देश हुआ आर्थिक मंदी का शिकार हाल ही में प्रकाशित फोर्ब्स की सूची में भारत को दुनिया के 10 सबसे शक्तिशाली देशों की सूची से बाहर कर दिया गया है। रुपये की ऐतिहासिक गिरावट और बेरोजगारी के बढ़ते आंकड़े, भारत की अर्थव्यवस्था के लिए गंभीर चुनौती हैं। भारत अभी भी सपने की आर्थिक स्थिति को लेकर आत्ममुग्ध है। भारत को सपने से बाहर निकलकर वास्तविक स्थिति को स्वीकार कर आर्थिक नीति में बड़े सुधारों की ओर आगे बढ़ने की आवश्यकता है। भारत को पिछले कई वर्षों से विश्वगुरु और आर्थिक महाशक्ति के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। वास्तविकता ठीक इसके विपरीत है। जिन देशों की अर्थव्यवस्था भारत से छोटी है, वे वैश्विक शक्ति-सूचकांकों में भारत से कहीं ज्यादा आगे निकल चुके हैं। रूस, ब्रिटेन, जर्मनी, दक्षिण कोरिया और इजराइल 10 शक्तिशाली देश की सूची में शामिल हैं। जबकि भारत 10 देशों की सूची में शामिल नहीं है। अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर रुपये की गिरावट भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक गंभीर संकेतक है। डॉलर के मुकाबले रुपया 87 के स्तर तक पहुंच गया है। डॉलर महंगा होने के कारण विदेश से होने वाला आयात महंगा हो गया है। भारत का व्यापार संतुलन बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। भारत से निर्यात कम हो रहा है, आयात बढ़ता चला जा रहा है। घरेलू उद्योगों को बढ़ावा देने के स्थान पर भारत की बाजार नीतियां आयात को बढ़ावा दे रही हैं। भारत में जीडीपी की तुलना में 3 गुना कर्ज हो गया है। 3 लाख करोड़ ब्याज में चुकाना पड़ रहा है। भारत के बाजार में चीनी उत्पादों की भरमार से स्थानीय व्यापार और कारोबार लगभग खत्म हो चला है। मेक इन इंडिया जैसे अभियानों की सफलता केवल भाषणों तक सीमित रही हैं। मेक इन इंडिया पर प्रश्नचिह्न खड़ा हो गया है। भारत ने अभी भी उच्च तकनीकी क्षेत्रों में काम ही शुरू नहीं किया है। आत्म निर्भर बनने की बात तो सोचना भी व्यर्थ है। सत्ता के प्रचार तंत्र ने आम नागरिकों को भाषणों और योजनाओं के जरिए यह विश्वास दिलाने की कोशिश की है। देश तेजी के साथ प्रगति कर रहा है। लेकिन यह वास्तविकता से दूर है। बेरोजगारी दर भारत में 45 वर्षों के उच्चतम स्तर पर है। पिछले 10 वर्षों में असंगठित क्षेत्र की अनदेखी से करोड़ों लोगों की आजीविका प्रभावित हुईं है। असंगठित क्षेत्र और कृषि क्षेत्र में बेरोजगारी बढ़ती ही चली गई है। कृषि क्षेत्र में श्रमिकों की वापसी इस बात का प्रमाण है। औद्योगिक और सेवा के क्षेत्र पर्याप्त रोजगार देने में असमर्थ हैं। इन क्षेत्रों में लगातार बेरोजगारी बढ़ रही है। भारत सरकार को आत्मसंतोष से बाहर निकलकर आर्थिक नीतियों की समीक्षा करनी होगी। वैश्विक शक्ति-सूची के शीर्ष में आने के लिए केवल सपने देखने एवं प्रचार-प्रसार करने से लाभ नहीं होगा। वास्तविक रूप से हमें प्रयास करने होंगे। शोध और शिक्षा के लिए हमें अपने बजट को बढ़ाना होगा। गैर संगठित क्षेत्र के लोगों को फलने-फूलने का मौका देना होगा। हम अपने संसाधनों का सही उपयोग करें। नवाचार और तकनीकी विकास पर ज्यादा से ज्यादा ध्यान देना होगा। भारत की भौगोलिक स्थिति, युवाओं की सबसे बड़ी आबादी को मांग और पूर्ति के सिद्धांत से जोड़कर हमें अपनी आंतरिक जरूरतों को स्वयं पूरी करने के मार्ग में आगे बढ़ना होगा। आयात पर निर्भरता कम करनी होगी। निर्यात के लिए हमें नए-नए बाजार खोजने होंगे। चीन ने पिछले दो दशक में सारी दुनिया की मांग के आधार पर अपनी उत्पादन नीति बनाई है। दुनिया के देशों को उनकी मांग के अनुसार कम से कम कीमत में उत्पाद भेजे जा रहे हैं। जिसके कारण चीन का निर्यात पिछले दो दशक में दुनिया भर के देशों में बड़ी तेजी के साथ बढ़ा। चीन आर्थिक रूप से बड़ी तेजी के साथ बढ़ा। चीन में लोगों को काम मिला, उनकी आर्थिक स्थिति बेहतर हुई। भारत की आबादी 140 करोड़ से अधिक हो गई है। 50 फ़ीसदी आबादी युवा है। 25 से 30 फ़ीसदी आबादी बेरोजगार है। पिछले 10 वर्षों में असंगठित क्षेत्र का रोजगार एवं कारोबार लगभग खत्म हो गया है, जिसके कारण भारतीय अर्थव्यवस्था लड़खड़ा गई है। भारत सरकार ने बड़े-बड़े औद्योगिक समूहों को बड़ी सुविधायें दीं। उनको आगे बढ़ाने के लिए ऐसे कानून बनाए, जिसके कारण स्थानीय रोजगार और कारोबार पर इसका विपरीत असर पड़ा। कृषि के क्षेत्र में भी भारत सरकार की नीति सबसे ज्यादा खराब रही है। भारत सरकार दलहन और तिलहन के उत्पाद विदेशों से आयात करती है। भारत में किसानों को उनकी उपज का लागत मूल्य भी सरकार नहीं देती है। जिस कारण हम दलहन और तिलहन जैसे क्षेत्र में भी आयात पर निर्भर होते चले गए। ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी बढ़ी। महंगाई के कारण आम आदमी को अपनी दैनिक जरूरतों को पूरा करना मुश्किल हो गया है। स्थानीय मांग को अब आयात के जरिए पूरा किया जा रहा है। दशहरा दीपावली और होली जैसे त्यौहार भी चीन से आयातित वस्तुओं के जरिये मनाए जा रहे हैं। स्थानीय रोजगार पूरी तरह से खत्म होता चला जा रहा है। भारत सरकार को अपनी नीतियों की समीक्षा करनी होगी। वैश्विक व्यापार संधि की आड़ में भारत के असंगठित क्षेत्र के रोजगार को खत्म होने के कारण भारत की आर्थिक स्थिति पिछले 10 वर्षों में कमजोर हो गईं। इसके दुष्परिणाम अब देखने को मिल रहे हैं। समय रहते भारत सरकार को अपनी नीतियों में परिवर्तन करना होगा। असंगठित क्षेत्र के पंख खोलना होगा ताकि वह अपनी उड़ान भर सकें। भारत सरकार को चीन की तरह छोटे उत्पादकों और निर्यातकों को दुनिया भर के बाजार मुहैया कराने के लिए नीति बनानी होगी। तभी भारत अपनी खोई हुई स्थिति हासिल कर सकता है। भारत की आबादी इस समय सबसे ज्यादा युवा है। भारत सरकार को श्रम शक्ति का बेहतर उपयोग हो इस दिशा में काम करने की जरूरत है। एसजे/ 5 फरवरी /2025