नई दिल्ली (ईएमएस)। बलोचों के संघर्ष की कहानी भी देश के बंटवारे से जुड़ी हुई है। दरअसल, 1947 में मोहम्मद अली जिन्ना के सिर पर धर्म के आधार पर देश को बांटने का भूत सवार था। उसने अपने इस निजी स्वार्थ को पूरा करने के लिए पूरे भारतीय उपमहाद्वीप को अस्थिर कर दिया। इस महाद्वीप के दूसरे बड़े कौम इस्लाम को तो उसने कहीं का नहीं रखा। इस्लाम मानने वाली एक बड़ी आबादी से उसने उनका देश छीन लिया। देश की आजादी और बंटवारे के वक्त बलूचिस्तान के साथ सबसे ज्यादा अन्याय हुआ। बलूचिस्तान की बहुसंख्यक जनता इस्लाम मानती थी लेकिन वह जिन्ना के प्रभाव से दूर थी। बलोचों के सबसे बड़े नेता खान अब्दुल गफ्फार खान गांधी के एक सबसे बड़े साथी थे। उन्हें सीमांत गांधी की उपाधि दी गई थी। वह कांग्रेस के शीर्ष नेताओं में शुमार थे। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ जंग में बलूचिस्तान में बड़ा आंदोलन किया। वह अहिंसा के कट्टर पुजारी बनकर उभरे थे। उन्होंने 1930 के दशक में महात्मा गांधी के साथ सेवाग्राम में खासा वक्त बिताया था। वह रबींद्रनाथ टैगोर से मिलने शांति निकेतन गए थे। सीमांत गांधी एक सच्चे गांधीवादी थे। वह अहिंसा के पुजारी थे। ऐतिहासिक तथ्यों में कई ऐसी घटनाएं दर्ज हैं जिससे पता चलता है कि वह कितना मजबूत इंसान थे। राजमोहन गांधी ने अपनी किताब ‘गफ्फार खान, नॉन वॉयलेंस बादशाह ऑफ द पखतून्स’ में एक घटना का जिक्र करते हैं। वह तारीख 23 अप्रैल 1930 की थी। उस दिन अब्दुल गफ्फार खान को सरकार ने गिरफ्तार कर लिया। इस घटना के बाद हजारों की संख्या में बलोच लोगों ने चारसद्दा जेल को घेर लिया। पूरा पेशावर शहर ठप्प हो गया। प्रदर्शनकारियों को हटाने के लिए पुलिस की गोलीबारी में 250 से अधिक पठान मारे गए। ब्रिटिश सेना ने गढ़वाल राइफल्स को उतार दिया। हालांकि गढ़वाल राइफल्स ने पठान विद्रोहियों पर गोली चलाने से इनकार कर दिया। इस घटना का पूरा विवरण एक रिपोर्ट में दर्ज है। बलोच अपने आप में एक अलग पहचान रखने वाली कौम है। वैसे तो ये इस्लाम धर्म को ही मानते हैं लेकिन, उनकी संस्कृति, भाषा, खान-पान, रहन-सहन हर एक चीज पाकिस्तान में ही पंजाब और सिंध प्रांत के मुस्लिमों से अलग है। उनका क्षेत्रफल सबसे ज्यादा है। उनके इलाके में मिनरल्स का अकूत भंडार है, बावजूद इसके उनका पूरा इलाका पाकिस्तान में सबसे पिछडे इलाकों में आता है। पाकिस्तान की सियासत और सेना पर पंजाब और सिंध के मुस्लिमों का दबदबा है। ऐसे में बलूचिस्तान और पाकिस्तान के अन्य इलाकों के बीच सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक विषमता की खाई बहुत चौड़ी है।भारत सरकार के पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह ने अपनी किताब ‘वॉकिंग विद लायंस, टेल्स फ्रॉम डिप्लोमेटिक पास्ट’ में लिखते हैं कि देश के बंटवारे के प्रस्ताव पर चर्चा के लिए 31 मई से 2 जून 1947 को कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक हुई। इस बैठक में महात्मा गांधी, खान अब्दुल गफ्फार खान, जयप्रकाश नारायण, राममनोहर लोहिया और मौलाना अब्दुल कलाम आजाद ने देश के बंटवारे का विरोध किया। इसके बावजूद कार्यसमिति ने बहुमत से बंटवारे के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। सीमांत गांधी को लगा कि उनके साथ धोखा हुआ है। वीरेंद्र/ईएमएस 13 मार्च 2025