- 7000 साल पुराने रहस्य से उठेगा पर्दा भुवनेश्वर,(ईएमएस)। ओडिशा के खुर्दा जिले के नारा हुडा में पुरातात्विक खुदाई में ताम्र-पाषाण युग के अवशेष मिले हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण टीम 2021 से इस स्थान पर खुदाई कर रही है और हाल ही में टीम को मिट्टी के गोलाकार ढांचे, तांबे और पत्थर के औजार, मिट्टी के बर्तन, आभूषण और कई प्राचीन वस्तुएं मिली हैं। खुदाई में प्राप्त गोल झोपड़ियों के अवशेष यह दर्शाते हैं कि प्राचीन काल में यहां लोग स्थायी रूप से बसने लगे थे। झोपड़ियों की दीवारें मिट्टी की थीं और खंभे लगाने के लिए गड्ढे बनाए गए थे। आसपास की ज़मीन लाल रंग की मिट्टी से ढकी थी। पुरातत्ववेत्ता के मुताबिक खुदाई में तांबे और हड्डियों से बनी वस्तुएं, कांच की चूड़ियों के टुकड़े, मिट्टी की मूर्तियां, पत्थर को चमकाने के औजार, खिलौने और हथौड़े भी मिले हैं। ताम्र-पाषाण युग नवपाषाण युग के बाद आया था, जिसमें मनुष्यों ने पत्थर के बजाय तांबे के औजारों का इस्तेमाल करना शुरू किया। यह काल करीब 4000 ईसा पूर्व से 2000 ईसा पूर्व तक फैला था। इस युग में लोग मुख्य रूप से कृषि और पशुपालन पर निर्भर थे। भारत में इस काल के कई प्रमुख स्थल हैं, जैसे राजस्थान में गिलुंड और अहार, महाराष्ट्र में इनामगांव और दैमाबाद, और मध्य प्रदेश में नवदाटोली और एरण है। खुदाई में यहां से तीन अलग-अलग ऐतिहासिक काल के प्रमाण मिले हैं ताम्र-पाषाण युग (2000 ईसा पूर्व–1000 ईसा पूर्व), लौह युग (1000 ईसा पूर्व–400 ईसा पूर्व) और प्रारंभिक ऐतिहासिक काल (400 ईसा पूर्व–200 ईसा पूर्व)। यहां से मिले मिट्टी के बर्तन लाल, भूरे, चॉकलेट और काले-लाल रंग के हैं, जिनमें से कुछ क्रूसिबल के रूप में पहचाने गए हैं। इस खोज से यह साफ हो गया है कि इस क्षेत्र में हड़प्पा सभ्यता से पहले भी विकसित मानव बस्तियां थीं। इससे पहले, नारा हुडा के पास अन्नालाजोडी गांव में नियो-चालकोलिथिक युग की वस्तुएं मिली थीं, जो इस क्षेत्र के मानव सभ्यता के प्राचीन होने का प्रमाण देती हैं। पुरातत्व टीम अभी भी इस स्थल की जांच कर रही है ताकि 7000 साल पुराने इस रहस्य से पर्दा उठाया जा सके। सिराज/ईएमएस 06 अप्रैल 2025