लेख
13-Mar-2025
...


इस बार वसंतोत्सव होली और पाक माह रमजान का जुमा एक साथ आया है, जिसे लेकर देश के विभिन्न हिस्सों में विशेष सतर्कता बरती जा रही है। इस त्योहारी सीजन में हिंदू-मुस्लिम एकता और भाईचारा बनाए रखने और पर्व को परंपरागत और शांतिपूर्ण ढंग से मनाने की अपील भी जनता से की गई है। संवेदनशील शहरों व विभिन्न इलाकों में शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए पुलिस ने भी पूरी मुस्तैदी दिखाई है। पुलिस वाहनों के साथ पैदल मार्च कर उत्पातियों व असामाजिक तत्वों को सीधा संदेश दिया गया है कि कोई भी गुस्ताखी बर्दाश्त नहीं की जाएगी, गफलत हुई कि कार्रवाई सख्त होगी। वैसे कहा यही जाता है कि जहां पुलिस ईमानदारी के साथ अपनी ड्यूटी पूरी करती है, वहां क्राइम रेट खुद-ब-खुद गिर जाता है। बहरहाल यहां बात इस समय होली और रमजान पर भाईचारे और सौहार्द बनाए रखने की हो रही है। इस कारण याद आ जाता है वो वक्त जबकि त्यौहार और पर्व के आने की खुशियां बहुत पहले से घर-आंगन से लेकर गलियों और चौक-चौराहों तक में अपनी खुशबू बिखेरने लगती थी। त्यौहार आने के एक पखवाड़ा पहले से ही तैयारियों का दौर शुरु हो जाता था। क्या हिंदू और और क्या मुसलमान सभी धर्मों के मानने वाले एक साथ त्यौहार मनाते और एक-दूसरे को बधाई देते नजर आते थे। यह सच है कि अमीर खुसरो और रसखान के जमाने की होली से लेकर मुंशी प्रेमचंद की ईदगाह तक के यादगार पलों को गुजरे हुए वर्षों गुजर गए। अब वो बीते जमाने की बात हो गई। कहने में हिचक नहीं कि वोट बैंक की खातिर गंदी राजनीति ने समाज को बांटने और धर्म के नाम पर लोगों को लड़ाने का जो काम किया अब वो अपने चरम पर पहुंच चुका है। विभाजनकारी ताकतें अपने मंसूबों पर सफल होती हुई नजर आ रही हैं। यही वजह है कि आज त्यौहार और पर्व आने का नाम सुनते ही शांतिप्रिय लोगों के माथे पर चिंता की लकीरें साफ उभर आती हैं। एक अनजाना डर और भय का वातावरण निर्मित होता है, जिससे लोग स्वंय घरों में कैद हो इस पल के किसी तरह गुजर जाने की प्रार्थना करते नजर आ जाते हैं। इसी के साथ त्यौहार व पर्व का उत्साह समाप्त प्राय: हो जाता है और जो सामने आता भी है तो वह महज दिखावा होता है या फिर एक दूसरे को उकसाने वाली उपद्रवी प्रवत्ति नजर आती है। अब बहुतायत में आपसी भाईचारा और सौहार्द की बातें तो कहानियों में जमा इबारत की बात हो गई हैं। इससे जहां भाईचारे में पड़ी दरार और चौड़ी होती चली जा रही है वहीं समाज से खुशहाली धीरे-धीरे गायब होने लगी है। इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है, इससे पहले कि स्थिति और भयावह हो जाए और दुनियां हम विश्वगुरुओं पर हंसने लगे। हमें अपनी भाईचारे वाली भारतीय संस्कृति और सांझा चूल्हा वाली परंपरा की ओर लौट जाना होगा। इसके बिना तो देश का विकास भी संभव नहीं है। इसका जीता-जागता उदाहरण हमारे पड़ोसी देश हैं जिनके हालात आज इस कदर बदतर हो चले हैं कि कभी भी उनके तुकड़े होने का अंदेशा सताए जा रहा है। अस्थिर सरकारें और उस पर सड़कों पर जनता का विरोध बताता है कि जब बीज बबूल का बोया गया तो आम कहां से होगा। यहां यह भी नहीं भूलना चाहिए कि हिंदुस्तान में मनाए जाने वाले त्यौहार आज और कल की परंपरा का हिस्सा नहीं हैं, बल्कि इनकी अपनी एक ऐतिहासिक पहचान है। होली को ही ले लें इसे वसंत ऋतु में हर्षोल्लास के साथ मनाए जाने के कारण वसंतोत्सव और काम-महोत्सव भी कहा जाता है। इतिहासकार बताते हैं कि आर्यों के काल में भी होली पर्व मनाया जाता रहा है। वह भी इसलिए क्योंकि होली याद दिलाती है बुराई पर अच्छाई की जीत की। पौराणिक कथाओं के अनुसार होलिका राक्षस कुल के महाराज हिरण्‍यकश्‍यप की बहन थीं, जो कि अग्निदेव की उपासक थीं। अग्निदेव ने उन्हें प्रसन्न हो वरदान स्वरुप एक ऐसा वस्त्र दिया था जिसे धारण करने के बाद अग्नि भी उन्हें जला नहीं सकती थी। वहीं बालक प्रहलाद की भगवान विष्णु के प्रति अगाध भक्ति से परेशान राजा हिरण्‍यकश्‍यप ने अपनी बहन होलिका को आदेश दिया कि वह उनके पुत्र प्रह्लाद को गोद में लेकर हवन कुंड में बैठें। उनका मानना था कि ऐसा करने से प्रहलाद अग्नि में जल जाएगा और होलिका उसी वस्त्र की सहायता से सकुशल बाहर आ जाएंगी, लेकिन हुआ उल्टा और प्रहलाद को ईश्वर ने बचा लिया, जबकि होलिका आग में भस्म हो गई। इस प्रकार अधर्म पर धर्म की विजय हुई और तभी से होली मनाने की परंपरा शुरु हो गई। इस प्रकार होली मनाने की परंपरा अनादिकाल से चली आ रही है। वहीं दूसरी तरफ रंगों से खेली जाने वाली होली को राधा-कृष्ण के पावन प्रेम की याद में मनाया जाना बताया जाता है। मतलब होली रंगों के साथ प्रेम और समर्पण का भाव भी लिए हुए होती है। इसके बाद आधुनिकतम होली को वैज्ञानिक और पर्यावरणीय पहलुओं को ध्यान में रख कर खेलने की परंपरा है। इसमें किसी भी प्रकार से किसी को किसी भी तरह की तकलीफ पहुंचाने का कोई संदेश नहीं दिया गया है। इस बार होली चूंकि रमजान के दूसरे सप्ताह के शुक्रवार को आई है, इसे देखते जहां शासन-प्रशासन विशेष सतर्कता बरत रहा है तो वहीं सामाजिक व धार्मिक संगठनों ने भी त्यौहारों को शांतिपूर्वक मनाने और भाईचारा कायम रखने की अपील की है। अब सवाल यह उठता है कि शांति और भाईचारे के साथ सौहार्दपूर्ण वातावरण निर्मित करने की बात महज त्यौहारों और पर्वों के समय पर ही क्यों की जाती है। इसकी आवश्यकता तो साल के 365 दिन होती है, ताकि देश अपने विकास पथ पर बिना रुके तेज गति से आगे बढ़ता चला जाए। इससे भारत में सुख-समृद्धि आएगी और देश का मान दुनियां में बढ़ेगा। इसके लिए गंदी राजनीति खत्म होनी चाहिए और धर्म-जाति व संप्रदाय के आधार पर बांटने की कुचालें परास्त होनी ही चाहिए, ताकि आने वाली पीढ़ी को एक सुंदर और विकसित भारत मिल सके। ..../ 13 मार्च /2025