ज़रा हटके
31-Mar-2025
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नई दिल्ली (ईएमएस)। कुचला के बीजों में स्ट्रिकनीन, ब्रुसीन, इफेड्रिन और नेओपेल्लिन जैसे एल्केलाइड्स पाए जाते हैं, जो इसे औषधीय रूप से प्रभावी बनाते हैं, लेकिन इसकी विषाक्तता सेहत के लिए खतरा भी पैदा कर सकती है। एक ताजा शोध में बताया गया है कि कुचला के बीजों का सही मात्रा में उपयोग कई स्वास्थ्य लाभ प्रदान कर सकता है। यह पाचन समस्याओं, सिरदर्द, माइग्रेन और अनिद्रा जैसी समस्याओं में राहत देने के लिए जाना जाता है। इसके अलावा, यह पुरुषों में प्रजनन क्षमता को बढ़ाने में भी सहायक हो सकता है। होम्योपैथी में इसका उपयोग तनाव, थकान, मासिक धर्म की समस्याओं और एलर्जी के उपचार में किया जाता है। शोध में यह भी पाया गया है कि कुचला में एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं, जो शरीर को फ्री रैडिकल्स से बचाने में मदद कर सकते हैं। इसके अलावा, इसका उपयोग ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रित करने और फ्लू जैसी बीमारियों से बचाव में भी किया जाता है। हालांकि, इसके अधिक सेवन से गंभीर दुष्प्रभाव हो सकते हैं। इसमें मौजूद स्ट्रिकनीन नामक तत्व स्नायविक तंत्र को प्रभावित कर सकता है, जिससे बेचैनी, मांसपेशियों में ऐंठन, चक्कर आना और यहां तक कि त्वचा का रंग नीला पड़ने जैसी समस्याएं हो सकती हैं। यह अत्यधिक विषैला होता है और अधिक मात्रा में सेवन करने से मृत्यु तक हो सकती है। गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को इसका सेवन नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह भ्रूण और नवजात शिशु के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो सकता है। लिवर संबंधी समस्याओं से जूझ रहे लोगों के लिए भी यह नुकसानदेह साबित हो सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि कुचला का उपयोग केवल विशेषज्ञ चिकित्सक की सलाह के बाद ही किया जाना चाहिए। इसकी औषधीय शक्ति इसे महत्वपूर्ण बनाती है, लेकिन इसकी विषाक्तता इसे घातक भी बना सकती है। इसलिए, इसे सावधानीपूर्वक और सही खुराक में ही लिया जाना चाहिए, अन्यथा इसके दुष्प्रभाव घातक साबित हो सकते हैं। बता दें कि कुचला, जिसे अंग्रेजी में नक्स वोमिका कहा जाता है, एक औषधीय वृक्ष है जिसके बीजों का उपयोग आयुर्वेदिक और होम्योपैथिक चिकित्सा में किया जाता है। इसके बीजों से कई प्रकार की दवाइयाँ तैयार की जाती हैं, लेकिन इसमें मौजूद स्ट्रिकनीन और ब्रुसीन जैसे विषैले तत्व इसे अत्यधिक सावधानी से उपयोग करने योग्य बनाते हैं। सुदामा/ईएमएस 31 मार्च 2025