यद्यपि फिलहाल देश में निकट भविष्य में कोई चुनाव नही है, उत्तरप्रदेश सहित कुछ राज्यों में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होंगे, किंतु देश में ‘वोट पटाओं’ अभियान की शुरूआत अभी से कर दी गई है, वह भी किसी राज्यस्तरीय या अदने राष्ट्रीय नेता द्वारा नहीं, बल्कि स्वयं प्रधानमंत्री जी द्वारा। यद्यपि हमारे संविधान में राजनीति को धर्म से अलग रखने की बात जरूर कही गई है। किंतु मोदी जी ने अपने इस अभियान के चलाने के लिए धार्मिक पर्व ही चुना और वह भी मुस्लिम समाज की ‘मीठी ईद’ को। उन्होंने अपनी विशेष ‘ईदी’ की थैलियां तैयार करवाकर देश के बत्तीस लाख मुस्लिम परिवारों तक भिजवाने की व्यवस्था की है। इस थैली में मिठाई व अन्य खाद्य पदार्थो के साथ महिलाओं व पुरूषों के वस्त्र भी है, इसे ‘सौगात-ए-मोदी’ नाम दिया गया है। आगामी तीस मार्च को मुस्लिमों की ‘मीठी ईद’ है और तब तक बत्तीस हजार भाजपा कार्यकर्ताओं द्वारा बत्तीस हजार मस्जिदों के साथ मुस्लिम भाईयों तक ये ‘सौगात-ए-मोदी’ सही हाथों तक पहुंचाई जाएगी। यह तो हुई देश पर राज कर रही भाजपा के प्रयासों की बात अब यदि दूसरे राष्ट्रीय दल कांग्रेस की बात करें तो उसने ‘आरक्षण’ का ‘लालीपाॅप’ थामकर मुस्लिम मतदाताओं को लुभाने की शुरूआत कर्नाटक से की है। कर्नाटक के उप-मुख्यमंत्री और वरिष्ठ नेता डी.के. शिवकुमार ने इस हेतु संविधान बदलने तक का संदेश दे दिया, डी.के. के इस बयान से कांग्रेस सड़क से संसद तक घिरती नजर आ रही है। अर्थात् अब तक कांग्रेस द्वारा जो संविधान बदलने के आरोप भाजपा पर लगाए जाते रहे है, उसी हथियार का उपयोग अब स्वयं कांग्रेस अपने राजनीतिक हित के लिए कर रही है। कांग्रेस ने तो यहां तक कह दिया कि यदि वह देश में भी सत्ता पर आ जाती है तो पूरे देश में संविधान बदलकर मुस्लिमों के आरक्षण का सिद्धांत लागू कर देगी। अब दोनों राष्ट्रीय दलों के इन मंतव्यों पर गौर किया जाए तो ध्वनि यही निकलकर आती है कि अब दोनों ही प्रमुख राष्ट्रीय राजनीतिक दलों ने राजनीति को धर्म से जोड़कर अपना राजनीतिक उद्देश्य पूरा करने का संकल्प ले लिया है, जो मोदी जी व कर्नाटक के सत्तारूढ़ नेताओं के मंतव्यों से उजागर हो रहा है। आज के इस राजनीतिक माहौल और शीर्ष राजनेताओं के मुखारबिंद से निकल रहे शब्दों से देश का आम जागरूक नागरिक इसीलिए चिंतित है कि हमारे संविधान में जिन मुद्दों को राजनीति से पृथक रखा गया है, अब वे ही मुद्दें राजनीति के अंग बनाए जाने के प्रयास हो रहे है, ऐसे में हमारे संविधान की क्या अहमियत रह जाती है। वैसे भी आज हमारे संविधान की उपेक्षा सबसे बड़ी चिंता का विषय बनी हुई है। आज के पक्ष तथा विपक्ष दोनों ही प्रमुख राजनीतिक दलों व उसके नेताओं ने संविधान को हमारे धार्मिक ग्रंथ भागवतगीता व रामायण की तरह लाल बस्तें में लपेटकर रख दिया है और अपना खुद का संविधान तैयार कर लिया है, जो इनकी स्वार्थी सरकार का मुख्य आधार है और अब यदि हमारी राजनीति भी धर्म आधारित हो जाएगी तो फिर सत्ता की कुर्सी पर धर्म नजर आएगा या संविधान? आज का यही सबसे अहम् सवाल जिसका उत्तर हर जागरूक नागरिक ढूंढ रहा है। इसी बीच ‘सौगात-ए-मोदी’ आजाने से आम चिंतन और गंभीर हो गया है। (यह लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं इससे संपादक का सहमत होना अनिवार्य नहीं है) .../ 28 मार्च /2025