लेख
04-Feb-2025
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महाकुम्भ 25 में हुई भगदड़ में असमय मौत पर पंडित धीरेन्द्र शास्त्री का व्यान दुर्भाग्यपूर्ण है कि मरने वाले मोक्ष को प्राप्त कर लिए हैं ऐ भूमि भारत माँ की है जिसके मासूम बच्चों की मौत हुई उधर संतो एक पक्ष ऐसा भी है जो उनके इस बयान पर गुस्से में हैं यहाँ आपको असली राम भक्त नहीं मिलेंगे वो तो हिमालय पर्वत पर राम नाम जप कर सिद्धि प्राप्त कर रहें होंगे और कुंडली को जागृत कर बाहर से भोजन कर प्रभु प्रेम में आनंदित हो रहें होंगे ताकि मोक्ष मिल जाये लेकिन उन्हें भी मिलेगा या नहीं मैं बता नहीं सकता दरअसल मोक्ष इस मायाबी दुनिया से परे है और अपने को जानना चाहता है कि मैं कौन हूँ और ईश्वर ने क्यों भेजा है मैं इस तरह प्रभु के चरणों में दास बन जाऊं कि बार बार जन्म औऱ मौत के बंधन से मुक्त हो जाऊं जो खुद को नहीं जान सकता वह मौत को कैसे जान सकता है इसलिए पहले वे संत अपने तप से शरीर से आत्मा को निकाल कर अंतरिक्ष में विचरण करते हैं औऱ पुनः अपने शरीर में प्रवेश करते हैं इसके बाद जब शरीर से रिश्ता नाता ख़त्म कर जनकल्याण हेतु सूक्ष्म रूप से विचरण करते हैं औऱ सच्चे इंसान को राह दिखाते हैं तब भी मोक्ष नहीं मिलता है जब संसार के मायाजाल से निकलकर क़ोई तारा का रूप धारण कर लें तो समझ लेना मोक्ष मिल गया क्योंकि आज तक क़ोई उस तक पहुँच नहीं पाया है औऱ हजारों साल बाद भी किसी भी अतंरिक्षयान से जो प्रकाश की गति से भी चले लेकिन पहुंचना मुश्किल है तो मोक्ष मिल गया क्योंकि रात में वही आपको टीमटीमाते नजर आते हैं जिससे आपको सकून मिलता है इस क्रम में कई बार साधक तप व योग के प्रभाव से शरीर से आत्मा तो निकाल पाने में सक्षम हुए लेकिन बापस नहीं आ पाएं और गहरी निद्रा में सो गए और भक्तो ने इस आस में कि समाधि लग गई है कभी भी लौट सकते हैं उसे डीप फ्रीज़र में रख दिया जिसे कानूनी रूप से मान्यता भी मिली है वैज्ञानिक भी इस शोध में लगे हैं कि कभी ऐसी क़ोई दवा आ जाए ताकि मरे हुए शरीर को जिंदगी दे सके और अमेरिका में 500 से भी अधिक बॉडी क्रायोजेनिक में रखी गई है क्रायोजेनिक में कुछ गैसों को क्रायोजेनिक परिस्थितियों में संग्रहित किया जाता है, अर्थात उन्हें बहुत कम तापमान (-130 डिग्री फारेनहाइट या उससे कम) पर संग्रहित किया जाता है। इस तरह से संग्रहित गैसों के उदाहरणों में वायु, आर्गन, कार्बन मोनोऑक्साइड, एथिलीन, फ्लोरीन, हीलियम, हाइड्रोजन, मीथेन, नाइट्रोजन और ऑक्सीजन शामिल हैं। मौत का सही आकड़ा पर भी सच के लिए लगातार बयानवाजी हो रहें हैं अतः इसपर राजनीती करना ठीक नहीं है जो दुनिया से चले गए वो तो जिन्दा आ नहीं सकते कम से कम इंसानियत के नाते उनके दुःखो पर बयानवाजी बन्द कर दें उनके परिवार को मदद करें और ईश्वर से उनकी आत्मा की शांति की प्रार्थना करें जो असली संत है वो तो परमात्मा भगवान श्री राम के प्रेम में इस तरह से मग्न है कि उसे पता नहीं कब क्या हो रहा है नहीं विश्वास है तो हिमालय की चोटी में जाकर देखें कई ने तो स्थूल शरीर को ध्यान से इसतरह कर लिया है कि हवा में तैर रहा है औऱ कई को शिक्कर से बंधा गया है जो गए वो भोले वाले इंसान थे जिसमें ईश्वर के प्रति आराधना थी वो गलत लोगों के बहकावे में और अमानवीय लोगों के निचे कुचलने से दबकर मर गए उनकी आत्मा भटकती होगी क्योंकि उन्हें बहला फुसला कर लाया गया और लापरवाही से मौत हो गई आत्मा कभी मरती नहीं है या तो भटकती है अपने परिवार की चिंता के लिए या फिर अपने किए पर पछताने के लिए यदि आपको विश्वास नहीं है तो पटना हवाई अड्डा में जब जुलाई 2000 में पटना एयरपोर्ट के पास हवाई दुर्घटना में 60 लोगों की मौत हो गई थी: एलायंस एयर की फ्लाइट 7412 में 52 यात्री और 6 क्रू मेंबर सवार थे। कुल 6 यात्री लखनऊ के लिए उड़ान भर चुके थे, जबकि अन्य 46 पटना जा रहे थे। उसके बाद रात में कुछ अनहोनी वारदात हुई कि रात में प्रेतआत्मा मायाबी शरीर धारण कर रिक्शा या ऑटो में अपने घर जाने के लिए बैठ जाता और फिर जब घर आता तो उससे पहले ही गायब हो जाता बाद में खुब हवन कीर्तन और राम का भजन कीर्तन हुआ तो बन्द हो गया क्योंकि राम नाम से मुक्ति मिली होगी हमेशा हमें उस शक्ति देने वाला उस परमात्मा भगवान श्री राम या गुरु के आदर्शाे पर चलना चाहिए आप सोचते होंगे की किसी के कारण मुझे परेशान हो रही है लेकिन मेरे हाथ में कुछ नहीं है अगर मेरे हाथ मे कुछ होता तो मैं किसी को बचा लेता जो नहीं होता है और वही परमात्मा सबका मालिक है। दुःख और सुख जीवन के अविभाज्य अंग हैं, और हमें निराशा, अपमान एवं दुःख को जीवन का अपरिहार्य अंग मानकर स्वीकार करना पड़ेगा, अन्यथा हम आगे नहीं बढ़ सकते हैं और शोकसन्तप्त होकर विनष्ट हो जायेंगे। विवशता एवं असाध्यता के साथ समझौता कर लेना, उसे सहर्ष अपना लेना बुद्धिमत्ता है। जीवन में यथार्थता को स्वीकार कर लेना और उसके साथ समायोजन (एडजस्टमेण्ट) करके संतोष धारण कर लेना सुख-शांति की दिशा में एक आवश्यक पग है। यह एक तथ्य है कि हम किसी भी व्यक्ति तथा किसी भी परिस्थिति में पूर्णतः संतुष्ट नहीं होते। समझौता तो पग-पग पर आवश्यक होता है। सुखी एवं स्वस्थ जीवन अपने साथ, परिवार के साथ समझौतों की एक श्रृंखला है। यदि प्रयत्न करने पर भी किसी क्षेत्र में परिस्थिति न सुधरे अथवा प्राकृतिक आघात, दुर्धटना आदि के कारण कोई वास्तविक विवशता हो, तो उसे सहर्ष स्वीकार कर लेना चाहिए और उससे लज्जित अथवा दुःखी होना अव्यावहारिक है। हमें समझ लेना चाहिए की जिन्दगी की बेल के सभी अंगूर मीठे नहीं है; कुछ मीठे है और कुछ खट्टे भी हैं।आप गलती ऐ कर रहें हैं कि प्रभु राम को खुद से जानने की कोशिश करें और उसके बताये मार्ग पर चले और कभी किसी के मरने पर गलतबयान देना उचित नहीं है क़ोई काल आया और मौत बनकर सबको ले गया अब उनकी आत्मा की शांति की प्रार्थना करें प्रभु राम के चरणों में झुक कर शांति की कामना करें। (यह लेखक के व्य‎‎‎क्तिगत ‎विचार हैं इससे संपादक का सहमत होना अ‎निवार्य नहीं है) .../ 4 फरवरी /2025