लेख
29-Mar-2025
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आजकल कुछ लेख पढ़ा जो बढ़ते तलाक के मामले पर था अपनी विशाल संस्कृति, पारंपरिक मूल्यों और समृद्धि की ऊंचाइयों के लिए मशहूर भारतीय समाज में तला के मामलों में बढ़ोतरी देखी जा रही है। आपको जानकर हैरानी होगी कि पिछले कुछ सालों में भारत में तलाक के मामलों की संख्या में 50 से 60% की बढ़ोतरी हुई है। ऐसा नहीं है कि ये सभी मामले सिर्फ बड़े शहरों से हैं। मथुरा, हापुड़ और झज्जर जैसे छोटे शहर भी इन आंकड़ों में बराबर का योगदान दे रहे हैं। लेकिन अच्छी खबर यह है कि 50 से 60% की पर्याप्त वृद्धि के बाद भी भारत में तलाक की दर केवल 11% है और यह प्रतिशत अभी भी अन्य देशों की तुलना में कम है। संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे विकसित और प्रगतिशील देशों में तला की दर 55%, स्वीडन में 55%, रूस, यूनाइटेड किंगडम ऑफ ग्रेट ब्रिटेन और उत्तरी आयरलैंड में 43% और जर्मनी में 40% है। इससे पता चलता है कि रिश्तों को बनाए रखने के मामले में भारत का प्रदर्शन तुलनात्मक रूप से काफी बेहतर है। लेकिन सिर्फ इसलिए कि यहां तलाक कम हो रहे हैं, इसका मतलब यह नहीं है कि यहां के लोग अपने रिश्तों से खुश हैं। इसके पीछे कई अन्य कारण भी हो सकते हैं। हमारे देश में सामाजिक, सांस्कृतिक और नैतिक मूल्यों का बोलबाला है। भारतीयों के लिए अलगाव या तलाक कभी भी आसान बात नहीं रही, इसे पुरुष या महिला के चरित्र पर एक काला धब्बा माना जाता है। अन्य देशों की तरह यहां रिश्ते केवल शारीरिक आकर्षण के आधार पर नहीं बनते।इसके अलावा हिंदू धर्म तलाक शब्द को नहीं जानता।हिंदू धर् में विवाह एक पवित्र और अनमोल रिश्ता है जिसे केवल एक जन्म के लिए नहीं बल्कि सात जन्मों के लिए माना जाता है।इसके अलावा कई अन्य कारक भी हैं जिनमें आर्थिक और भावनात्मक निर्भरता, सामाजिक और पारिवारिक दबाव शामिल हैं। अगर बच्चे की जिम्मेदारी है तो अलगाव और भी मुश्किल हो जाता है।इस विस्तृत चर्चा में तला के मामलों में वृद्धि के पीछे क्या कारण हो सकते हैं, इस पर गंभीरता से विचार किया गया जिसमें सबसे बड़ा तर्क ऐ निकला जो संस्कार है और विचार का सही तालमेल ना होना इसलिए शादी को गंभीरता से लें नहीं तो शादी ना करें यदि आप किसी अध्यात्मिक देवता को पूजते हैं तो ऐ कोई जरुरी नहीं की वो भी पूजे ,। सामाजिक परिवर्तन से आधुनिक युग में सामाज में परिवर्तन भी हो रहा है जिसका सीधा असर विवाह और तलाक पर पड़ता है। पुरानी रूढ़िवादी विचारधारा से बाहर निकलने के दबाव, महिलाओं की आत्मनिर्भरता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की मांग में वृद्धि के साथ ही स्थिर संबंध बनाए रखना मुश्किल होता जा रहा है। आधुनिक समाज में हो रहे परिवर्तन विभिन्न क्षेत्रों में शोध और प्रक्रिया को प्रेरित कर रहे हैं। युवा पीढ़ी आत्म-स्वतंत्रता के महत्व को समझ रही है और इसलिए स्थिर संबंधों को बनाए रखने के बारे में अधिक चिंतित हो रही है। यह इच्छा अक्सर उन्हें अपने जीवनसाथी से अधिक मानवाधिकारों और अधिकारों की मांग करने के लिए प्रेरित करती है, जो तला का कारण बन सकती है।। महिलाएं स्वतंत्र हो रही हैं आज की युवा पीढ़ी व्यक्तिगत स्वतंत्रता के महत्व को समझती है और अपने जीवन को अपने रास्ते पर ले जाना चाहती है। इसलिए, व्यक्तिगत स्वतंत्रता के आदर्शों के लिए लड़ते हुए, वे अपने जीवनसाथी से अधिक मानवाधिकारों और अधिकारों की मांग कर रहे हैं। यह अक्सर रिश्ते की स्थिति को कठिन बना देता है, जिससे तलाक का खतरा होता है। पहले, पुरुष ही एकमात्र व्यक्ति था जो पूरे परिवार के लिए रोटी कमाने जाता था और महिला घर पर रहती थी, इसलिए वह बाकी दुनिया से अलग-थलग थी। इससे उनके पतियों पर उनकी आर्थिक और भावनात्मक निर्भरता भी बढ़ गई। इसके कारण, कई बार उन्हें अपने पतियों के आक्रामक व्यवहार को सहना पड़ा लेकिन आज इसके विपरीत भी सुनने को मिल रहा है यहाँ तक हत्या और आत्महत्या भी पुरुष कर रहें हैं क्योंकि उनका शारीरिक और मानसिक शोषण का भी सामना करना पड़ा। लेकिन अब स्थिति बदल गई है। महिलाएं भी पुरुषों की तरह ही बाहर जा रही हैं, व्यापार और नौकरी कर रही हैं और जब एक महिला पुरुष के स्वभाव से मेल नहीं खाती है , तो यह पुरुष पर कई नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। साथ ही, अब महिलाएं हर मामले में स्वतंत्र जरूर हैं,लेकिन उसका ऐ भी फ़र्ज है कि लड़के के माता पिता को ध्यान देना, इसलिए वे बूढ़े बुजुर्गो के बात को बर्दाश्त नहीं करती हैं। शायद यही वजह है कि तलाक के ज्यादातर फैसले महिलाएं ही लेती हैं। व्यावसायिक दबाव भी है आधुनिक जीवनशैली में व्यावसायिक दबाव की बढ़ती गति ने भी तला की दरों में वृद्धि को बढ़ावा दिया है। रिश्तों में यह दबाब विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाले लोगों की जीवनशैली में बदलाव का प्रतिबिंब है, जो तला की दर को बढ़ा रहा है। व्यवसाय की दुनिया में काम करने वाले लोगों के लिए, जीवनशैली में बदलाव ने रिश्तों को निभाने में आने वाली कठिनाइयों से निपटने के लिए चुनौतियां पैदा की हैं। इसमें अक्सर समय की कमी, असमानता और पारिवारिक दबाव की बढ़ती गति शामिल होती है, जो रिश्तों में तनाव और असंतुलन पैदा कर रही है। 4। आर्थिक कठिनाइयाँ महिलाओं द्वारा सामना की जाने वाली आर्थिक कठिनाइयाँ विवाह की प्रणाली को भी प्रभावित कर रही हैं आर्थिक प्रतिस्पर्धा, असमानता और यहां तक कि रोजगार और उद्यमिता में महिलाओं की बढ़ती भूमिका ने उन्हें स्वतंत्रता की ऊंचाइयों की ओर बढ़ने के लिए अधिक अधिकार दिए हैं, लेकिन इसका दुरुपयोग तला के मामलों में भी देखा जा सकता है। नैतिक मूल्यों का अभ्यास में सुधार होना चाहिए ऐ मान कर चलना चाहिए की पैसे को बचाने को सीखें, कुछ इसी में क़ोई पति को छोड़ कर गया कुछ पत्नी को लेकिन जो रकम खर्च हुई वो साधारण परिवार के लिए 25000 रूपये से कम नहीं होगा क्योंकि आजकल ट्रेन से सफर कौन करता है और कम भी होगा तो होटल का बिल और खाने पीने में महानगर में लगभग इतना खर्चा होगा ही जब नाव वाला 1000 की जगह 20000 रूपये तक लिया है ऐ तो न्यूज़ चैनल ने आपका ब्रेनवास कर दिया और आप गए लेकिन यदि किसी बुरी स्थिति में क़ोई 5000 भी देने को तैयार नहीं होगा जो आवश्यक नहीं है उसे कम करना चाहिए पुराने लोगों से सीखना चाहिए कि कैसे पैसे का सम्मान किया जाता है आप ने जब कुछ गलत ही नहीं किया है तो डर किसका फिर महाकुम्भ जाए या ना जाएं उससे कुछ भी फर्क नहीं पड़ता है अतः आज कुछ मीडिया के रुख के कारण नैतिकता का आधार कमजोर होता जा रहा है। इसके अलावा विवाह के बाद किसी का भी मन स्थिर नहीं रहता और अहंकार में संबंध में दरार भी बढ़ते जा रहे हैं।आप शांति से प्रभु राम का ध्यान कर ही क़ोई निर्णय लें आधुनिकता की दौड़ से बचें और सबसे मिलाकर चलें। नारी में बहुत शक्ति है आपको मालूम है लगभग 1704 में मुगलों ने पहाड़ी सरदारों ने आनंदपुर साहिब को घेर लिया था और इसे खाली करने की मांग कर रहे थे, जिससे खाद्य आपूर्ति बंद हो गई और घेराबंदी कुछ महीनों तक चली। उन्होंने घोषणा की कि कोई भी सिख जो यह कहेगा कि वह अब गुरु गोबिंद का सिख नहीं है उसे अछूता छोड़ दिया जाएगा जबकि अन्य को मार डाला जाएगा। महान सिंह रतौल के नेतृत्व में 40 सिखों (चाली मुक्ते) के एक समूह ने गुरु गोबिंद सिंह से कहा कि वे अब उनके सिख नहीं हैं। गुरु ने उनसे कहा कि उन्हें एक दस्तावेज़ लिखना होगा जिसमें लिखा हो कि हम अब आपके सिख नहीं हैं और उस पर हस्ताक्षर करना होगा। सभी चालीस सिखों (एक को छोड़कर: बेदवा) ने इस दस्तावेज़ पर अपना नाम लिखा और गुरु गोबिंद सिंह को छोड़ दिया।गुरू गोबिंद सिंहजी की धर्म पत्नी माता माई भागो यह सुनकर व्यथित हो गई कि उसके पड़ोस के कुछ सिख, जो गुरु गोबिंद सिंह के लिए लड़ने के लिए आनंदपुर गए थे, प्रतिकूल परिस्थितियों में उन्हें छोड़कर चले गए। उसने खुलेआम उनकी आलोचना की; उसके ताने सुनकर, इन सिखों को अपने विश्वासघात पर शर्म आ गई। माई भागो ने भगोड़ों को इकट्ठा किया, और उन्हें गुरु से मिलने और उनसे माफ़ी मांगने के लिए राजी किया।सिखों के दशमें गुरु गुरू गोविन्द सिंह जी जब चमकोर का युद्ध में पंच प्यारे के कहने पर दुश्मनों को ललकारते हुए कहा हिम्मत है तो पकड़ लो, जब जंगल की ओर बढ़े तो उन्हें अपने बच्चों व माताजी की याद सताने लगी उससमय एक गुरुजी का भक्त उन्हें खोजने निकला और बाद में बताया सभी शहीद हो गए गुरूजी को सभी पेड़ को काटने लगें और कहा अब वो समय आ गया है कि उनकी जड़ो को उखाड़ कर फेंक दूंगा तब भी गुरूजी नहीं रोयें और वाहेगुरु का ध्यान किया उन्हें दरअसल हिन्दू, सिख व अन्य मुस्लिम सभी मानते थे यहाँ तक की अपनी इरादे को पक्का व सच के लिए और भारत की पवित्रता को बचाने के लिए पहाड़ी राजा से भी लड़ना पड़ा कुछ मुस्लिम भाई जो कभी उन्हें फारसी सिखाया, और घोड़ा बेचा था जो सच्चा था जिन्होंने उन्हें पीर के वेश को धारण कर बचाया था तभी कुछ मुगलों को शक हुई कि कहीं गुरूजी तो नहीं हैं तब उन्हें खाने के लिए बोला, तभी किसी ने कहा रोजा रखें हैं और फिर दो सिख दुविधा में पड़ गए की क्या खायेंगे उसमें मांस होगा वो गुरूजी से पूछे मेरा क्या होगा गुरूजी ने जबाब दिया उसमें कृपाण डाल देना और वाहेगुरु का ध्यान कर लेना और जब ऐसा किया तो वह मांस, हलवा बन गया और फिर बाहर आए जहाँ उन्हें कुछ भक्त की टोली मिली और जो गुरु गोबिंद सिंह के लिए लड़ने के लिए आनंदपुर गए थे, प्रतिकूल परिस्थितियों में उन्हें छोड़कर चले गए वे सब गुरूजी के सामने पत्र जो उनसे अलग होने का था उन्हें उनके सामने ही फाड़ दिया और पैर पकड़ कर माफी मांगा तब गुरूजी के आँख में आंसू आई और उन्होंने कहा मुझे पता था किसी डर से जो हमसे अलग हो गए हैं वो जरूर एक समय हमसे मिलेगा और यही है नारी की शक्ति जो अपने गुरु के सम्मान के लिए उन्हें उचित मार्गदर्शन दिया इसलिए जो सही बन्दा है ईश्वर का सच्चा सेवक है उसे कभी उनकी पत्नी आधुनिकता की दौड़ में संगत ना ख़राब कर दें उसका सम्मान खुद के सम्मान के जैसा लगें तो समझ लेना कभी झगड़ा नहीं होगा और मर्यादा कायम रहेगा ऐ पति पत्नी दोनों के लिए एक समान यदि अच्छा विचारधारा है तो सम्मान करना चाहिए और कहीं बुरा संगत में चलें गए है तो उसे छोड़ना नहीं चाहिए बल्कि ऐसा कर्म करना चाहिए जिससे वो एक दिन खुद ही अच्छे और बुरे का ज्ञान हो जाये गुरूजी से वो 40सिख अलग होने के बाद भी जब गलती का अहसास हुआ तो फिर उनके लिए जिए और उनके लिए मरे। ऐ अहसास बुढ़ापे में होगा जब कौन साथ देगा यही समय आपको पहचान होगी कौन सच्चा था सुन्दर होना सही या गलत ऐ आपके मनपेर निर्भर करता है लेकिन जो मन से सुन्दर होता है वो आपका सच्चा साथी है क्योंकि किसी फल में अंदर क्या है ऐ पता नहीं चलता लेकिन अंदर से सड़ा होता है तो आधा खाते हैं या फेंक देते हैं लेकिन जो फल बाहर से दिखने में कुछ ख़राब हो लेकिन अंदर से ठीक होता है तो आप बड़े प्रेम से खाते हैं यानी आम मीठा है। ईएमएस/29मार्च2025