ज़रा हटके
28-Mar-2025
...


नई दिल्ली (ईएमएस)। गेहूं के खेतों और खुले मैदानों में उगने वाला एक छोटा सा पौधा आयुर्वेद की चमत्कारी औषधि होता है। इस पौधे के नाम पित्तपापड़ा है, जो अपने औषधीय गुणों के कारण कई बीमारियों के इलाज में सहायक है। आयुर्वेद में इसे वात, पित्त और कफ दोषों को संतुलित करने वाली औषधि माना गया है। यह पौधा मुख्य रूप से राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब और दिल्ली सहित कई राज्यों में पाया जाता है। आयुर्वेदिक ग्रंथों में पित्तपापड़ा के उपयोग का विस्तार से उल्लेख किया गया है। इसका सेवन शरीर की जलन, बुखार, त्वचा रोग और पाचन तंत्र की समस्याओं में फायदेमंद होता है। इसके पत्ते और जड़ें औषधीय गुणों से भरपूर होती हैं और यह एक प्राकृतिक एंटीइंफ्लेमेटरी तथा एंटीबैक्टीरियल पौधा है। त्वचा पर जलन होने की स्थिति में इसके रस को लगाने से तुरंत राहत मिलती है और घाव जल्दी भरते हैं। बुखार के इलाज में भी पित्तपापड़ा कारगर है। इसका काढ़ा बनाकर सोंठ के साथ सेवन करने से शरीर का तापमान नियंत्रित होता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है। इसके अतिरिक्त, सर्दी-जुकाम, पाचन संबंधी विकार और कब्ज जैसी समस्याओं में भी इसका उपयोग लाभकारी होता है। पेट के कीड़ों को खत्म करने के लिए इसे विडंग के साथ मिलाकर सेवन करने की सलाह दी जाती है। वहीं, मुंह की बदबू और मसूड़ों की समस्याओं के लिए इसके काढ़े से गरारा करना फायदेमंद होता है। पित्तपापड़ा आंखों के लिए भी फायदेमंद है। इसके रस को आंखों के बाहरी हिस्से पर लगाने से जलन और खुजली में राहत मिलती है, हालांकि इसे सीधे आंखों में डालने से बचना चाहिए। इसके अलावा, यदि किसी व्यक्ति को लगातार उल्टी हो रही हो तो इसके रस में शहद मिलाकर सेवन करने से आराम मिलता है। आधुनिक वैज्ञानिक शोधों में भी पित्तपापड़ा के औषधीय गुणों की पुष्टि हुई है। सुदामा/ईएमएस 28 मार्च 2025