(पूरी दुनियाँ में मनाया जाएगा 1075 वाँ चेट्रीचंड्र (झूलेलाल जयंती) महोत्सव 30 मार्च 2025) भारतवर्ष सदियों से आध्यात्मिकता में विश्वास रखने वाला विश्व का ऐसा पहला देश है जहां हजारों वर्ष पूर्व से ही अखंड भारत में आध्यात्मिकता भारत की संस्कृति की नींव रही है, क्योंकि अगर हम इतिहास को खंगाले तो हमें पौराणिक कथाओं से भरपूर मिलेंगे जो आज भी भारतीय पुरातत्व विभाग की खुदाई या अन्वेशण में अनेक आध्यात्मिकता की वस्तुएं पाई जाती है, जो हजारों वर्ष पूर्व की अनुमानित होती है। भारत भर में विभिन्न धर्म, समुदाय और जातियों का समावेश है इसलिए यहां अनेकता में एकता के दर्शन होते हैं। यह हमारे लिए गर्व की बात है कि यहां सभी धर्मों के त्योहारों को प्रमुखता से मनाया जाता है, चाहे दिवाली हो, ईद या फिर क्रिसमस या फिर भगवान झूलेलाल जयंती उत्सव जो सप्ताह भर झूलेलाल सप्ताह के नाम पर मनाया जाता है जिसमें सप्ताह भर अनेक कार्यक्रम किए जाते हैं। चुके 30 मार्च 2025 को झूलेलाल जयंती महोत्सव है इसलिए आज हम उपलब्ध जानकारी के सहयोग से आर्टिकल माध्यम से चर्चा करेंगे, पूरी दुनियाँ में मनाया जाएगा 1075 वाँ चेट्रीचंड्र (झूलेलाल जयंती) महोत्सव 30 मार्च 2025 साथियों बात अगर हम इसी आध्यात्मिकता औरविश्वसनीयता की करें तो 30 मार्च 2025 को वैश्विकस्तरपर जिस भी देश में सिंधी समाज के भाई बहन होंगे वहां झूलेलाल जयंती चेट्रीचंड्र महोत्सव बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है, जो सदियों से मनाया जाने वाला सद्भाव, भाईचारे, एकता, अखंडता, अन्याय पर न्याय की विजय और धार्मिक आस्था का प्रतीक माना जाता है। झूलेलाल जयंती पर्व मनाने का कारक, सभी पर्व त्योहारों की तरह इस पर्व को मनाने के पीछे भी पौराणिक कथाएं हैं। साथियों बात अगर हम भगवान झूलेलाल की करें तो इतिहास और मीडिया में उपलब्ध जानकारी के अनुसार धर्म की रक्षा के लिए झूलेलाल साईं ने अवतार लिया था इस संबंध में दो कथाएं प्रचलित हैं (1)पहली, संवत् 1007 में सिंध प्रदेश के ठट्टा नगर में मिरखशाह नामक एक सम्राट राज्य करता था। उसने जुल्म करके समुदाय के लोगों को विशेष धर्म स्वीकार करवाया। उसके जुल्मों से तंग आकर एक दिन सभी पुरुष, महिलाएं, बच्चे व बूढ़े सिंधु नदी के पास एकत्रित हुए और उन्होंने वहां भगवान का स्मरण किया। कड़ी तपस्या करने के बाद सभी भक्तजनों को मछली पर सवार एक अद्भुत आकृति दिखाई दी।पल भर के बाद ही वह आकृति भक्तजनों की आंखों से ओझल हो गई। तभी आकाशवाणी हुई कि धर्म की रक्षा के लिए मैं आज से ठीक सात दिन बाद श्रीरतनराय के घर में माता देवकी की कोख से जन्म लूंगा।निश्चित समय पर रतनराय जी के घर एक सुंदर बालक का जन्म हुआ जिसका नाम उदयचंद रखा गया।मिरखशाह के कानों में जब उस बालक के जन्म की खबर पहुंची, तो वह अत्यंत विचलित हो गया। उसने इस बालक के मारने की सोची परंतु उसकी चाल सफल नहीं हो पाई। तेजस्वी मुस्कान वाले बालक को देखकर उसके मंत्री दंग रह गए। तभी अचानक वह बालक वीर योद्धा के रूप में नीले घोड़े पर सवार होकर सामने खड़ा हो गया। अगले ही पल वह बालक विशाल मछली पर सवार दिखाई दिया। मंत्री ने घबराकर उनसे माफी मांगी। बालक ने उस समय मंत्री को कहा कि वह अपने हाकिम को समझाए कि हिंदू- मुसलमान को एक ही समझे और अपनी प्रजा पर अत्याचार न करे, लेकिन मिरखशाह नहीं माना। तब भगवान झूलेलाल ने एक वीर सेना का संगठन किया और मिरखशाह को हरा दिया।मिरखशाह झूलेलाल की शरण में आने के कारण बच गया।भगवान झूलेलाल संवत् 1020 भाद्रपद की शुक्ल चतुर्दशी के दिन अन्तर्धान हो गए। (2) दूसरी कथा, चूंकि सिंधी समुदाय व्यापारिक वर्ग रहा है सो ये व्यापार के लिए जब जलमार्ग से गुजरते थे तो कई विपदाओं का सामना करना पड़ता था। जैसे समुद्री तूफान, जीव-जंतु, चट्टाूनें व समुद्री दस्यु गिरोह जो लूटपाट मचा कर व्यापारियों का सारा माल लूट लेते थे। इसलिए इनके यात्रा के लिए जाते समय ही महिलाएं वरुण देवता की स्तुति करती थीं व तरह-तरह की मन्नते मांगती थीं, जो पूर्ण हुई। चूंकि भगवान झूलेलाल जल के देवता हैं अत: यह सिंधी समुदाय के आराध्य देव माने जाते हैं। जब पुरुष वर्ग सकुशल घर लौट आते थे तब चेटीचंड को उत्सव के रूप में मनाया जाता था। मन्नतें पूर्ण हुई थी और भंडारा किया जाता था। साथियों बात अगर हम साईं झूलेलाल कीकरें तो,उपासक भगवान झूलेलाल को उदेरोलाल, घोड़ेवारो, जिन्दपीर, लालसाँई, पल्लेवारो, ज्योतिनवारो, अमरलाल आदि नामों से भी पूजते हैं। भगवान झूलेलालजी को जल औरज्योति का अवतार माना गया है। इसलिए लकड़ी का मंदिर बनाकर उसमें एक लोटे से जल और ज्योति प्रज्वलित की जाती है और इस मंदिर को श्रद्धालु चेट्रीचंड्र के दिन अपने सिर पर उठाते हैं, जिसे बहिराणा साहब भी कहा जाता है। साईं झूलेलाल दिवस - सिंधी समाज का चेट्रीचंड्र विक्रम संवत का पवित्र शुभारंभ दिवस है। इस दिन विक्रम संवत 1007 सन् 951 ई. में सिंध प्रांत के नसरपुर नगर में रतनराय के घर माता देवकी के गर्भ से प्रभु स्वयं तेजस्वी बालक उदयचंद्र के रूप में अवतार लेकर पैदा हुए और पापियों का नाश कर धर्म की रक्षा की। यह पर्व अब केवल धार्मिक महत्व तक ही सीमित न रहकर सिंधु सभ्यता के प्रतीक के रूप में एक- दूसरे के साथ भाईचारे को दृष्टिगत रखते हुए 30 मार्च 2025 को सिंधियत दिवस के रूप में मनाया जाता है। साथियों बात अगर हम चेट्रीचंड्र दिवस को अतिउत्साह से मनाने की करें तो इस अवसर पर अंतरराष्ट्रीय स्तरपर सिंधी समुदाय अपने अपने व्यवसायिक प्रतिष्ठान बंद रखकर सारा दिन विभिन्न कार्यक्रम, पूजा अर्चना, बहराणा साहब यात्रा में उपस्थित होते हैं और शाम में भव्य जुलूस का आयोजन भारत सहित अनेक देशों में आयोजित किया जाता है जिसमें जगह जगह पर साईं झूलेलाल बहराणा साहब की पूजा अर्चना की जाती है, जुलूस के स्वागतार्थ विभिन्न व्यंजनों को प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है, हर व्यक्ति के सिर पर आयोलाल झूलेलाल की टोपी होती है, जुलूस में विभिन्न प्रकार की प्रेरणादायक झांकियों होती है। बहुत ही उत्साह का माहौल होता है। साथियों बात अगर हम इस वर्ष 2025 में अपेक्षाकृत अधिक उत्साह की करें तो चेट्री चंड्र सिंधी समुदाय का महत्वपूर्ण पर्व है, जो भगवान झूलेलाल की जयंती के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व चैत्र महीने की चंद्र तिथि को मनाया जाता है, क्योंकि भगवान झूलेलाल का जन्म इसी दिन हुआ था। भगवान झूलेलाल को वरुण देव का अवतार माना जाता है और वे सिंधी समाज के प्रमुख देवता हैं। इस दिन लोग विशेष पूजा- अर्चना करते हैं, भजन- कीर्तन करते हैं और शोभायात्रा निकालते हैं।चेट्री चंड्र का पर्व सत्य, अहिंसा, भाईचारे और प्रेम का संदेश देता है, जो आज भी सिंधी समाज के मूल जीवन मूल्यों में शामिल हैं। इस पर्व के दौरान लकड़ी का मंदिर बनाकर उसमें ज्योति प्रज्वलित की जाती है, जिसे बहिराणा साहब कहा जाता है। यह पर्व समाज में एकता और आस्था को प्रबल करने का एक महत्वपूर्ण अवसर होता है। शासन के आदेशों का पालन करते हुए चेट्रीचंड्र उत्सव मनाने का अतिउत्साह समाज बंधुओं में दिख रहा है क्योंकि यह पर्व भाईचारे सद्भावना एकता धार्मिक आस्था का प्रतीक है जो भारतीयों को भारत माता की मिट्टी से गॉडगिफ्ट में मिला है। अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि झूलेलाल जयंती सदियों से मनाया जाने वाला चेट्रीचंड्र पर्व सद्भावना भाईचारे एकता और अन्याय पर न्याय की विजय, धार्मिक आस्था का प्रतीक है।भारत सहित अंतरराष्ट्रीय स्तरपर कई देशों में 30 मार्च 2025 को चेट्रीचंड्र महोत्सव औरआयोलाल झूलेलाल जयकारों की गूंज रहेगी। (-संकलनकर्ता लेखक - क़र विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यमा सीए(एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र ) ईएमएस / 29 मार्च 25