राज्य
28-Mar-2025


- सरकार के खिलाफ 32 कर्मचारी संगठन हो रहे लामबंद भोपाल (ईएमएस)। मप्र में नौकरशाहों की नाफरमानी से नाराज सरकारी अमला एक बार फिर से आंदोलन की राह पकडऩे की तैयारी कर रहा है। कर्मचारी अधिकारी अपनी करीब 4 दर्जन से अधिक मांगों के समर्थन में आंदोलन की रूपरेखा तैयार कर रहे हैं। दरअसल, प्रदेश में कर्मचारी संघ की लंबित मांगों की सुनवाई नहीं होने से कर्मचारी नाराज है। अब वे एकजुट होकर सरकार के साथ आर-पार की लड़ाई के मूड में हैं। पदोन्नति नहीं होने से हर वर्ष हजारों कर्मचारी सेवानिवृत्त हो रहे हैं। लंबे समय से वेतनमान और संवर्ग संबंधी विसंगति को लेकर कोई निर्णय नहीं हो पा रहा है। कर्मचारियों की सुनवाई के लिए अब तक समिति नहीं बनाई गई है। एक कर्मचारी आयोग भी बना है लेकिन वह भी कागजों तक ही सीमित रह गया है। इससे कर्मचारियों में नाराजगी बढ़ती जा रही है। मप्र में सभी संवर्ग के अधिकारी- कर्मचारी अपनी मांगों के समर्थन में लामबंद हो रहे। इसके लिए आंदोलन की रूपरेखा बना रहे हैं। मप्र मंत्रालय अधिकारी-कर्मचारी संघ ने इस दिशा में सभी संगठनों को मिलाकर एक महासंघ बनाने की रणनीति भी तैयार की है। यही स्थिति संविदा कर्मचारियों की भी है। वे लंबे समय से भेदभाव के शिकार हैं। समयमान वेतनमान, क्रमोन्नति, पदोन्नति और शासकीय कर्मचारियों की तरह आवास की सुविधा की मांग कर रहे हैं। वहीं, दैनिक वेतनभोगी और स्थायी कर्मचारियों की मांग को लेकर राज्य कर्मचारी मंच चरणबद्ध आंदोलन चला रहा है। दरअसल, लंबे समय से कर्मचारी आंदोलन समाप्त से हो गए हैं। इसकी वजह यह है कि सरकार ने कर्मचारी संगठनों को ही समाप्त कर दिया। उनके साथ भी जातिगत भेदभाव हो रहा है। मध्य प्रदेश के गठन के बाद बने संगठन मप्र राज्य मंत्रालयीन कर्मचारी संघ की तो मान्यता ही समाप्त कर दी गई। मंत्रालय प्रांगण में बरसों पुराना कार्यालय छीन लिया गया। यही हाल मप्र तृतीय वर्ग शासकीय कर्मचारी संघ का है। इस संगठन को भी सरकार के कर्ताधर्ताओं ने तहस-नहस कर दिया। मप्र लघु वेतन कर्मचारी संघ भी अब बुरे दौर से गुजर रहां है। मप्र लिपिक वर्ग कर्मचारी संघ की और मप्र राज्य कर्मचारी संघ की सक्रियता अवश्य बनी हुई है। कर्मचारी संगठनों के साथ इस व्यवहार में एक पूर्व मुख्य सचिव की भूमिका बेहद खराब रही है। उन्हीं के संरक्षण में मप्र राज्य मंत्रालय कर्मचारी संघ का समापन हुआ और अजाक्स जैसे संगठन को मंत्रालय में कार्यालय उपलब्ध करा दिया गया। संगठन प्रमुखों की शिकायत मप्र राज्य मंत्रालयीन अधिकारी-कर्मचारी संघ के अध्यक्ष सुधीर नायक का कहना है कि कर्मचारियों की समस्याओं पर अब बात ही नहीं होती। सुनवाई की व्यवस्था ही बंद हो गई है। पहले, कर्मचारी कल्याण समिति हुआ करती थी, जिसके सामने कर्मचारी अपनी मांग रखते थे और वह शासन तक बात पहुंचा देती थी। कमल नाथ सरकार में कर्मचारी आयोग बनाया गया। वो किसी काम का नहीं। अब हम क्या करें? कर्मचारी वर्ग संगठनों से उम्मीद करता है। पदोन्नति तक नहीं मिल रही है। मानसिक पीड़ा तो वे भुगत ही रहे हैं इसलिए आंदोलन ही एकमात्र रास्ता दिख रहा है। वहीं आजाद अध्यापक शिक्षक संघ के प्रांताध्यक्ष भरत पटेल का कहना है कि कर्मचारी वर्ग की बात प्रभावी ढंग से शासन तक पहुंच नहीं रही है। एक गतिरोध ठहराव सा आ गया है। ऐसी स्थिति में कर्मचारी संगठनों की अगली रणनीति और कार्ययोजना क्या हो, इस पर विचार करने के लिए मध्य प्रदेश के समस्त मान्यता प्राप्त और गैर मान्यता प्राप्त अधिकारी कर्मचारी संगठनों तथा अध्यापक शिक्षक संवर्ग के समस्त संघ संगठनों के प्रदेश अध्यक्षों की संयुक्त प्रांतीय बैठक 30 मार्च सुबह 10 बजे से काकुल होटल इंद्रपुरी रायसेन रोड भोपाल में आयोजित की जा रही है। इसमें हम अगली रणनीति तय करेंगे। मप्र कर्मचारी मंच के प्रांताध्यक्ष अशोक पांडे का कहना है कि सरकार का ध्यान आकर्षित कर रहे हैं। यदि हमारी न्यायोचित मांगों की पूर्ति नहीं होती है तो फिर प्रदेशव्यापी बड़ा आंदोलन खड़ा किया जाएगा। संविदा अधिकारी-कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष रमेश राठौर का कहना है कि संविदा कर्मचारियों को लेकर जो भी सरकार ने घोषणाएं की थी, उसके अनुसार कहीं भी आदेश जारी नहीं हुए। हमें छला गया है। 50 प्रतिशत आरक्षण भी नियमित भर्ती में नहीं मिला है। कर्मचारी वर्ग एकजुटता से लड़ेंगे। मप्र लिपिक वर्गीय शासकीय कर्मचारी संघ के मनोज वाजपेयी का कहना है कि अब तक लिपिक वर्ग के वेतनमान में एकरुपता नहीं है। हमारे पास आंदोलन के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है। इसमें संशोधन किया जाना चाहिए। विनोद / 28 मार्च 25