लेख
04-Feb-2025
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प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ में प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय ने एक ऐसा दिव्य एवं भव्य शिविर लगाया हुआ है,जिसे देखकर सतयुग का आभास होता है। इस आध्यात्मिक मनमोहक झांकियो से सुसज्जित शिविर में कलयुग से सतयुग तक की ज्ञानवर्धक झांकियां लगाई गई हैं। डिजिटल तकनीक के माध्यम से विभिन्न युगों के दृश्यों को दर्शाने का प्रयास किया गया है।तभी तो प्रतिदिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु ब्रह्मकुमारीज के इस शिविर का दीदार करने पहुंच रहे हैं। ये झांकियां लोगों को अपनी तरफ आकर्षित कर रही हैं,साथ ही श्रद्धालुओं की जिज्ञासा का समाधान भी ब्रह्माकुमारी बहनो व भाईयो द्वारा किया जा रहा है।ब्रह्माकुमारीज ने अपने इस शिविर में युग परिवर्तन को रेखांकित किया है।जिसमें सबसे पहले कलयुगी कांटों का जंगल दिखाया गया है, जिसमें यह दर्शाया गया है कि आज के समय में समाज में रहने वाला मनुष्य दिखने में तो मनुष्य है, लेकिन उसके अंदर के जो विकार हैं,जो विकृत मनोवृत्तियां हैं, उन मनोवृतियों के कारण आज वह पशु के समान व्यवहार कर रहा है।चाहे वह लोभवृति है, चाहे अहंकार वृत्ति है या फिर काम वृत्ति है ,ये सभी मनुष्य के जीवन को पतन की तरफ ले जा रही हैं।जबकि समय की मांग यह है कि हमें अगर इस कलयुगी जंगल को बदलना है तो उसके लिए सबसे पहले हमें अपने अंदर की इन दूषित मनोवृतियों को खत्म करना पड़ेगा।दूषित मनोवृतियों को खत्म करने के लिए हमे आत्मबोध में रहकर परमात्मा का ध्यान करना होगा।तभी हम पतित से पावन बन सकते है।आज जिसे हम सामाजिक बुराई के रूप में देख रहे हैं जिसके तरह मनुष्य, मनुष्य को बिना किसी संवेदना के मार रहा है। मरने वाला भी मनुष्य है और जो मार रहा है वह भी मनुष्य है, लेकिन किसी के अंदर कोई भी संवेदना नहीं है,संवेदनहीन मनुष्य आज कैसे गिरावट की ओर इस समाज को लेकर जा रहा है। हम सब इस समाज के मनुष्य हैं और हमारी हर एक की ड्यूटी है कि हम अपने समाज को बदलने के लिए पहले स्वयं को बदले ।जिसकी शुरुआत स्वपरिवर्तन से करनी पड़ेगी। अगर हम अपने से परिवर्तन शुरू करेंगे तो हम अपने समाज का, अपने देश का और सारे विश्व का परिवर्तन कर सकते हैं। भगवान हमें जो सिखाते हैं वह संस्कार परिवर्तन से संसार का परिवर्तन हो जाएगा, यानि पहले हम अपने संस्कारों को बदलें फिर दूसरे संस्कारों को बदलना होगा। हमें अपने अंदर की दिव्यता को रूहानी मूल्यों को, नैतिक मूल्यों जागृत करना पड़ेगा।परमात्मा ने हमें जो आध्यात्मिक ज्ञान दिया हुआ है जो हमें स्वयं की पहचान दी हुई है, जब हम अपने आप को जान लेते हैं, अपनी वास्तविकता को पहचान लेते हैं तो हम अपने अवगुणों को सहज रीति से छोड़ पाते हैं। फिर जो हम अपने जीवन में बदलाव लाते हैं उससे हमारे आसपास का वायुमंडल है जो संबंध हैं उनमें भी परिवर्तन आता है।उस परिवर्तन के लिए भगवान हमें आध्यात्मिक ज्ञान दे रहा है।जब हम परिवर्तित होंगे तो हम युग का परिवर्तन कर सकते हैं और जब युग परिवर्तन होगा तो हम नकारात्मक से सकारात्मक की ओर जाएंगे,तभी हम कलयुग से सतयुग में प्रवेश कर सकते हैं। दुनिया तो बाद में बनेगी पहले हमें अपने आप को सतयुगी बनाने की जरूरत है। हमें सतयुगी संस्कार सतयुगी गुण अपने जीवन में धारण करने की आवश्यकता है। हमें अपनी बुराइयों को छोड़ने की आदत डालनी होगी।हम अपने जीवन में आध्यात्मिकता को लाते हैं तो स्वतः धीरे-धीरे हमारी मनोवृत्तियां और जो विकार हैं वह हमारे से समाप्त होते चले जाते हैं। महाकुंभ प्रयागराज में ब्रह्माकुमारीज़ के इस स्वर्णिम भारत ज्ञान कुंभ शिविर जो कि 10 जनवरी से 16 फरवरी तक संचालित है ,में विभिन्न प्रकार के मंडपों को 2 एकड़ भूमि में सजाया गया है lजिसमें चैतन्य देवियों की झांकी प्रमुख आकर्षण का केंद्र हैl इसके बाद साहित्य स्टाल लगाया गया है lभारत माता मंडपम और होलोग्राम शो जिसमें निराकार परमात्मा शिव को लेजर किरणों द्वारा विभिन्न रंगों के द्वारा प्रदर्शित किया गया हैl यह मंडप बहुत ही मनोरम व आकर्षण का केंद्र है और भारी भीड़ को आकर्षित कर रहा है l युग परिवर्तन दिव्य दर्शन के अंतर्गत विचित्र कलयुगी जंगल और सतयुग को बहुत बारीकियां से चित्रों द्वारा समझाया गया हैl शिविर में ग्राम विकास प्रभाग द्वारा यौगिक खेती के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी दी गई है कि किस प्रकार हम जैविक खादों के प्रयोग से उन्नत और पौष्टिक अन्न और सब्जियों को उत्पन्न कर सकते हैं lमाइंड स्पा मंडप में संकल्पों द्वारा मन की सकारात्मक को विकसित करने की तकनीकी बहुत बारीकी से सिखाई जा रही है । संस्कारनिष्ठ मूल्य नगरी मंडप में मनुष्य के जीवन में खेल-खेल में किस तरह से संस्कारों को परिष्कृत किया जाए, यह बहुत जल्दी आसानी से माता-पिता को सिखाया जाता है lसाथ ही दिव्य चरित्र ज्ञान प्रदर्शनी लगाई गई है जिसमें विभिन्न प्रकार के आध्यात्मिक रहस्य को समझाया जाता है ।वास्तव में ब्रह्माकुमारीज़ के इस विशाल एवं आध्यात्मिकता से लबरेज शिविर में आकर लगता है ,जैसे ब्रह्मांड ही नही ,सभी युगों व परमधाम के भी दर्शन कर लिए हो। (लेखक आध्यात्मिक चिंतक व वरिष्ठ साहित्यकार है) (यह लेखक के व्य‎‎‎क्तिगत ‎विचार हैं इससे संपादक का सहमत होना अ‎निवार्य नहीं है) ईएमएस / 04 फरवरी 25