लेख
30-Mar-2025
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मुकद्दस रमजान सब्र ,प्रेम और भाईचारे के साथ साथ अल्लाह की खिदमत का एक खास महिना है। इस्लाम धर्म को मानने वाला हर मुस्लमान रमजान का बेसब्री से इन्तजार करता है। रमजान शुरू होते है तो हर रोजेदार की दिनचर्या बदल जाती है। बडे सवेरे उठना और अल्लाह को याद करने के साथ ही पांचो वक्त की नमाज रोजेदार को अल्लाह की इबादत का मौका दिलाती है। रमजान की शुरूआत भी चांद से ही होती है और रमजान पूरे होने पर ईद का जब चांद निकलता है तो सबके चेहरे पर खुशी छा जाती है। दरअसल रमजान के सकुशल बीतने की खुशी में ही अल्लाह को शुक्रिया अदा करने के लिए ही ईद उल फितर का त्यौहार मनाया जाता है। वही अल्लाह के नेक बन्दो की खिदमत का भी मुबारक मौका है ।नमाज के बाद अल्लाह ने जो दूसरी इबादत मुसलमानों के लिए अनिवार्य की है वह है रोजा। रोजे से मुराद ये है कि रमजान के महीने में 30 दिन तक सुबह से शाम तक खाना-पीना नहीं होगा। नमाज की तरह ही इबादत रोजा भी अल्लाह के भेजे सभी पैगंबरों के मानने वालों पर फर्ज हैं और आज भी अधिकतर धर्मों में किसी न किसी रूप में मौजूद हैं। वास्तव में इस्लाम का रोजे से तात्पर्य यह है कि बंदा अपना जीवन रब की इच्छा और उसके आदेशों को मानते हुए गुजार दे। साल भर में रमजान महीने के रोजे इसी मकसद का प्रशिक्षण हैं।इस्लामिक कैलेंडर के नौवें महीने को रमज़ान का महीना कहा जाता है। इस महीने में तीस दिनों तक रोज़ा रखना प्रत्येक मुस्लिम के लिए अनिवार्य बताया गया है। मुसलमानों के लिए यह पाक रोज़ा का महीना होता है। रोज़ा के लिए जो अरबी शब्द बोला जाता है, उसे ‘सॉम’ कहते है,इसका शाब्दिक अर्थ है ‘संयम करना।‘ सॉम शब्द इस महीने की सच्ची भावना को दर्शाता है। जिसमें सूर्योदय से सूर्यास्त होने तक रोज़ा रखना होता है। रोज़े का मतलब होता है व्यक्ति के मन को अध्यात्म से जोड़ना। जिससे उसके अंदर कृतज्ञता और स्नेह का ऐसा भाव उत्पन्न हो। जिससे व्यक्ति पूरे वर्ष संयम और नियम से चल पाए। सूर्यास्त के एक दम बाद रोज़ा खोला जाता है। रोजेदार मुस्लिम खजूर और पानी के साथ इफ़्तार करते हैं। क्योंकि हज़रत मुहम्मद साहब अपना रोज़ा खजूर और पानी से खोलते थे। रमज़ान में मुस्लिम समाज एक अतिरिक्त नमाज़ पढ़ते हैं जिन्हें तरावीह कहा जाता है। तरावीह की नमाज़ रात की नमाज़ के बाद मस्जिद में सामूहिक रूप से पढ़ी जाती है। इस नमाज़ में पूरा कुरआन रमज़ान के महीने के अंदर पढ़ा जाता है। रमज़ान में कुरआन पढ़ने पर अत्यधिक ज़ोर दिया गया है। ताकि प्रत्येक रोज़ेदार इस पर चिंतन कर सके। आज कल के हालात के चलते विश्वभर के मुस्लिम चिंतित हैं कि वे तरावीह की नमाज़ कैसे अदा करेंगे। लेकिन यह कोई चिंता का विषय नहीं। हदीस की किताब अल-बुख़ारी में आता है की इस्लाम के पैगंबर तरावीह की नमाज़ अकेले घर पर पढ़ते थे, मस्जिद में नहीं।एक माह तक रोजा रख चुके लोग नये नये कपडे पहनकर ईद की नमाज अदा करने के लिए ईदगाह जाते है। ईदगाह में नमाज के बाद एक दूसरे के गले मिलकर ईद की मुबारकबाद दी जाती है।लेकिन इस बार कोरोना के चलते बिना गले मिले ही दिल से एक दूसरे को दुआएं देंगे तो अच्छा रहेगा। रमजान के बाद आने वाली ईद उल फितर की शुरूआत जगं ए बदर के बाद सन 624 ईसवी के पैगम्बर मौहम्मद साहब द्वारा ईद उल फितर मनाने से मनाने से हुई थी। रमजान साल का एक अनूठा महिना होता है। इस महिने में हर मुस्लमान जंहा ज्यादा से ज्यादा समय अल्लाह की रहमत में गुजारना चाहता है। वही वह स्वयं को सुधारने व खुदा के बन्दो के चेहरो पर रौनक लाने के लिए उनके हर गम में शरीक होता है। जोखुदा के बन्दे पैसो से मोहताज है, भूखे है ,लाचार है उनकी हर हाल में मदद कर उन्हे बराबरी पर लाने की कौशिश की जाती है। रमजान के महिने में हर दिन पाक साफ रहने की हिदायत है ताकि रोजेदार हर तरह के गुनाहो से दूर रहे। आपसी भाईचारे से रहना सीखे। खुदा की इबादत करे। नेकी करे लेकिन ईद उल फितर की खुशी के मौके पर कैसे हो दिन की शुरूआत यह भी इस्लाम में बताया गया है । इस्लाम धर्म से जुड़े सलीम खान बताते है कि ईद उल फितर के दिन की शुरूआत फजर की नमाज के साथ होती है। रमजान में तीस दिनो तक रोजा रख चुके रोजेदारो एवं उनको भी जो बीमारी या फिर किसी अन्य वजह से रोजा नही रख पाए ,को मिस्वाक दातून करने के बाद गुसल नहाना करना चाहिए। फिर साफ कपडे पहनकर कपडो पर इतर की खुशबू के साथ कुछ खाकर ईदगाह जाना चाहिए। ध्यान रहे ईद की नमाज से पहले फितरा और जकात की जरूरी रस्म नही भूलनी चाहिए। यही वह रस्म है जो गरीब और मोहताज पडौसी के चेहरे पर सहायता की रौनक लाती है। इस्लाम मानता है कि मनुष्य में वासनाएं,इच्छाएं,और भावनाएं प्राकृतिक रूप से समाहित है इसी कारण उसके स्वभाव में तेजी,उत्तेजना और जोश होता है। जिसे जड से तो समाप्त नही किया जा सकता लेकिन नियन्त्रित जरूर किया जा सकता है। इस नियन्त्रण के लिए ही रमजान में रोजो की व्यवस्था की गई है। ताकि मनुष्य अल्लाह को याद करने के साथ साथ अपने अन्दर की बुराईयों को दूर करते हुए आत्म नियन्त्रण करना सीखे और एक अच्छे भले इंसान के रूप में अपने जीवन का यापन करे। वैसे तो इस्लाम में हर रोज पांच वक्त की नमाज पढने की हिदायत दी गई है। लेकिन रमजान में एक विशेष नमाज़ भी अता की जाती है।लेकिन रमजान के दिनो में चूंकि हर रोजेदार अल्लाह के करीब होता है इसलिए पांचो वक्त की नमाज पढना वह अपना फर्ज समझता है। रोजा रखने से जहां पेट बिलकुल ठीक रहता है और शरीर का शुद्धिकरण हो जाता है। वही पांचो वक्त की नमाज पढने से उसकी योगिक क्रियाएं भी हो जाती है। नमाज की शरीरिक स्थिति इस तरह की होती है कि सभी तरह के आसन और प्राणायाम अल्लाह की इबादत में पूरे हो जाते है। ईदगाह में ईद की नमाज अदा करते समय तकबीर पढे,अल्लाह हु अकबर अल्लाह हु अकबर लाईलाह इल्लाह अल्लाह हु अकबर बडा है अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक नही । सारी तारीफे अल्लाह के लिए है। ईदगाह की नमाज अदा करने के बाद एक दूसरे को ईद की बधाई देने व लेने में जो खुशी मिलती है उसको जरूर प्राप्त करना चाहिए। ईद की बधाई में सिर्फ मुस्लमान ही नही हिन्दू,सिख और ईसाइ भी शरीक होते है। यह वह त्योहार है जो हमे इंसानियत की सीख देता है। जो दूसरो की भलाई का जज्बा देता है और मुल्क की तरक्की व हिफाजत का जुनून देता है। ईद की खुशी रोजेदारो को तभी से मिलनी शुरू हो जाती है। जब रमजान में रोजेदार मुस्लमानो के साथ साथ दूसरे धर्मो से जुडे लोग भी रोजा इफतार की रस्म में शरीक होकर आपसी भाईचारे व एकता का पैगाम देते है। हमे केवल ओर केवल धार्मिक भावना के तहत ही रोजा इफतारी कराकर रोजेदारो की खिदमत करनी चाहिए और उन्हे तहेदिल से मुबारकबाद देकर भाईचारे में इजाफे की शुरूआत करनी चाहिए। (लेखक आध्यात्मिक चिंतक व वरिष्ठ पत्रकार है) ईएमएस / 30 मार्च 25