राज्य
05-Feb-2025
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:: रूस-यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि पर आधारित अद्वितीय कृति है उपन्यास, लेखक राजकुमार चन्दन की ऐतिहासिक उपलब्धि :: इन्दौर/देवास (ईएमएस)। साहित्य जगत के लिए यह एक ऐतिहासिक क्षण है कि विश्व शांति के उद्देश्य से लिखे गए भारतीय उपन्यास ‘आइ एम द टाइम’ (I’m The Time) को वर्ष 2025 के नोबेल साहित्य पुरस्कार के लिए नॉमिनेट किया गया है। इस महत्वपूर्ण कृति के लेखक ‘स्वर्ग की खोज’ जैसे चर्चित उपन्यास के रचयिता राजकुमार चन्दन हैं। यह उपन्यास केवल एक कथा नहीं, बल्कि एक दर्शन है, जो वर्तमान वैश्विक परिस्थितियों को देखते हुए एक स्थायी शांति का मार्ग प्रशस्त करता है। यह उपन्यास रूस-यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि पर आधारित है और इसमें लेखक ने विश्व शांति की स्थापना के लिए गहन विचार प्रस्तुत किए हैं। इसमें न केवल युद्ध के कारणों और प्रभावों का विश्लेषण किया गया है, बल्कि उन्होंने ऐसी स्थायी रणनीतियां भी सुझाई हैं, जो संपूर्ण विश्व के लिए उपयोगी साबित हो सकती हैं। राजकुमार चन्दन लंबे समय से विश्व शांति के लिए लेखन कर रहे हैं। उन्होंने अपनी लेखनी को एक मिशन के रूप में अपनाया है और उनका संपूर्ण साहित्य मानवता की सेवा के लिए समर्पित है। उनकी इस निष्ठा और लेखन क्षमता के कारण उनके नाम अब तक पाँच विश्व रिकॉर्ड दर्ज हो चुके हैं। देवास जैसे ऐतिहासिक शहर से संबंध रखने वाले इस लेखक का नोबेल पुरस्कार के लिए नॉमिनेशन केवल देवास या मध्यप्रदेश के लिए ही नहीं, बल्कि संपूर्ण भारत के लिए गर्व का विषय है। संभवत: यह पहली बार है जब शहर के किसी लेखक का ऐसा साहित्यिक कार्य विश्व शांति के संदर्भ में इतनी बड़ी मान्यता के लिए प्रेषित किया गया हो। :: युद्ध के अंधकार में शांति का संदेश :: आज जब पूरी दुनिया वैश्विक तनाव, तृतीय विश्व युद्ध की आहट और परमाणु युद्ध के खतरों से जूझ रही है, तब यह उपन्यास शांति की एक नई राह दिखाता है। यह केवल युद्ध और उसके प्रभावों का चित्रण नहीं करता, बल्कि विश्व के प्रत्येक नागरिक और राष्ट्र के लिए एक ऐसा मार्ग सुझाता है, जिससे संपूर्ण मानवता सुख, समृद्धि, शांति और सुरक्षा की ओर बढ़ सके। लेखक का यह दृष्टिकोण प्राचीन भारतीय विचारधारा ‘वसुधैव कुटुंबकम’ से प्रेरित है, जिसका अर्थ है – ‘संपूर्ण विश्व एक परिवार है।’ इस दर्शन को आधार बनाकर उपन्यास में यह दिखाया गया है कि यदि सभी राष्ट्र और नागरिक परस्पर सहयोग और समझदारी से काम लें, तो संपूर्ण विश्व एक सशक्त, शांतिपूर्ण और समृद्ध समाज में बदल सकता है। :: तीन भाषाओं में प्रकाशित हुई कृति :: साधना कुंज पब्लिकेशन, मध्यप्रदेश द्वारा यह उपन्यास हिन्दी में ‘मैं समय हूँ’, अंग्रेजी में ‘आइ एम द टाइम’ और मराठी में ‘मी वेळ आहे’ नाम से तीन भाषाओं में प्रकाशित किया गया है। नोबेल पुरस्कार के लिए विशेष रूप से इसके अंग्रेजी संस्करण को नॉमिनेट किया गया है, जिससे यह विश्वभर में अधिक से अधिक पाठकों तक पहुंच सके। इस उपलब्धि पर साधना कुंज पब्लिकेशन के प्रकाशक ओमप्रकाश नवगोत्री ने लेखक राजकुमार चन्दन को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि यह केवल एक उपन्यास नहीं, बल्कि एक आंदोलन है, जो मानवता के हित में लिखा गया है। उन्होंने नोबेल पुरस्कार के लिए नॉमिनेशन प्रक्रिया में सहयोग करने वाले सभी व्यक्तियों का आभार व्यक्त किया और आशा जताई कि यह उपन्यास दुनिया भर में शांति का संदेश फैलाने में सफल होगा। यह जानकारी विशाल जलोरे ने दी। :: क्या है इस उपन्यास में ; उपन्यास का संक्षिप्त कथानक :: आइ एम द टाइम साधना कुंज पब्लिकेशन द्वारा तीन भाषाओं (हिन्दी, इंग्लिश, मराठी) में प्रकाशित अद्वितीय कृति है। रूस-यूक्रेन युद्ध पर आधारित यह एक प्रयोगवादी उपन्यास है, जो विश्व शांति एवं वैश्विक परिवार बनाने की एक नई सोच प्रदान करता है। यूक्रेन में कई देशों के विद्यार्थी पढ़ते हैं, उनमें भारतीय विद्यार्थी भी शामिल हैं। हिमानी नाम की एक भारतीय छात्रा इस उपन्यास की नायिका है। रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध प्रारंभ हो जाता है। सभी विद्यार्थी यूक्रेन छोड़ने को मजबूर हो जाते हैं, लेकिन विद्यार्थियों की परेशानी देखकर हिमानी वहां से नहीं जाती। वह गहन सोच-विचार के बाद संकल्प लेती है कि यूक्रेन में रहकर ही वह पीड़ितों का इलाज करेगी, चाहे पीड़ित रूस का हो या यूक्रेन का। साथ ही, वह विश्व शांति का अभियान भी चलाएगी। हिमानी का यह संकल्प अन्य विद्यार्थियों को प्रेरित करता है। परिणामस्वरूप, कई अन्य देशों के विद्यार्थी भी वहीं रुककर उसके अभियान में मदद करते हैं। सभी विद्यार्थी हिमानी के नेतृत्व में वर्ल्ड पीस फोरम का गठन कर नो वार अभियान चलाते हैं। वे खतरों के बीच रहकर घायलों का इलाज करते हैं और वैश्विक सद्भावना एवं मानवता के लिए कार्य करते हैं। विद्यार्थी युद्ध, अशांति और उन्माद के कारणों को खोजकर उनके समाधान ढूंढते हैं और उन्हें प्रचारित करते हैं। खतरों के बीच रहकर वे युद्ध पीड़ितों की मदद करते हैं। अभियान बहुत तेजी से आगे बढ़ता है और इसका विस्तार होता जाता है। वे अनेक चुनौतियों का सामना करते हुए नो वार अभियान को आगे बढ़ाते हैं। युद्ध के बीच, जब हिमानी युद्ध पीड़ितों की सहायता कर रही होती है, तब अंत में वह एक यूक्रेनी बच्चे और एक रूसी महिला को बचाने के प्रयास में गोलियों का शिकार होकर घायल हो जाती है। यह स्थिति अत्यंत मार्मिक हो जाती है। इस परिस्थिति में दोनों देशों के छिपे हुए सैनिक उसके पास आ जाते हैं। हिमानी अंतिम समय में उन सैनिकों को नो वार का संदेश देते हुए अपने प्राण त्याग देती है। हिमानी का यह बलिदान सैनिकों को झकझोर देता है, जिससे भावुक होकर दोनों पक्षों के सैनिक अपने हथियार डाल देते हैं। यथार्थ और कल्पना के मिश्रण से रचा गया यह उपन्यास वर्तमान वैश्विक ढांचे में सुधार के विकल्प और विश्व शांति के उपायों को वैश्विक पटल पर प्रस्तुत करने का एक सार्थक प्रयास है। उमेश/पीएम/05 फरवरी 2025