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16-Apr-2025
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नई दिल्ली,(ईएमएस)। वक्फ संशोधन कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को दोपहर दो बजे से सुनवाई शुरु की गई। वक्फ कानून के खिलाफ देशभर से दायर की गई याचिकाओं पर चीफ जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की तीन जजों की पीठ सुनवाई कर रही है। हालांकि, मौजूदा समय में वक्फ से जुड़े सभी मामलों की सुनवाई नहीं हो सकी है। वक्फ संशोधन कानून के खिलाफ याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि वक्फ संशोधन कानून संविधान के अनुच्छेद 26 का उल्लंघन करता है, क्योंकि यह धार्मिक समुदायों के आस्था और उनके धार्मिक संस्थानों के संचालन के अधिकारों में हस्तक्षेप करता है। उन्होंने इसे बुनियादी धार्मिक जरूरतों का अतिक्रमण करार दिया। अधिवक्ता सिब्बल ने अदालत को बताया कि 1995 के वक्फ कानून के तहत सेंट्रल वक्फ काउंसिल के सभी सदस्य मुस्लिम होते थे, जैसा कि धर्मार्थ संस्थानों के लिए परंपरा है – जैसे हिंदू संस्थानों में हिंदू सदस्य और सिख संस्थानों में सिख। उन्होंने कहा कि नया संशोधन इस परंपरा और संतुलन को तोड़ता है। सीजेआई बोले- समय कम है मुद्दे की बात कहें सुनवाई के दौरान सीजेआई संजीव खन्ना ने अधिवक्ता सिब्बल से कहा, कि हमारे पास समय सीमित है, कृपया सिर्फ प्रमुख और जरूरी बिंदुओं पर ध्यान दें। उन्होंने प्रावधानों को लेकर उठे सवालों पर भी स्पष्ट किया कि कानून में समयसीमा तय करने को असंवैधानिक नहीं ठहराया जा सकता। यहां जस्टिस विश्वनाथन ने कहा, कि संपत्ति और धर्म को अलग रखा जाना चाहिए। संपत्ति का मामला अलग है, सिर्फ उसका प्रबंधन ही धार्मिक दायरे में आ सकता है। बार-बार यह कहना ठीक नहीं कि ये जरूरी धार्मिक कार्य है। लिमिटेशन एक्ट पर विवाद वरिष्ठ अधिवक्ता सिब्बल ने एक और बिंदु पर गंभीर चिंता जताई कि संशोधित कानून में दावा करने की समयसीमा केवल दो साल रखी गई है। कई वक्फ संपत्तियां अब तक रजिस्टर्ड नहीं हैं, ऐसे में समयसीमा का पालन कैसे हो? उन्होंने कहा कि इस प्रावधान से अतिक्रमण करने वालों को कानूनी फायदा मिल जाएगा। इस पर सीजेआई ने कहा, कि सिर्फ समयसीमा तय करना इसे असंवैधानिक नहीं बनाता। वक्फ कानून के खिलाफ याचिकाकर्ताओं की लंबी सूची है। याचिकाएं दायर करने वालों में प्रमुख राजनीतिक और धार्मिक हस्तियों की बात करें तो कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद, एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी, आरजेडी से मनोज कुमार झा, टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा, एसपी सांसद जिया-उर-रहमान, दिल्ली के आप विधायक अमानतुल्लाह खान, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, जमीयत उलेमा-ए-हिंद, डीएमके, आईयूएमएल, वायएसआरसी, तमिल अभिनेता विजय और एपीसीआर (सिविल राइट्स संगठन) के नाम प्रमुख हैं। हस्तक्षेप याचिकाएं भी दायर इसके दूसरी तरफ राजस्थान, गुजरात, हरियाणा, महाराष्ट्र, असम, उत्तराखंड, और छत्तीसगढ़ की राज्य सरकारों ने इस कानून के समर्थन में हस्तक्षेप याचिकाएं दायर की हैं। केंद्र सरकार ने पहले से ही कैविएट दाखिल कर रखा है ताकि कोई भी निर्णय हो उससे पहले सरकार को सूचित किया जाए। हिदायत/ईएमएस 16अप्रैल25