जगदलपुर(ईएमएस)। बस्तर संभाग की धरती केवल खनिजों की खान नहीं, बल्कि जल भंडार के मामले में भी बेहद समृद्ध है। इंद्रावती नदी और घने वनों की बदौलत यहां भूजल का स्तर सुरक्षित है, लेकिन इसके बावजूद पूरे राज्य में सबसे कम भूजल दोहन यहीं होता है। इंद्रावती नदी को जीवनदायिनी मानने वाले हजारों किसान आज भी उसकी कृपा पर खेती करते हैं। गर्मियों में जलस्तर घटने की चिंता और वीआईपी दौरों व आयोजनों के दौरान एनीकेट्स के खुलने से किसान परेशान हैं। इंद्रावती की सहायक नदियों के एनीकेट्स भी जर्जर हो चुके हैं, जिससे पानी का संरक्षण प्रभावित होता है। सेंट्रल ग्राउंड वॉटर बोर्ड के सर्वे में सामने आया है कि बस्तर जिले में सिर्फ 33.62% भूजल का उपयोग होता है, जो राज्य के औसत 48.43% से काफी कम है। दंतेवाड़ा में यह आंकड़ा 15.4%, नारायणपुर में 4.2% और सुकमा में मात्र 3% है। कांकेर जिले का चारामा ब्लॉक ही संभाग का एकमात्र क्षेत्र है जिसे ‘सेमी क्रिटिकल ज़ोन’ में रखा गया है, बाकी सभी ब्लॉक ‘सुरक्षित’ हैं। भूगर्भीय दृष्टि से भी बस्तर बेहद खास है। यहां की ज़मीन में ग्रेनाइट, ग्रेनाइटॉइड्स, बैंडेड आयरन फॉर्मेशन और तलछटी चट्टानों का समावेश है, जो भूजल संग्रहण में सहायक हैं। बैलाडीला क्षेत्र, डोंगरगढ़ ग्रेनाइट्स और बस्तर गनीस जैसी चट्टानों के नीचे विशाल जल भंडार छुपे होने के संकेत मिले हैं। जानकारों का मानना है कि यदि इस जल भंडार का योजनाबद्ध तरीके से उपयोग किया जाए, तो बस्तर न केवल पेयजल संकट से उबर सकता है, बल्कि यहां की कृषि को भी नई दिशा मिल सकती है। सत्यप्रकाश(ईएमएस)04 अप्रैल 2025