नई दिल्ली (ईएमएस)। ‘कचनार’ का पौधा भारत में विशेष रूप से पहाड़ी इलाकों में काफी लोकप्रिय है। ‘कचनार’ के पौधे को उसके औषधीय गुण बेहद खास बनाते हैं। हिमाचल प्रदेश में इसे ‘कराली’ या ‘करयालटी’ कहा जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम ‘बौहिनिया वैरीगेटा’ है और यह चीन, दक्षिण-पूर्व एशिया और भारतीय उपमहाद्वीप में पाया जाता है। एक शोध के अनुसार, कचनार का उपयोग आयुर्वेद, सिद्ध, यूनानी और पारंपरिक चीनी चिकित्सा में विभिन्न रोगों के उपचार के लिए किया जाता है। यह मधुमेह, सूजन, श्वसन संबंधी समस्याओं और त्वचा रोगों में बेहद लाभकारी माना जाता है। आयुर्वेद में कचनार को थायराइड और शरीर में गांठों की समस्या को दूर करने के लिए उपयोगी माना गया है। यह रक्त शोधक के रूप में कार्य करता है और रक्त-पित विकारों को दूर करने में सहायक होता है। इसकी छाल और फूल पाचन तंत्र को मजबूत बनाने में मदद करते हैं और कब्ज, गैस व अपच जैसी समस्याओं से राहत दिलाते हैं। इसके अलावा, कचनार के फूल और छाल में एंटीसेप्टिक गुण पाए जाते हैं, जो खुजली, फोड़े-फुंसी और दाद जैसी त्वचा समस्याओं के इलाज में कारगर हैं। गठिया और जोड़ों के दर्द में भी कचनार फायदेमंद होता है, क्योंकि इसमें सूजनरोधी गुण मौजूद होते हैं। कचनार का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी है। भारत में इसके फूल देवी लक्ष्मी और मां सरस्वती को अर्पित किए जाते हैं। यह त्योहारों और धार्मिक अनुष्ठानों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। लोककथाओं और पारंपरिक मान्यताओं में इस पौधे का विशेष स्थान है। कुल मिलाकर, कचनार सिर्फ एक सुंदर फूल वाला पौधा नहीं, बल्कि एक प्राकृतिक औषधि है। इसके नियमित उपयोग से थायराइड, पाचन तंत्र, त्वचा रोग और जोड़ों के दर्द जैसी कई समस्याओं से बचा जा सकता है। धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के साथ-साथ इसके औषधीय गुण इसे और भी खास बनाते हैं। हिमाचल प्रदेश में कचनार की सब्जी बनाई जाती है, जिसे स्थानीय लोग बहुत पसंद करते हैं। इसका स्वाद हल्का कड़वा होता है, लेकिन पकने के बाद यह बेहद स्वादिष्ट हो जाता है। इसे सरसों के तेल और मसालों के साथ पकाया जाता है, जिससे इसका स्वाद और भी बढ़ जाता है। सुदामा/ईएमएस 29 मार्च 2025