ज़रा हटके
12-Apr-2025
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नई दिल्ली (ईएमएस)। ताजा अध्ययनों से स्पष्ट हुआ है कि कामकाजी महिलाओं के बच्चे अक्सर ज्यादा जिम्मेदार, आत्मनिर्भर और जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखने वाले होते हैं। दरअसल, जब महिलाएं अपने करियर और पारिवारिक जीवन में संतुलन बनाकर चलती हैं, तो वे अपने बच्चों के सामने एक सशक्त उदाहरण पेश करती हैं। वे बच्चों को सिखाती हैं कि समय का महत्व क्या है, और कैसे प्राथमिकताओं को समझकर काम करना चाहिए। बच्चों के मन में यह भावना घर कर जाती है कि जीवन में किसी भी लक्ष्य को पाने के लिए मेहनत, अनुशासन और समय प्रबंधन बहुत जरूरी है। कामकाजी महिलाएं न सिर्फ घर और बाहर की जिम्मेदारियां निभाती हैं, बल्कि अपने बच्चों को भी यह सिखाती हैं कि आत्मनिर्भरता जरूरी है। बच्चों को जब यह दिखता है कि उनकी मां खुद अपने सपनों को पूरा करने के लिए काम कर रही हैं, तो वे भी अपने छोटे-छोटे काम खुद करना सीखते हैं। यही आदत आगे चलकर उनमें आत्मविश्वास और स्वतंत्र सोच को जन्म देती है। इसके अलावा, कामकाजी मांएं बच्चों को सही संस्कार और नैतिक शिक्षा देने पर भी पूरा ध्यान देती हैं। वे यह सिखाती हैं कि जीवन में आगे बढ़ने के लिए मेहनत और ईमानदारी ही असली रास्ते हैं। इससे बच्चों में जिम्मेदारी की भावना विकसित होती है। शोध बताते हैं कि ऐसे बच्चे समाज के प्रति भी अधिक संवेदनशील होते हैं और दूसरों की मदद करने में आगे रहते हैं। मां का यह व्यवहार उनके अंदर भी समाज के प्रति एक सकारात्मक सोच और समर्पण का भाव भरता है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि कामकाजी महिलाओं के बच्चे न केवल जीवन के प्रति ज्यादा जिम्मेदार होते हैं, बल्कि वे आत्मनिर्भरता, निर्णय लेने की क्षमता और आत्मविश्वास के साथ जीवन में आगे बढ़ते हैं। यह धारणा कि कामकाजी मांएं बच्चों के लिए समय नहीं निकाल पातीं, अब बदलनी चाहिए, क्योंकि उनके बच्चे आज के प्रतिस्पर्धी दौर में कहीं ज्यादा सक्षम और सजग बनकर उभर रहे हैं। बता दें कि समाज में लंबे समय से यह धारणा रही है कि कामकाजी महिलाएं अपने बच्चों को समय नहीं दे पातीं, जिससे उनके बच्चों में जिम्मेदारी और अनुशासन की कमी हो सकती है। लेकिन हाल के मनोवैज्ञानिक शोधों और अध्ययनों ने इस सोच को बदलने की दिशा में कदम बढ़ाया है। सुदामा/ईएमएस 12 अप्रैल 2025