बैसाखी को पोइला, बौइशाख, विशु, और बीहू जैसे नामों से भी जाना जाता है। बैसाखी सिखों का महत्वपूर्ण त्योहार है।सन1699 में इसी दिन गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। इस पंथ की स्थापना का लक्ष्य धर्म और नेकी के रास्ते पर चलना और उसका पालन करना है। किसान अपनी फसल काटने की खुशी में यह त्योहार मनाते हैं तो वहीं पंजाब में इस दिन गिद्दा-भांगड़ा किया जाता है। इस दिन को सिक्खों के नए साल के रूप में भी मनाये जाने की भी परंपरा है।बैसाखी, जिसे मेष संक्रांति भी कहा जाता है, भारतीय समाज की संस्कृति और परंपराओं से गहराई से जुड़ा हुआ है। यह दिन न केवल कृषि क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि सिखों के लिए एक ऐतिहासिक और धार्मिक दिवस है। इस दिन का उत्सव कृषि, समाज, और धर्म के संगम का प्रतीक है, जहां लोग खुशी और समृद्धि की कामना करते हैं और सामाजिक एकता को बढ़ावा देते हैं। बैसाखी का पर्व भारतीय संस्कृति की विविधता और एकता को प्रदर्शित करने वाला एक महत्वपूर्ण पर्व है। इस साल यह पर्व 13 अप्रैल, 2025 को मनाया जाएगा। इस दिन की महत्ता कृषि क्षेत्र में काम करने वाले किसानों के लिए बहुत अधिक है, क्योंकि यह नई फसल की बुवाई और कटाई का समय होता है। यह दिन खुशहाली और समृद्धि का प्रतीक है।बैसाखी पर सिख धर्मावलंबी गुरुद्वारों में विशेष पूजा और अरदास करते हैं। इस दिन विशेष रूप से गुरुद्वारों में भजन-कीर्तन का आयोजन किया जाता है और नगर कीर्तन की परंपरा निभाई जाती है। लोग इस दिन को अपने पवित्र कर्तव्यों को याद करने, गुरु के बताए मार्ग पर चलने और धर्म के प्रति अपनी आस्था को और गहरा करने का अवसर मानते हैं। बैसाखी का पर्व सिख धर्म के लिए एक समय होता है जब वे अपने गुरु की शिक्षा और खालसा पंथ के महत्व को मानते हुए एकजुट होते हैं और समाज में शांति, भाईचारे और समानता का प्रचार करते हैं। बैसाखी रबी की फसल उत्सव है, जिसका कृषि महत्व के साथ-साथ धार्मिक महत्व भी है। यह त्योहार भगवान इंद्र की पूजा से जुड़ा है, जिन्हें बारिश और उर्वरता का देवता माना जाता है। इस दिन, किसान अपनी भरपूर फसल के लिए भगवान इंद्र को धन्यवाद देते हैं और अपनी भविष्य की फसलों के लिए अच्छी बारिश की प्रार्थना करते हैं। बैशाखी के दिन की शुरुआत गंगा नदी या अन्य पवित्र नदियों में पवित्र डुबकी लगाने से होती है, इसके बाद गुरुद्वारों में जाकर प्रार्थना की जाती,मत्था टेका जाता है। लोग नए कपड़े पहनते हैं और अपने प्रियजनों के साथ मिठाइयाँ और उपहारों का आदान-प्रदान करते हैं।बैसाखी के मुख्य अनुष्ठानों में से भांगड़ा और गिद्दा का प्रदर्शन भी है, जो पारंपरिक पंजाबी नृत्य हैं। जिसके माध्यम से फसल के मौसम की खुशी और उत्सव को दर्शाते हैं। इस अवसर पर लोग विशेष व्यंजन भी तैयार करते हैं जैसे लंगर, गुरुद्वारों में परोसा जाने वाला सामुदायिक भोजन, और खीर, ताजा गुड़ से बना मीठा चावल का हलवा बनाया जाता है।बैसाखी सिर्फ एक त्योहार नहीं है; बल्कि यह लोगों के जीवन में खुशियों का प्रतीक है। यह सिख धर्म मे नए साल की शुरुआत का प्रतीक है और एक नए कृषि मौसम की शुरुआत का भी प्रतिनिधित्व करता है। यह त्योहार इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सन 1699 में गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा खालसा पंथ के गठन की याद दिलाता है। इसलिए, बैसाखी को खुशी, आशा और नई शुरुआत के दिन के रूप में मनाया जाता है।बैसाखी पर्व, जो व्यक्तियों को अपनी यात्रा पर विचार करने, नकारात्मकता को त्यागने और सकारात्मकता को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करती है।बैसाखी भरपूर फसल के लिए कृतज्ञता की भावना, समुदाय की भावना को बढ़ावा देने और लोगों के बीच खुशियों को साझा करने की भावना का प्रतीक है। यह श्रम के फल का आनंद लेने, ढोल की थाप पर नृत्य करने और शानदार पारंपरिक व्यंजनों का आनंद लेने का समय है।एक बार 10वें सिख गुरु ने पूछा कि हजारों की भीड़ में कौन धर्म के लिए मरने को तैयार है। आख़िरकार पाँच लोग स्वेच्छा से आगे आए और गुरु गोबिंद सिंह ने उन्हें बपतिस्मा दिया, जिसके बाद वे खालसा नामक समूह के पहले पाँच सदस्य बन गए। बैसाखी त्योहार पर सिख बपतिस्मा की परंपरा इस ऐतिहासिक घटना से ही उत्पन्न हुई थी। (लेखक आध्यात्मिक चिंतक एवं वरिष्ठ पत्रकार है) ईएमएस / 13 अप्रैल 25