ज़रा हटके
12-Apr-2025
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नई दिल्ली (ईएमएस)। मल्टीग्रेन आटा जहां ज्यादा फाइबर और पोषक तत्व प्रदान करता है, वहीं साधारण गेहूं का आटा भी शरीर को जरूरी ऊर्जा और पोषण देता है। भारतीय घरों में रोटी बनाने और खाने का तरीका भी हर घर में अलग होता है कोई पतली रोटी बनाता है तो कोई मोटी। पतली रोटियां आमतौर पर सॉफ्ट होती हैं और इन्हें चबाना आसान होता है। वहीं, मोटी रोटियां अगर देर तक रख दी जाएं तो सख्त हो जाती हैं, जिससे उन्हें चबाना थोड़ा मुश्किल हो जाता है। सेहत की दृष्टि से देखें तो दोनों तरह की रोटियां फायदेमंद हैं, लेकिन यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि रोटी किस तरह के आटे से और किस विधि से बनाई गई है। अगर पतली रोटी को गेहूं या मल्टीग्रेन आटे से बनाया गया हो और उसमें घी-तेल कम इस्तेमाल हुआ हो, तो वह जल्दी पचने वाली, हल्की और सॉफ्ट होती है। इसके पोषक तत्व भी सही तरह से बरकरार रहते हैं क्योंकि इसे पकाने में बहुत अधिक समय या तेल-घी की आवश्यकता नहीं होती। पतली रोटी का एक और फायदा यह है कि यह डायजेस्टिव सिस्टम के लिए हल्की रहती है और फाइबर के साथ-साथ अन्य पोषक तत्व भी आसानी से शरीर को मिल जाते हैं। मोटी रोटियों में भी भरपूर पोषण हो सकता है, लेकिन ये तब फायदेमंद होती हैं जब उन्हें सही तरह से पकाया जाए और गर्म ही खाया जाए। यदि मोटी रोटी को देर तक रखा जाए तो यह सख्त होकर पोषण को पचाने में बाधा बन सकती है। अंततः, सेहत के लिहाज से पतली रोटी ज्यादा बेहतर विकल्प मानी जा सकती है, खासकर जब उसे साबुत अनाज से बनाया गया हो और कम तेल-घी में सेककर परोसा गया हो। हालांकि, हर व्यक्ति की जरूरत और पाचन क्षमता अलग होती है। सुदामा/ईएमएस 12 अप्रैल 2025