लेख
08-Mar-2025
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अमेरिकी अर्थव्यवस्था उपभोक्ताओं और सेन्य कारोबार पर निर्भर रही है। हाल के वर्षों में यह संतुलन बिगड़ता हुआ दिख रहा है। बढ़ती महंगाई, रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचा क्रेडिट कार्ड कर्ज, उच्च ब्याज दरें, अमेरिकी उपभोक्ताओं के क्रय शक्ति को प्रभावित कर रही हैं। इसका सीधा असर खुदरा बिक्री और प्रमुख कंपनियों के राजस्व पर पड़ रहा है। जिससे अमेरिका में आर्थिक मंदी की आशंका बढ़ गई है। अमेरिका की आर्थिक स्थिति बिगड़ने का प्रभाव केवल अमेरिका तक सीमित नहीं रहेगा। भारत, चीन और यूरोप जैसी बड़ी अर्थव्यवस्थाएं भी इससे अछूती नहीं रहेंगी। वैश्विक वित्तीय बाजारों में तेजी के साथ वित्तीय अनिश्चितता बढ़ेगी। निवेशकों का रुझान डॉलर की ओर जाएगा। इससे भारतीय रुपये की कमजोरी और भी बढ़ना तय है। इस कारण भारत में महंगाई अधिक बढ़ने की संभावनाएं हैं। भारत में कच्चे तेल, इलेक्ट्रॉनिक्स और अन्य आयातित वस्तुओं की कीमतें 10 से 15 फ़ीसदी तक बढ़ सकती हैं। जिससे आम नागरिकों की रोजमर्रा की जरूरतें महंगी हो जाएंगी। अमेरिकी मंदी का असर भारतीय निर्यात कारोबार पर भी पड़ना तय है। भारत के आईटी सैक्टर, दवा उद्योग, कपड़ा और आभूषण क्षेत्र अमेरिकी बाजारों पर निर्भर है। यदि वहां मांग कम होती है, तो इन क्षेत्रों में उत्पादन और रोजगार पर संकट भारत में भी गहरा सकता है। इसी तरह, विदेशी निवेश में भी कमी आना तय है। भारतीय शेयर बाजार से विदेशी निवेशक लगातार अपना निवेश निकाल रहे हैं। जिसके कारण भारत में शेयर बाजार में भारी गिरावट देखने को मिली है। यह स्थिति टैरिफ वार के पहले की है। जब टेरिफ वार शुरू होगा, तो उसके बाद क्या स्थिति होगी। इसका आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है। भारतीय स्टार्टअप और छोटे व्यवसायों को आने वाले समय में फंडिंग मिलना मुश्किल हो सकता है। अमेरिका का यह संकट भारत के लिए एक अवसर भी बन सकता है। भारत सरकार घरेलू उद्योग और बाजार को मजबूत करने के सुनियोजित प्रयास युद्ध स्तर पर किए जाएं, तो भारत के लिए सुनहरा अवसर भी हो सकता है। भारत की आबादी उसके लिए बड़ी पूंजी बन सकती है। चीन की तर्ज पर भारत के बाजार को वैश्विक मांग के अनुसार विकसित किया जा सकता है। सरकार को निर्यात मे विविधता देने के लिये घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने और रुपये को वैश्विक बाजार में स्थिर बनाये रखने के लिए नई रणनीति बनानी होगी। अमेरिका की आसन्न मंदी का असर पूरी दुनिया पर पड़ेगा। इसकी गंभीरता इस पर निर्भर करेगी, विभिन्न देश कितनी कुशलता से अपनी अर्थव्यवस्थाओं को संतुलित कर पाते हैं। भारत को इस संकट के प्रति सतर्क रहकर दीर्घकालिक नीतियों पर ध्यान देने की आवश्यकता है। भारत सरकार को इस तरह से अपनी नीतियां बनानी होंगी, जिससे भारत में स्थानीय स्तर पर रोजगार बढ़े, निर्यात व्यापार के लिए छोटे उत्पादकों और कारोबारियों को मौका मिले, इसका ध्यान रखना जरूरी है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जिस तरह की नीतियां लागू करने की कोशिश की है इसका असर भारत सहित दुनिया के सभी देशों में पडने जा रहा है। चीन और यूरोप के देशों ने अमेरिका की इस नई नीति के विरोध में अपनी कमर कस ली है। अमेरिका को वह बराबरी से जवाब देने की तैयारी कर रहे हैं। भारत सरकार ने अपनी किसी नीति का खुलासा नहीं किया है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पिछले दो महीने में भारत को लेकर जो नीति बनाई है और कार्रवाई की है, उसके बारे में भारत सरकार का मौन साध लेना भारत के साथ-साथ वैश्विक कूटनीतिक एवं सामरिक संबंधों को भी प्रभावित कर रहा है। भारत सरकार दो पाटों के बीच में फंसकर रह गई है। भारत सरकार अभी तक समझ ही नहीं पा रही है, उसे स्थिति का मुकाबला किस तरह से करना है। आर्थिक क्षेत्र में भारत सरकार की जो नीतियां हैं। वह लगातार भारतीय अर्थव्यवस्था को नीचे की ओर ले जा रही हैं। ऐसी स्थिति में सरकार को अच्छे आर्थिक विशेषज्ञों की सलाह अर्थव्यवस्था को लेकर लेनी होगी। भारत की अर्थव्यवस्था में ब्यूरोक्रेट काम कर रहे हैं। ब्यूरोक्रेट के स्थान पर जल्द से जल्द अर्थशास्त्रियों की तैनाती करनी होगी। जो सरकार को समय-समय पर सही सलाह दे सकें। जिस तरह की स्थिति वैश्विक स्तर पर बन रही है, उस पर काफी गंभीरता के साथ चिंतन मनन करते हुए सरकार को दीर्घकालिक नीतियां बनानी होंगी। अमेरिका की अर्थव्यवस्था का असर भारत सहित दुनिया के सभी देशों में होने जा रहा है। इसलिए भारत सरकार को और भी सजग रहने की जरूरत है। ईएमएस /08 मार्च 25