिर के निर्माण से पहले ही वाटर हार्वेस्टिंग की सोच पर काम किया गया था। मंदिर की छत को इस तरह डिज़ाइन किया गया कि बारिश का हर एक कतरा व्यर्थ न जाए। पानी को छत से एक विशेष ढलान से बहाकर नीचे बने एक हौज में एकत्र किया जाता था, जिसे ‘पनसोखा’ कहा जाता है। यह प्राचीन जल संरचना आज भी पूरी तरह कार्यरत है। इस हौज से पानी आगे पास के तालाब में चला जाता है, जिससे पूरे क्षेत्र का भूजल स्तर संतुलित बना रहता है। यही वजह है कि भीषण गर्मी और पानी की कमी के दौर में भी बोड़ेया गांव के आसपास पानी की कोई किल्लत नहीं होती। मंदिर परिसर में मौजूद ऐतिहासिक कुआं आज तक सूखा नहीं, जो यहां की जल संरचना की सफलता का जीवंत प्रमाण है। मंदिर के समीप रहने वाले स्थानीय निवासी सुकेश तिवारी बताते हैं कि नागवंशी काल में जल बचाने को लेकर काफी गंभीर सोच थी, और मंदिर का निर्माण उसी विजन के तहत हुआ था। माना जाता है कि यह पूरी संरचना आसपास के भूगोल और जलवायु को ध्यान में रखकर तैयार की गई थी, जिससे वर्षाजल को अधिकतम उपयोग में लाया जा सके। इतना ही नहीं, मंदिर की दीवारों पर दो प्राचीन लिपियों में शिलालेख भी मौजूद हैं। इनमें से एक कैथी लिपि को पढ़ा जा चुका है, लेकिन दूसरी लिपि आज तक रहस्य बनी हुई है, जिसे कोई भी डिकोड नहीं कर सका है। सुदामा/ईएमएस 19 अप्रैल 2025