बर्लिन (ईएमएस)। पाकिस्तान से 170 से अधिक अफगान नागरिकों को लेकर एक विमान जर्मनी के हनोवर एयर पोर्ट पर उतरा। यह अफगानों को फिर से बसाने की बर्लिन की कोशिशों का ताजा नतीजा है। अफगान शरणार्थी पाकिस्तान में भारी परेशानियों का सामना कर रहे हैं। रिपोर्टों के अनुसार, पाकिस्तान ने सभी अफगान शरणार्थियों को वापस भेजने के लिए 31 मार्च की समय सीमा तय की है। मीडिया रिपोर्ट में बताया कि गुरुवार को पहुंचे समूह में 82 महिलाएं और 92 पुरुष शामिल हैं। 74 लोग 18 वर्ष से कम उम्र के हैं। दो वर्ष से कम उम्र के नौ बच्चे भी शामिल हैं। एक अफगान शरणार्थी ने कहा, हम ग्यारह महीने तक पाकिस्तानी शरणार्थी शिविर में रहे। मेरी पत्नी को वकील के रूप में नौकरी के कारण तालिबान की ओर से धमकी दी गई थी। इसके पहले फरवरी में, 155 अफगान नागरिक विमान से बर्लिन पहुंचे थे। उन्हें देश के संघीय स्वागत कार्यक्रम के जरिए जर्मनी में प्रवेश की अनुमति दी गई। जर्मन सरकार ने अफगानिस्तान में अपने दो दशक के मिशन के दौरान जर्मन सैन्य या नागरिक एजेंसियों के साथ काम करने वाले अफगानों की मदद के लिए 2021 में प्रवेश कार्यक्रम शुरू किया था। जर्मन सरकार के अनुसार, केवल उन शरणार्थियों को लाया जा रहा है जिनमें अफगानिस्तान में तालिबान की तरफ से विशेष खतरा है। अगस्त 2021 में तालिबान के सत्ता में लौटने के बाद से, करीब 36,000 लोगों को स्वीकार किया है, जिन्हें संघीय सरकार ने विशेष रूप से जोखिम में के रूप में वर्गीकृत किया था। मीडिया रिपोर्ट ने बताया कि जर्मनी में पुनर्वास के लिए स्वीकृत लगभग 2,800 अफगान लोग अभी भी इस्लामाबाद में रह रहे हैं, और उनकी स्थिति लगातार निराशाजनक होती जा रही है। हाल ही में, संयुक्त राज्य अमेरिका में पुनर्वास की प्रतीक्षा कर रहे अफगान शरणार्थियों ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ को एक खुला पत्र लिखा है। इसमें उन शरणार्थियों के निर्वासन को तत्काल रोकने की मांग की गई, जिनके पास अमेरिका में प्रवेश के लिए लंबित या स्वीकृत वीजा आवेदन हैं या जिन्होंने संयुक्त राज्य शरणार्थी प्रवेश कार्यक्रम (यूएसआरएपी) में रेफरल स्वीकार किए हैं। कई रिपोर्ट बताती हैं अफगान शरणार्थियों को पाकिस्तान में बड़े पैमाने पर उत्पीड़न और दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ रहा है। कई अफगान शरणार्थियों का आरोप है कि वैध कानूनी दस्तावेज होने के बावजूद, उन्हें अवैध हिरासत, निर्वासन और भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है। आशीष दुबे / 28 मार्च 2025