राज्य
06-Apr-2025


इन्दौर (ईएमएस) मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय खंडपीठ इन्दौर में जस्टिस सुबोध अभ्यंकर की एकल पीठ ने बॉयोमेट्रिक मशीन द्वारा पहचान के मामले में दायर याचिका पर सुनवाई करते कहा कि यदि मशीन पहचान में नाकाम रहती है, तो उसके कारण किसी के मौलिक अधिकारों पर रोक नहीं लगाई जा सकती। हमारी कोर्ट का यह भी मानना है कि जब किसी व्यक्ति को बॉयोमैट्रिक मशीन पहचानती नहीं है, तो उसकी पहचान खत्म नहीं हो जाती। ऐसी हालत में दूसरे दस्तावेज जैसे पैन कार्ड, समग्र आइडी, ड्राइविंग लाइसेंस और पासपोर्ट उसकी मदद कर सकते हैं। प्रकरण जीवन बीमा निगम द्वारा विनोद कुमार मीणा को ऑन बोर्डिंग के दौरान बॉयोमेट्रिक पहचान नहीं होने के कारण नौकरी देने से मना करने पर दायर याचिका का था। जिसमें बताया गया था कि विनोद कुमार मीणा परीक्षा में शामिल तो हुए लेकिन हॉल में प्रवेश के दौरान टीसीएस ने उनके बॉयोमेट्रिक सत्यापन को गलत बता दिया। याचिका पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि यह एक तकनीकी मुद्दा था, जिसके कारण उन्हें नौकरी पर नहीं लिया जा रहा है। इस पर कोर्ट ने कहा यदि मशीन गड़बड़ करती है, तो किसी के मौलिक अधिकार नहीं छीने जा सकते। न्यायालय भी इस पर विचार कर रहा है कि इसके लिए क्या नया नियम बनाया जाए। अदालत जो नया नियम बनाएगी, उसमें पहचान का कोई और तरीका भी होगा। इसके बाद कोर्ट ने जीवन बीमा निगम को याचिकाकर्ता के पास मौजूद दस्तावेज के आधार पर फिर से सत्यापन कर चार सप्ताह में पुनः नियुक्ति पत्र जारी करने के आदेश दिए। आनन्द पुरोहित/ 06 अप्रैल 2025