अंतर्राष्ट्रीय
31-Jan-2025


यूएस डॉलर मंजूर नहीं तो अमेरिका को कहें बाय-बाय वॉशिंगटन(ईएमएस)। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर से ब्रिक्स देशों पर टैरिफ लगाने की वॉर्निंग दी है। ट्रंप ने धमकी भरे लहजे में कहा कि ब्रिक्स के देश इस बात को सही तरीके से समझ लें कि वह अमेरिकी डॉलर को रिप्लेस नहीं कर सकते। अगर ऐसा करन की कोशिश की गई तो अमेरिका इन देशों पर 100 फीसदी टैरिफ लगाएगा। भारत भी ब्रिक्स देश का हिस्सा है। ट्रम्प ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर पोस्ट करते हुए लिखा,ब्रिक्स देश डॉलर से हटने की कोशिश करते रहेगें और हम सिर्फ देखते रहेंगे, यह आइडिया अब खत्म हो चुका है। ट्रम्प ने ब्रिक्स देशों से नई करेंसी नहीं बनाने और डॉलर के अलावा किसी दूसरी करेंसी को विकल्प नहीं बनाने का गारंटी मांगी है। अगर ब्रिक्स देश ऐसा नहीं करते हैं तो ट्रम्प उन पर 100 टैरिफ लगाएंगे। साथ ही वे अमेरिका के साथ व्यापार भी नहीं कर पाएंगे। उन्होंने ब्रिक्स देशों से कहा कि वे कोई और बेवकूफ देश ढूंढ लें। करेंसी बनाने पर ब्रिक्स देशों में सहमति नहीं ब्रिक्स में शामिल सदस्य देशों के बीच करेंसी बनाने को लेकर सहमति नहीं हो पाई है। इसे लेकर अब तक कोई आधिकारिक बयान भी नहीं आया है। पिछले साल अक्टूबर में रूस में हुई ब्रिक्स देशों की समिट से पहले इसकी करेंसी को लेकर चर्चा तेज थी। हालांकि समिट से पहले ही रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने ये साफ कर दिया था कि ब्रिक्स संगठन अपनी करेंसी बनाने पर विचार नहीं कर रहा है। हालांकि समिट में ब्रिक्स देशों के अपने पेमेंट सिस्टम को लेकर चर्चा हुई थी। इस पेमेंट सिस्टम को ग्लोबल स्विफ्ट पेमेंट सिस्टम की तर्ज पर तैयार करने को लेकर चर्चा हुई थी। भारत ने ब्रिक्स देशों को पेमेंट सिस्टम के लिए अपना यूपीआई देने की पेशकश की थी। भारत ब्रिक्स करेंसी के समर्थन में नहीं पिछले साल दिसंबर में भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने एक बयान में कहा था कि भारत डी-डॉलराइजेशन यानी व्यापार में अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम करने के पक्ष में नहीं है और ब्रिक्स करेंसी का कोई प्रस्ताव भी नहीं हैं। ब्रिक्स दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्था वाले देशों का ऐसा समूह है, जिसमें अमेरिका शामिल नहीं है। पिछले कुछ सालों से रूस और चीन अमेरिकी डॉलर के विकल्प के तौर पर ब्रिक्स करेंसी बनाने की कोशिश कर रहे हैं, जिस पर सहमति नहीं बन पा रही है। डॉलर के दम पर अमेरिका अरबों कमाता है 1973 में 22 देशों के 518 बैंक के साथ स्विफ्ट नेटवर्क शुरू हुआ था। फिलहाल इसमें 200 से ज्यादा देशों के 11,000 बैंक शामिल हैं। जो अमेरिकी बैंकों में अपना विदेशी मुद्रा भंडार रखते हैं। अब सारा पैसा तो व्यापार में लगा नहीं होता, इसलिए देश अपने एक्स्ट्रा पैसे को अमेरिकी बॉन्ड में लगा देते हैं, जिससे कुछ ब्याज मिलता रहे। सभी देशों को मिलाकर ये पैसा करीब 7.8 ट्रिलियन डॉलर है। यानी भारत की इकोनॉमी से भी दोगुना ज्यादा। इस पैसे का इस्तेमाल अमेरिका अपनी ग्रोथ में करता है। विनोद उपाध्याय / 31 जनवरी, 2025इ