लेख
29-Mar-2025
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(चैत्र नवरात्र 30 मार्च-6 अप्रैल 2025-गज़ पे सवार होक़े आएगी शेरावाँलिएं ) वैश्विक स्तरपर आदि अनादि काल से भारत आध्यात्मिक, आस्था का प्रतीक रहा है,जो हजारों वर्षों पूर्व के इतिहास में दर्ज है,जिसे हम कहानियों मान्यताओं के रूप में अपने पूर्वजों, पूर्वज पीडियों और वर्तमान में बड़े बुजुर्गों से सुनते आ रहे हैं। भारत एक सर्वधर्म धर्मनिरपेक्ष देश है जहां हिंदू मुस्लिम सिख इसाई सहित अनेकों जातियों प्रजातियों उपजातियों द्वारा अपने-अपने स्तर व मान्यताओं के अनुसार धार्मिक अनुष्ठान करते हैं। किसी को कोई पाबंदी नहीं है, यही भारतीय संविधान की खूबसूरती है,यह हम आज इसलिए कह रहे हैं क्योंकि 30 मार्च से 6 अप्रैल 2025 तक शुभ चैत्र नवरात्र दिवस हैं जो प्रतिवर्ष अक्सर अप्रैल महीने की भिन्न-भिन्न तिथियां में मनाए जाते हैं। यह किसी एक राज्य में नहीं बल्कि अनेक राज्यों में गहरी आस्था के साथ मनाया जाता है। इस अवधि में कठोर व्रत रखा जाता हैअपनी अपनी मान्यता सार्थकता के अनुसार-चप्पल नहीं पहनना, बाल शेविंग नहीं बनाना, नीचे धरती पर सोना, ब्रह्मचर्य रहना मौन धारण करना सहित अपनी शक्ति के अनुसार अनेक प्रकारों की के बातों से दूर रहने का पालन अपनी मनोकामना पूरा करने, फल की चाहना के लिए मां दुर्गा काली से कामना करते हैं। एक महत्वपूर्ण बात यह है कि इस बार मां दुर्गा गज यानें हाथी पर विराजमान होकर आ रही है। चूँकि चैत्र नवरात्र 30 मार्च-6 अप्रैल 2025- गज पर सवार होकर आएगी शेरावाँलिएं इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, चैत्र नवरात्र में मां का हर स्वरूप,नारी शक्ति के हर पहलू को दर्शाता है व महिला सशक्तिकरण की एक अद्भुत मिसाल भी पेश करता है। साथियों बात अगर हम यह पर्व साल में चार बार मनाने की करें तो, यह पर्व साल में चार बार मनाया जाता है, जिनमें चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि का विशेष महत्व है. चैत्र नवरात्रि देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की आराधना का पर्व है, जो हर वर्ष चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से आरंभ होता है।इस वर्ष चैत्र नवरात्रि का आरंभ 30 मार्च 2025 (रविवार) को होगा और इसका समापन 6 अप्रैल 2025 (रविवार) को होगा, इस बार नवरात्रि 9 दिन की बजाय केवल 8 दिन की होगी, क्योंकि तिथियों में परिवर्तन के कारण अष्टमी और नवमी एक ही दिन पड़ रही हैं।नवरात्रि सामान्यतः 9 दिनों तक मनाई जाती है, किंतु इस वर्ष तिथियों में कमी के कारण यह उत्सव 8 दिनों में समाप्त होगा। इसका कारण पंचांग की गणना है, जिसमें कभी-कभी तिथियों के संयोग के चलते एक दिन कम हो जाता है। फिर भी, धार्मिक दृष्टि से इसका विशेष महत्व है, क्योंकि कम दिनों में अधिक ऊर्जा और श्रद्धा के साथ पूजा करने का शुभ अवसर प्राप्त होता है। साथियों बात अगर हम 30 मार्च से 6 अप्रैल तक माता की सवारी और उसके महत्व की करें तो,इस बार चैत्र नवरात्रि की शुरुआत रविवार से हो रही है और जब रविवार के दिन से नवरात्रि शुरू होती है तो माता का वाहन हाथी होता है। हाथी पर सवार होकर माता का आगमन अधिक वर्षा का संकेत देता है। वैसे तो अलग- अलग वार याने दिन के अनुसार नवरात्रि में मां दुर्गा के वाहन डोली, नाव, घोड़ा, भैंसा, मनुष्य व हाथी होते हैं, मान्यता के अनुसार यदि नवरात्रि सोमवार या रविवार से शुरू हो रही है तो मां दुर्गा का वाहन हाथी होता है, जो अधिक वर्षा के संकेत देता है। वहीं यदि नवरात्रि मंगलवार और शनिवार शुरू होती है, तो मां का वाहन घोड़ा होता है, जो सत्ता परिवर्तन का संकेत देता है। इसके अलावा गुरुवार या शुक्रवार से शुरू होने पर मां दुर्गा डोली में बैठकर आती हैं जो रक्तपात, तांडव, जन-धन हानि का संकेत बताता है। वहीं बुधवार के दिन से नवरात्रि की शुरुआत होती है, तो मां नाव पर सवार होकर आती हैं। नाव पर सवार माता का आगमन शुभ होता है। अगर नवरात्रि का समापन रविवार और सोमवार के दिन हो रहा है, तो मां दुर्गा भैंसे पर सवार होकर जाती हैं, जिसे शुभ नहीं माना जाता है। इसका मतलब होता है कि देश में शोक और रोग बढ़ेंगे। वहीं शनिवार और मंगलवार को नवरात्रि का समापन हो तो मां जगदंबे मुर्गे पर सवार होकर जाती हैं। मुर्गे की सवारी दुख और कष्ट की वृद्धि को ओर इशारा करता है। बुधवार और शुक्रवार को नवरात्रि समाप्त होती है, तो मां की वापसी हाथी पर होती है, जो अधिक वर्षा को ओर संकेत करता है। इसके अलावा यदि नवरात्रि का समापन गुरुवार को हो रहा है तो मां दुर्गा मनुष्य के ऊपर सवार होकर जाती हैं, जो सुख और शांति की वृद्धि की ओर इशारा करता है। साथियों बात अगर हम चैत्र नवरात्र उत्सव आगमन की मान्यताओं की करें तो, रविवार 30 मार्च से चैत्र नवरात्र की शुरूआत होने जा रही है, जो 6 अप्रैल को समाप्त होगी. नवरात्र के नौ दिनों में मां दुर्गा के 9 स्वरूपों की उपासना की जाती है। नौ दिनों के इस पर्व को भक्त जन बडे़ ही श्रद्धा भाव से मनाते हैं। इस नवरात्र में लोग पूरे 8 दिन के व्रत भी रखते हैं तो कुछ लोग केवल शुरुआत और आखिरी का व्रत भी करते हैं, चैत्र नवरात्र के 8 दिनों तक देवियों के स्वरूपों के अनुसार ही उन्हें अलग-अगल भोग लगाया जाता हैँ।मांशैलपुत्री -नवरात्र के पहले दिनघटस्थापना की जाती है, इसी दिन मां के प्रथम स्वरूप की पूजा होती है. मां शैलपुत्री हिमालय की पुत्री हैं. मां को संफेद रंग पंसद है. मां को भोग में शुद्ध गाय के घी या घी से बनी चीजों को भोग लगाया जाता है, माना जाता है कि इससे आरोग्य का अर्शीवाद मिलता है।मां ब्रह्मचारिणी - चैत्र नवरात्र के दूसरे दिन मां के दूसरे स्वरूप की पूजा होती है. भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए मां ने कठोर तपस्या की थी. इस कठोर तप के कारण उनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा, मां का प्रिय भोग शक्कर माना जाता है शक्कर का भोग लगाने से आयु लंबी होती है। मां चंद्रघंटा-पौराणिक कथाओं के अनुसार,मां दुर्गा नेदानवों के अंतक को खत्म करने के लिए चंद्रघंटा का रूप लिया था, इसी अवतार ने महिषासुर का वध कर देवताओं की रक्षा की थी. मां चंद्रघंटा को दूध का भोग लगाया जाता है, माता को दूध से बनी मिठाई या खीर का भोग लगाने से धन लाभ होता है।मां कुष्मांडा - मान्यता है कि मां कुष्मांडा ने अपनी दिव्य मुस्कान से ब्रह्मांड की रचना की है।मां को मालपुए का भोग लगाया जाता है. मां को मालपुए बेहद प्रसन्न हैं।भोग से प्रसन्न होकर मां अपने भक्तों की इच्छा पूरी कर देती हैं।मां स्कंदमाता-पौराणिक कथा के अनुसार, मां पार्वती ने अपने पुत्र कार्तिकेय को युद्ध के लिए तैयार करने के लिए स्कंदमाता का रूप लिया था।मां स्कंदमाता को केले का भोग लगाया जाता है मानयता है मां को केले का भोग लगाने से शारीरिक रोगों से मुक्ति मिलती है।छठे दिन मां कात्यानी - महर्षि कात्यायन के घर मां का जन्म हुआ था इसी वजह से उनका नाम कात्यानी पड़ा, देवी कात्यानी को देवी दुर्गा का छठा रूप कहा जाता है, मां को शहद बहुत प्रिय हैं। शहद का भोग लगाने से आकर्षण की प्राप्ति होती है।मां कालरात्रि - मां कालरात्रि ने ही शुभं-निशुभं औररक्तबीज नाम के राक्षसों को वध किया था। मां कालरात्रि नकारात्मकता का विनाश करने वाली हैं इनके शरीर रंग काला और बाल बिखरे होते हैं, इसलिए इन्हें कालरात्रि कहा जाता है।मां को गुड़ का बेहद पंसद है इन्हें गुड़ का भोग लगाने से आकस्मिक मौत नहीं होती है।मांमहागौरी - महागौरी को मां पार्वती के रूप माना जाता है। आठवें दिन को अष्टमी कहा जाता है, सभी भक्त इन दिन विशेष उपासना करते है. इस दिन नारियल का भोग लगता है,नारियल को भोग लगने से मां अपकी मनोकामना पूरी करती हैं। मां सिद्धदात्री - मां सिद्धदात्री को शक्ति का रूप कहा जाता है. मां भक्तों के भक्ती से प्रसन्न होकर नौ सिद्ध दें सकती हैं. नवरात्र के नौंवे दिन इनकी पूजा- हवन होने के बाद कन्या पूजन होती है. इस दिन मां को हलवा-पूरी और चने की सब्जी चढ़ाई जाती है फिर उस प्रसाद को कुमारी कन्याओं को खिलाए जाता है और खुद भी खाकर अपना नौ दिन के व्रत को समाप्त करते हैँ। साथियों बात अगर हम कन्याओं और देवी के शास्त्रों की पूजा की करें तो,अष्टमी को विविध प्रकार से मां शक्ति की पूजा करें, इस दिन देवी के शस्त्रों की पूजा करनी चाहिए, इस तिथि पर विविध प्रकार से पूजा करनी चाहिए और विशेष आहुतियों के साथ देवी की प्रसन्नता के लिए हवन करवाना चाहिए, इसके साथ ही 9 कन्याओं को देवी का स्वरूप मानते हुए भोजन करवाना चाहिए। दुर्गाष्टमी पर मां दुर्गा को विशेष प्रसाद चढ़ाना चाहिए। पूजा के बाद रात्रि को जागरण करते हुए भजन, कीर्तन, नृत्यादि उत्सव मनाना चाहिए, 2 साल की कन्या को कुमारी कहा जाता है. इनकी पूजा से दुख और दरिद्रता खत्म होती है। 3 साल की कन्या त्रिमूर्ति मानी जाती है। त्रिमूर्ति के पूजन से धन-धान्य का आगमन और परिवार का कल्याण होता है। 4 साल की कन्या कल्याणी मानी जाती है,इनकी पूजा से सुख- समृद्धि मिलती है। 5 साल की कन्या रोहिणी माना गया है, इनकी पूजन से रोग-मुक्ति मिलती है। 6 साल की कन्या कालिका होती है. इनकी पूजा से विद्या और राजयोग की प्राप्ति होती है। 7 साल की कन्या को चंडिका माना जाता है, इनकी पूजा से ऐश्वर्य मिलता है। 8 साल की कन्या शांभवी होती है, इनकी पूजा से लोकप्रियता प्राप्त होती है। 9 साल की कन्या दुर्गा को दुर्गा कहा गया है. इनकी पूजा से शत्रु विजय और असाध्य कार्य सिद्ध होते हैं। 10 साल की कन्या सुभद्रा होती है। सुभद्रा के पूजन से मनोरथ पूर्ण होते हैं और सुख मिलता है। पूरे वर्ष में,चार नवरात्रि मनाई जाती है। यह नवरात्रि शारदीय होगी, जो आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तिथि तक मनाई जा रही है। इस दौरान, भक्त मां दुर्गा और उनके नौ अवतारों - नवदुर्गाओं की पूजा करते हैं। यह त्यौहार नौ दिनों तक मनाया जाता है, इसलिए सही तिथियों और कलश स्थापना के सही मुहूर्त को जानना आवश्यक है। नवरात्रि के पहले दिन ही कलश स्थापना की जाती है। मान्यता है कि कलश स्थापना मुहूर्त में ही करनी चाहिए, क्योंकि नौ दिनों यह देवी के स्वरूप में आपके निवास स्थान में विराजमान रहता है। अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि चैत्र नवरात्र 30 मार्च-6 अप्रैल 2025-गज़ पे सवार होक़े आएगी शेरावाँलिएं।गज़ पे सवार होके आजा शेरांवांलिएं - शेरावांलिएं मां ज्योतावांलिएं।चैत्र नवरात्र में मां का हर स्वरूप,नारी शक्ति के हर पहलू को दर्शाता है व महिला सशक्तिकरण की एक अद्भुत मिसाल भी पेश करता है (-संकलनकर्ता लेखक - क़र विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यमा सीए(एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र ) ईएमएस / 29 मार्च 25