औरंगजेब भारत में सबसे क्रूर और अपराध करने शासक था और तब गुरू जी के सारे परिवार के शहीद होने की कहानी बताती है वह धर्मान्तरण कराने में निपुण था उसने क्रूरता की सीमा जब लांघी गुरू गोविन्द सिंह जी ने औरंगजेब की क्रूर नीतियों से धर्म की रक्षा के लिए सिखों को संगठित किया और सिख कानून को सूत्रबद्ध किया। इन्होंने कई काव्य की रचना की। इनकी मृत्यु के बाद इन काव्यों को एक ग्रंथ के रूप में संग्रहित किया जो दसम ग्रंथ के नाम से जाना जाता है। सिखों के लिए यह पवित्र ग्रंथ गुरू गोविंद सिंह जी का हुक्म माना जाता है। गुरु गोविंद सिंह की ओर से खालसा पंथ की स्थापना से औरंगजेब नाराज हो गया था। उन्होंने पंजाब के सूबेदार वजीर खां को आदेश दिया कि सिखों को मारकर गोविन्द सिंह को कैद कर लो। गोविंद सिंह ने अपने मुट्ठी भर सिख जांबाजों के साथ मुगल सेना से डटकर मुकाबला किया और मुगलों को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। गोविंद सिंह ने औरंगजेब की इस कार्रवाई पर ही कहा था चिड़िया संग बाज लड़ाऊं, तहां गोविंद सिंह नाम कहाऊं। गोविंद सिंह ने मुगलों की सेना को चिड़िया कहा और सिखों को बाज के रूप में संबोधित किया। इस बात को सुनकर औरंगजेब आग-बबूला हो गया था।गुरु गोविंद सिंह जी वीरता और साहस के प्रतिमूर्ति थे। औरंगजेब ने जब उनके पिता तेगबहादुर की हत्या कर दी तो वे नौ वर्ष की आयु में ही गोविंद सिंह जी को गुरु की गद्दी पर बैठ गए। बचपन में इन्हें सभी प्यार से बाल प्रीतम के नाम से पुकारा करते थे, लेकिन इनके मामा इन्हें गोविंद की कृपा से प्राप्त मानकर गोविंद नाम से पुकारते थे। यही नाम बाद में विख्यात हुआ और बाला प्रीतम गुरु गोविंद सिंह कहलाये। गुरु पद की गरिमा बनाए रखने के लिए गोविंद सिंह जी ने युद्ध कला में प्रशिक्षण प्राप्त करने के साथ ही अनेक भाषाओं की भी शिक्षा प्राप्त की। कुशाग्र बुद्धि और लगन से गोविंद सिंह जी ने कम समय में ही युद्ध कला में महारथ हासिल कर ली और उच्च कोटि के विद्वान बन गये। इन्होंने संस्कृत, पारसी, अरबी और अपनी मातृभाषा पंजाबी को ज्ञान प्राप्त किया। वेद, पुराण, उपनिषद् एवं कुराण का भी इन्होंने अध्ययन किया।वज़ीर ख़ाँ ने गुरु गोबिंद सिंह के दोनों बेटों से कहा कि अगर वो इस्लाम धर्म क़बूल कर लें तो उनकी जान बख्शी जा सकती है. उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया. तब वज़ीर ख़ाँ ने उन्हें ज़िंदा दीवार में चिनवा देने का आदेश दिया. तब उनकी उम्र आठ साल और छह साल थी.” जब उनका सिर और कंधा चिनने से रह गया तब उनसे एक बार फिर धर्म बदलने के बारे में पूछा गया. इस बार भी इनकार करने के बाद उन्हें दीवार से निकाल कर वज़ीर ख़ाँ के सामने पेश किया गया. वज़ीर ख़ाँ ने उन्हें तलवार से मारे जाने का आदेश दे दिया. उनकी मौत की खबर सुनते ही साहबज़ादों की दादी माता गुजरी ने सदमे से दम तोड़ दिया औरंगजेब के क्रोध को शांत करने के लिए मुगलों के सेनापति पाइंदा खां ने कहा कि मैं गोविन्द सिंह से अकेला लडूंगा। हमारी हार जीत से ही फैसला माना जाये। पाइंदा खां का निशान अचूक था इसलिए औरंगजेब इस बात पर राजी हो गया। सिखों और मुगलों की सेना आमने-समाने डट गई। गुरु गोविन्द सिंह ने पाइंदा खां से कहा कि चूंकि चुनौती तुम्हारी ओर से है, इसलिए पहला वार तुम करो। पाइंदा खां ने कहा, ठीक है। तुमने मौत को न्योता दिया है। मेरा पहला वार ही आखिरी वार होगा। फिर उसने धनुष पर बाण चढ़ाकर छोड़ा। गोविन्द सिंह ने पाइंदा खां का बाण बीच में ही काट दिया। अब बारी गोविन्द सिंह की थी। उन्होंने एक तीर छोड़ा और पाइंदा खां का सिर धड़ से अलग हो गया। सिख जीत गए, मुगलों को हार स्वीकार करनी पड़ी। (यह लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं इससे संपादक का सहमत होना अनिवार्य नहीं है) .../ 11 मार्च /2025