लेख
07-Feb-2025
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अमेरिका और यूरोप के अन्य देशों में लाखों भारतीय अवैध रूप से रह रहे हैं। यह सभी भारतीय जहां रह रहे हैं। वहां पर भारतीय दूतावास भी हैं। अवैध दस्तावेजों के सहारे भारतीयों को विदेश में ले जाने के लिए एजेंट फर्जी दस्तावेज तैयार कराते हैं। विदेश में रोजगार और नौकरी के लिए जाने वालों से 25 से 50 लाख की वसूली करते हैं। उसके बाद एक देश से दूसरे देश में ले जाकर अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा इत्यादि देशों में ले जाकर छोड़ देते हैं। लाखों रुपए गवांने के बाद भारतीय मूल के नागरिक विदेशों में नाराकीय जीवन जी रहे हैं। भारतीय दूतावास उनकी कोई मदद नहीं करते हैं। भारत के एजेंट गलत दस्तावेजों पर प्रतिवर्ष लाखों लोगों को विदेश भेजतें हैं। उन पर भारत सरकार कार्रवाई क्यों नहीं करती है। भारत में धोखाधड़ी का यह धंधा बढ़ता ही जा रहा है। जांच एजेंसियां हाथ में चूड़ी डालकर बैठी हुई है। लाखों परिवारों का जीवन हर साल भारत में बर्बाद हो रहा है। ग्रेजुएट, पोस्ट ग्रेजुएट करने के बाद भी भारत में नौकरी नहीं मिल रही है। विदेशों में जाकर उन्हें मजदूरों की तरह या छोटा-मोटा धंधा करके अपना जीवन यापन करने की मजबूरी होती है। उस मजबूरी का लाभ धोखेबाज और सरकार भी उठाती है। विदेशों मे स्थापित भारतीय दूतावास नकारा साबित हो रहे हैं। अमेरिका से जो अवैध प्रवासी भारतीय आए हैं। उन्हें अमेरिका में बेडियों में जकड कर रखा गया। उनके साथ पशुओं की तरह व्यवहार किया गया। उन्हें हिरासत में भोजन नहीं दिया गया। डिटेंशन सेंटर में क्षमता से पांच गुने से ज्यादा लोगों को रखकर उनके साथ अमानवीय व्यवहार किया गया। भारत सरकार ने चुप्पी साध रखी है। हाल ही में महाराष्ट्र, नागपुर के कारोबारी हरप्रीत सिंह अमेरिका से अप्रवासी भारतीय के रूप में उन्हें हिरासत में वापस लाया गया है। उन्होंने अपनी आपबीती सुनाते हुए कहा वह 10 दिसंबर को मुंबई से निकले थे। 58 दिनों की उन्होंने नारकीय यात्रा की। यात्रा एजेंट उन्हें कानूनी दस्तावेज के माध्यम से 18 लाख रुपए में कनाडा लेकर जा रहे थे। उन्हें अबू धाबी में रोक लिया गया। भारतीय दूतावास ने आगे बढ़ने से मना किया था। उसके बाद भी एजेंट ने उन्हें कनाडा ले जाने के लिए, अवैध रूप से दक्षिण अमेरिका भेज दिया। ग्वाटेमाला में हरप्रीत सिंह और अन्य प्रवासियों को पुलिस और माफिया के चक्कर में फंसना पड़ा। किसी तरह से डॉलर देकर वहां से छुटकारा पाया। इसके बाद माफिया ने उन्हें अवैध रूप से अमेरिका में प्रवेश करा दिया। हरप्रीत सिंह ने अपने परिवार और दोस्तों से किसी तरह से पैसे जुटाए। नेपाल से गए एक नागरिक के पास पैसे नहीं होने के कारण उसे बार्डर के पहिले गोली मार दी गई। अमेरिका पहुंचते ही उन्हें पुलिस ने हिरासत में ले लिया। इस यात्रा में उसके और परिवार के 50 लाख रुपए से अधिक खर्च हो गए। मां और पत्नी के गहने बिक गए। पूरा परिवार कर्जदार हो गया। अब भारत लौट कर आए हैं। यहां पर अब सुरक्षा एजेंसियों के चक्कर काट रहे हैं। अब यहां की सुरक्षा और जांच एजेंसियों की वसूली शुरू हो गई है। जो एजेंट अवैध रूप से लेकर गया था। उस पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई। यही कहानी गुजरात के मेहसाणा की 28 साल की निकिता पटेल की है। वह 30000 रूपये की नौकरी गुजरात के आणंद से छोड़कर नौकरी के लिए यूरोप गई थी। नौकरी तो नहीं मिली, यात्रा एजेंट ने वीजा एवं अन्य खर्चो के रूप में 52 लाख वसूल कर लिए। वह कनाडा से होते हुए अमेरिका पहुंच गई थी। वहां उसे नौकरी भी मिल गई थी। नौकरी के कुछ दिनों के अंदर ही उसे गिरफ्तार कर डिटेंशन सेंटर में डाल दिया गया। वहां पर जानवरों की तरह रखा गया। जो लोग अमेरिका से वापस लौटे हैं। सबकी एक ही तरह की कहानी है। धोखाधड़ी करके पहले उन्हें इटली, ब्राज़ील, मेक्सिको अथवा अन्य देशों में ले जाया गया। 15 से 17 पहाड़ियों को पैदल पार कराके अथवा वोट के द्वारा अवैध रूप से मेक्सिको के रास्ते अमेरिका भेजा गया। वह सब भारतीय एजेंटों की धोखाधड़ी का शिकार हुए हैं। फर्जी वीजा इत्यादि की सहायता से उन्हें ठगा गया। दूसरे देशों के भारतीय दूतावास ने उनकी कोई मदद नहीं की। 20407 भारतीयों को अवैध रूप से अमेरिका पहुंचने के आरोप में गिरफ्तार हैं। उनके पैरों पर डिजिटल ट्रेफर लगाए गए हैं। 24 घंटे यह अमेरिकी सुरक्षा कर्मचारियों के निगरानी में रहते हैं। 2467 भारतीय कैदी डिटेंशन सेंटर में है, वहां पर इन्हें भोजन भी नहीं मिल रहा है। जब से डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति बने हैं। उसके बाद 40000 से ज्यादा भारतीय कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया गया है। अमेरिका के सभी 50 राज्यों में चुन चुन कर भारतीयों को नौकरी से निकाला जा रहा है। भारत सरकार अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ रही है। भारत में इस अवैध धंधे को रोकने के लिए केंद्र सरकार या राज्य सरकारों द्वारा कोई कार्यवाही समय पर नहीं की जाती है। लोगों के पास भारत में नौकरी और रोजगार नहीं है। पलायन आदमयुग से चला आ रहा है। पशु-पक्षी जानवर और मानव हमेशा से अपने पेट भरने के लिए यहां से वहां आता-जाता रहता है। यह व्यवस्था कभी बंद नहीं होगी। भारत सरकार अपने देश के नागरिकों को दो वक्त की रोटी रोजगार और नौकरी नहीं दे पा रही हैं। ऐसी स्थिति में पलायन एकमात्र विकल्प हैं। भारत से इतनी बड़ी संख्या में पढ़े लिखे लोग पलायन कर रहे है। रोजगार और भविष्य के लिए अपने पुरखों की कमाई को दांव पर लगा देना, यह साधारण घटना नहीं है। सरकार को इस विषय पर तुरंत ध्यान देने की जरूरत है। युवाओं को मजदूरी का भी काम नहीं यहा मिल पा रहा है। यह स्थिति भारत के लिए सामान्य घटना नहीं है। सरकार ने समय रहते ठोस कदम नहीं उठाया, तो इसके दुषपरिणाम जल्द ही सामने आ सकते हैं। ईएमएस / 07 फरवरी 25