लेख
30-Jan-2025
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हरियाणा के झज्जर का रहने वाला अभय सिंह प्रयागराज महाकुंभ में मिले आई आई टी बाबा के टैग से परेशान हो गया है। अभय ने कहा कि मुझे ये पॉपुलैरिटी नहीं चाहिए। मेरे कैरेक्टर को गाली दी जा रही है। यही सब छोड़कर मैं घर से आया था, अब उसी से जोड़ दिया गया है। प्रयागराज में अभय सिंह पर मुझे निजी टिप्पणी नहीं करनी है लेकिन सत्य क़ो बताना भी आवश्यक है आप माता पिता क़ो इस्तेमाल की चीज नहीं बना सकते हैं माता पिता में लड़ाई होती है किसके घर में नहीं हुआ लेकिन घर की चीज मीडिया में लाने की जरुरत क्या है माता पिता आपके लिए जो करते हैं दूसरा क़ोई नहीं कर सकता जरा सोचो माँ पर जिसने बच्चे क़ो जन्म दिया और पिता उसके भविष्य क़ो अच्छा बनाने के लिए क्या क्या नहीं करता पढ़ाई की फीस में क़ोई कमी नहीं रखता भले ही अपने शौक क़ो मार देते हैं पिताजी बच्चे क़ो बोलते हैं तो उनके भले के लिए और कौन अपने बच्चे क़ो पढ़ाई के लिए नहीं बोलता है आप भगवान श्री राम क़ो पूजा करते हैं लेकिन उनके आदशों पर चलने क़ो तैयार नहीं होतें ऐ मुझे इसलिए लिखना पर रहा है क्योंकि मैं भी आईआईटी, रूडकी का पूर्व छात्र हूँ और आईआईटी क़ो बदनाम होतें नहीं देखना चाहता हूँ भगवान श्री राम की क्या गलती थी कि 14वर्ष का वनवास मिला लेकिन उन्होंने सहर्ष स्वीकार किया और उनके साथ माता सीता और भाई लखन भी गए ऐ होती है मर्यादा का पालन करना यदि माता पिता से नाराजगी है तो उसे अपने अंदर ही सोल्व करना चाहिए मीडिया में कीचड़ नहीं उछालना चाहिए आप थोड़ा शांति से इस बात क़ो लीजिये यदि हमें किसी से नाराजगी है तो अपनी कमी भी देखेंगे और तभी मीडिया में किसी की बुराई करेंगे तो उचित नहीं है क्योंकि कबीर दासजी कहते हैं कि बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय । जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय ॥ अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि जब मैंने संसार में बुराई को ढूँढा तो मुझे कहीं नहीं मिला पर जब मैंने अपने मन के भीतर झाँका तो मुझे खुद से बुरा इंसान नहीं दिखा। तप या मुनि लोग मुँह क्यों ढककर रखते हैं क्योंकि तप करने से अपने अंदर की सारी बातें सामने आ जाती है और मुँह ढककर रखने का मतलब यही है सोच समझकर बोलना यानि जो उचित हो ऐ आपको ऐसे मालूम नहीं होता जब तपते हैं तो मालूम होता है की भीतर की आग ईर्ष्या के रूप में कितना भयंकर होता है वो दूसरों का नहीं अपना ही नुकसान कर देता है बाप माँ कभी भी बच्चे के प्रति बुरा नहीं सोच सकते हैं सभी आपकी कामयाबी पर अंदर से जलते हैं लेकिन माँ बाप ही बहुत अधिक खुश होतें हैं अतः बच्चे क़ो कभी भी अपने माता पिता के प्रति द्वेष नहीं करना चाहिए ऐ आपको ही नुकसान करेगा श्रवण कुमार से सीखो जिसने रात के अँधेरे में भी अपने अंधे माता पिता को पानी लाने के लिए कुँआ के पास गया और गलती से राजा दशरथ ने मिर्ग समझकर अनजाने में वध किया और बाद में मालूम हुआ कि ऐ तो माता पिता का सबसे आज्ञाकारी पुत्र है और जब श्रवण कुमार के माता पिता को पता चला तो यह जानते हुए कि गलती से हो गया फिर भी अपने पुत्र के प्रेम में इतना आहत हुए कि उन्होंने बेकसूर राजा दशरथ को ही श्राप दे दिया और वही घूमते हुए राजा दशरथ को अपने प्यारे पुत्र भगवान राम के वियोग में व्याकुल इतना कर दिया कि उनके वियोग में स्वर्गसिधार गए इधर उनके भाई भरत को हिम्मत नहीं हुई कि सिंहासन पर बैठूं और निकल पड़े जंगल की ओर और भगवान श्री राम के चरण पादुका ही राजगद्दी पर रखकर पिता की आज्ञा का पालन किया ऐ है हमारी संस्कृति जो सबसे ऊपर है और इसका श्रेय जाता है प्रभु राम को जिसने हर जगह अपने मर्यादा का पालन किया जब जंगल गए तो माता सीता को रावण से छुराया और शक्तिशाली रावण का संहार भी कर दिया और जब गद्दी मिली तो किसी एक जनता की शिकायत पर माता सीता को ही वन भेज दिया मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम जो किया वही उन्हें ईश्वर के रूप में लोग पूजा करते हैं और सारे संत महपुरुष को भी उनकी भक्ती में महान बना दिया क्योंकि राम ही सत्य है भगवान राम ही सबों में व्याप्त हैं कण कण में हैं राम जो उनके आदर्शो पर चलता है उसे भले ही ख्याति नहीं मिले लेकिन जीवन में जो संस्कार मिलता है वह कभी किसी को बुरा भला नहीं कहता बस राम राम ही जपता और प्रसन्न रहता है.जहाँ तक हिरण्यकशिपु और भक्त प्रहलाद का सबाल है ऐ प्रभु ने लीला रची उसके अहंकार को तोड़ने के लिए नरसिंघ का अवतार लेना पड़ा ऐ ऐसे ही की जो मानते हैं मैं ही सबकुछ हूँ और अहंकार में किसी को भी मरो चाहे भला भी हो गलती है कि प्रभु का नाम लेना तो प्रभु ने भी उसका वध करने के लिए ऐ लीला रची धर्म को बचाने के लिए यदि अधर्म का भी सहारा लेना पड़े तो गलत नहीं है सभी माता पिता क्या भगवान को नहीं पूजते है चाहे वो किसी रूप में ही क्यों हिरण्यकशिपु एक दैत्य था जिसका वध भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार में किया था. हिरण्यकशिपु, कश्यप ऋषि और दिति के बड़े बेटे थे. हिरण्यकशिपु को हिरण्यकरण वन का राजा माना जाता है. प्रह्लाद विष्णु भक्त था , जबकि हिरण्यकश्यप नहीं चाहता था कोई भगवान विष्णु की पूजा करे लेकिन प्रह्लाद की भगवान विष्णु के प्रति अटूट आस्था थी . इसीलिये हिरण्यकश्यप अपने पुत्र को मारना चाहता था . भगवान विष्णु ने नरसिंह रूप में हिरण्यकश्यप का वध कर अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा की थी पहले किसी चीज को पूर्ण रूप से जानने की कोशिश करें और फिर गंभीरता से विचार करें ऐ मीडिया का ही काम था जो फेमस किया मीडिया जो दिखाती उसमें कितनी सच्चाई है ऐ हमें पता नहीं रहता और आप अपनी नहीं मीडिया पर अधिक भरोसा कर लेते हैं और प्रभु राम के बारे में जानने की कोशिश नहीं करते है हम तभी किसी इंटरव्यू में पास करते हैं जब उसकी मर्यादा का पालन करते हैं और शालीनता से जबाब देते है अतः आई आई टी के बाबाजी का अध्यात्म क्या है वो राम ही जाने लेकिन मैं कभी इस बात से सहमत नहीं हो सकता हूँ कि माता पिता ठीक नहीं होते है औऱ सभी धर्मों में उनकी आज्ञा का पालन हुआ है जैसे महान गुरू गोविन्द सिंह जी के सभी पुत्रों ने मुगलों के लाख प्रलोभन को ठुकराते हुए उन्हें दिवार में चुनवा दिया कुछ लड़ाई करते हुये शहीद हो गए औऱ अपने पिता का आज्ञा का पालन किया। .../ 30 जनवरी /2025