सनातन युग में समुद्र मंथन के दौरान प्रकट हुए अमृत कलश से छलकी चार बूंदे भारत भूमि पर जहां गिरी थी उन्हीं चार स्थानों पर हर तीन साल के अंतराल से कुंभ या सिंहस्थ मेले आयोजित होते आ रहे है। ये पुण्य स्थल है अवंतिका (उज्जैन), नासिक, हरिद्वार और प्रयाग (इलाहाबाद), इसी पुरातन परम्परा के अनुरूप इस वर्ष प्रयाग में महाकुंभ का आयोजन हुआ है, अब अगला महाकुंभ 2028 में उज्जैन में होगा, जिसे सिंहस्थ नाम इसलिए दिया गया है, क्योंकि उस समय सूर्य सिंह राशि स्थान पर अवस्थित रहता है, ये चार धार्मिक शहर उज्जैन, नासिक, हरिद्वार और प्रयाग इन मेलों के कारण काफी सुर्खियों में रहते है और इनके आयोजन के समय देश-विदेश के करोड़ों श्रद्धालु इनमें पवित्र स्नान हेतु शामिल होते है। इन दिनों ऐसा ही आयोजन प्रयाग में चल रहा है, जो अभी एक पखवाड़ा और चलेगा, इसके बाद अगला मेला चलेगा, इसके बाद अगला मेला 2028 में उज्जैन में आयोजित होगा, जिसकी तैयारियां व बजट राशि मध्यप्रदेश सरकार ने अभी से मंजूर की है। वैसे इन धार्मिक मेलों का अभी तक का यह इतिहास भी रहा है कि ये भीषण घटना दुर्घटना से निरापद कभी नही रहें, लगभग एक महीनें चलने वाले इन मेलों में कोई न कोई ऐसी घटना अवश्य हो जाती है, जो इस धार्मिक आयोजन में कलंक साबित होती है, जैसी 1942 में उज्जैन सिंहस्थ के दौरान घटी थी, अब हाल ही में प्रयाग कुंभ के दौरान ऐसी ही भगदड़ की एक घटना घटी, जिसमें करीब तीस धर्मालुओं की मौत हो गई और इस धार्मिक अनुष्ठान पर कलंक लग गया। कुंभ या सिंहस्थ मेले के दौरान घटने वाली ऐसी घटनाओं के इतिहास के प्रति अब मध्यप्रदेश की सरकार तीन साल बाद उज्जैन में आयोजित होने वाले सिंहस्थ मेले के प्रति अभी से सतर्क हो गई है और उसने अपने बजट में अभी से सिंहस्थ धनराशि निर्धारित कर उज्जैन के क्षिप्रातटों, मंदिरों और मेला आयोजन क्षेत्र को चुस्त-दुरूस्त करने की तैयारी शुरू कर दी है, चूंकि मध्यप्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री जी उज्जैन निवासी ही है और उन्ही के मौजूदा शासनकाल में सिंहस्थ मेले का आयोजन होना है, इसलिए पूरी सरकार दिल-ओ-जान से सिंहस्थ-28 की तैयारियों में जुट गई है और प्रयाग, नासिक व हरद्विार में आयोजित मेलों की व्यवस्थाओं से सम्बंधित अधिकारियों को उज्जैन ले जाकर वहां मेला स्थल की सुचारू व्यवस्था का अभी से जायजा लेना शुरू कर दिया है। ....और इन मेला स्थानों पर घटनाओं से सबक लेकर अभी से पूरी सतर्कता बरतने के निर्देश जारी किए है, जिससे कि यह आयोजन सकुशल निर्विवाद रूप से सम्पन्न हो जाए, इस संदर्भ में यदि यह कहा जाए कि मेले के आयोजन की ‘‘छांछ’’ को भी फंूक-फूंक कर पिया जा रहा है तो कतई गलत नहीं होगा। (यह लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं इससे संपादक का सहमत होना अनिवार्य नहीं है) ईएमएस / 04 फरवरी 25