राष्ट्रीय
31-Mar-2025


नई दिल्ली,(ईएमएस)। भारत में परमाणु रिएक्टरों के निर्माण और डिजाइन के लिए अमेरिकी कंपनी को ऐतिहासिक मंजूरी मिल गई है। अमेरिकी ऊर्जा विभाग से मिली मंजूरी के बाद होल्टेक इंटरनेशनल को हरी झंडी मिल गई। अब अमेरिकी कंपनी को भारत में न्यूक्लियर रिएक्टर बनाने और डिजाइन करने की अनुमति मिल सकती है। होल्टेक को भारत की तीन कंपनियों होल्टेक एशिया, टाटा कंसल्टिंग इंजीनियर्स लिमिटेड और लार्सन एंड टुब्रो लिमिटेड को अप्रशिक्षित छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर तकनीक ट्रांसफर करने की इजाजत दी है। होल्टेक इंटरनेशनल भारतीय-अमेरिकी उद्योगपति क्रिस पी सिंह द्वारा प्रमोट की गई कंपनी है। इसने 2010 से पुणे में एक इंजीनियरिंग यूनिट और गुजरात में एक निर्माण यूनिट स्थापित किया है। मंजूरी के बाद होल्टेक के लिए संभव है कि वह बाद में इसमें संशोधन की मांग कर सके और अन्य सरकारी संस्थाओं जैसे कि न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड, और एटॉमिक एनर्जी रिव्यू बोर्ड को भी इस सूची में जोड़ सके। हालांकि, इसके लिए भारत सरकार से जरूरी गैर-प्रसार आश्वासन की जरुरत होगी, जो कि इन सरकारी संस्थाओं से अभी तक प्राप्त नहीं हुआ है। होल्टेक को भारतीय कंपनियों को केवल शांतिपूर्ण परमाणु गतिविधियों के लिए यह तकनीक ट्रांसफर करने की इजाजत है। यह भी तय किया गया है कि इसका इस्तेमाल परमाणु हथियारों या किसी भी सैन्य उद्देश्य के लिए नहीं किया जाएगा। इस समझौते के बाद भारत की परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में एक नई क्रांति देखने को मिल सकती है। इससे देश को नई, सुरक्षित और प्रभावी परमाणु रिएक्टर तकनीकों का लाभ मिल सकता है। वर्तमान में भारत का परमाणु कार्यक्रम मुख्य रूप से भारी पानी रिएक्टरों पर आधारित है, जो दुनिया में अधिकांश परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में इस्तेमाल होने वाली प्रेसराइज्ड वाटर रिएक्टर तकनीक से मेल नहीं खाती है। होल्टेक का एसएमआर-300 डिजाइन अमेरिका के ऊर्जा विभाग के एडवांस्ड रिएक्टर डेमॉन्स्ट्रेशन प्रोग्राम द्वारा समर्थित है। यह छोटे रिएक्टरों के निर्माण के लिए एक अहम कदम हो सकता है। इसके अतिरिक्त होल्टेक के पास गुजरात में एक गैर-परमाणु निर्माण यूनिट है। अगर प्रस्तावित निर्माण योजनाएं मंजूर होती हैं तो कंपनी अपनी उत्पादन क्षमता को दोगुना करने की योजना बना सकती है। भारत और अमेरिका मिलकर चीन को प्रतिस्पर्धा देने की स्थिति में आ सकते हैं। चीन भी छोटे रिएक्टरों के क्षेत्र में अग्रसर है और इसे वैश्विक दक्षिण में अपनी कूटनीतिक पहुंच बढ़ाने के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण के रूप में देखता है। सिराज/ईएमएस 31 मार्च 2025