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27-Jan-2025
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नई दिल्ली,(ईएमएस)। संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) ने वक्फ अधिनियम में संशोधनों पर विपक्षी सांसदों के सभी प्रस्ताव खारिज कर दिए हैं। इसके साथ ही जेपीसी ने सोमवार को वक्फ संशोधन विधेयक को 14 बदलावों के साथ मंजूरी दे दी। यह विधेयक पिछले साल अगस्त में सदन में पेश किए गए थे। समिति में सत्तारूढ़ बीजेपी के जगदम्बिका पाल के नेतृत्व में विपक्षी सांसदों ने 44 संशोधनों का प्रस्ताव रखा था, लेकिन सभी को अस्वीकार कर दिया। मीडिया रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि 14 प्रस्तावित बदलावों पर 29 जनवरी को मतदान होगा और अंतिम रिपोर्ट 31 जनवरी को जमा की जाएगी। समिति को मूलरूप से 29 नवंबर तक रिपोर्ट देने के लिए कहा गया था, लेकिन इस समय सीमा को बजट सत्र के अंतिम दिन 13 फरवरी तक बढ़ा दिया था। संशोधनों का अध्ययन करने के लिए गठित समिति की कई बैठकें हुईं, लेकिन बैठकें हंगामे के बीच खत्म हो गईं। विपक्षी सांसदों ने अध्यक्ष पर सत्ताधारी पार्टी के प्रति पक्षपात का आरोप लगाया। पिछले हफ्ते विपक्षी सांसदों ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को पत्र लिखकर चिंता जताई थी। उन्होंने कहा कि जगदंबिका पाल 5 फरवरी के दिल्ली चुनाव को ध्यान में रखते हुए वक्फ संशोधन विधेयक को जल्दबाजी में पारित कराने की कोशिश कर रहे हैं। यह अपील 10 विपक्षी सांसदों के निलंबन के बाद आई। उनकी और उनके सहयोगियों की शिकायत थी कि उन्हें सुझाए गए बदलावों का अध्ययन करने का समय नहीं दिया जा रहा है। निलंबित सांसदों में तृणमूल कांग्रेस के कल्याण बनर्जी और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी शामिल थे। दोनों ही वक्फ संशोधन विधेयक के कट्टर आलोचक हैं। वक्फ संशोधन विधेयक वक्फ बोर्डों के प्रशासन के तरीके में कई बदलावों का प्रस्ताव करता है, जिसमें गैर-मुस्लिम और महिला सदस्यों को नामित करना शामिल है। इसके अलावा, केंद्रीय वक्फ परिषद में एक केंद्रीय मंत्री और तीन सांसद, साथ ही दो पूर्व न्यायाधीश, चार राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त लोग और वरिष्ठ सरकारी अधिकारी शामिल होने चाहिए, जिनमें से किसी का भी इस्लामी धर्म से होना जरुरी नहीं है। इसके अलावा नए नियमों के तहत वक्फ परिषद भूमि पर दावा नहीं कर सकती। अन्य प्रस्तावित बदलावों में उन मुसलमानों से दान सीमित करना है जो कम से कम पांच साल से अपना धर्म मान रहे हैं। सूत्रों के हवाले से बताया कि इसका उद्देश्य मुस्लिम महिलाओं और बच्चों को सशक्त बनाना है, जिन्हें पुराने कानून के तहत कष्ट उठाना पड़ा। हालांकि, कांग्रेस के केसी वेणुगोपाल जैसे विपक्षी नेताओं सहित आलोचकों ने कहा है कि यह धर्म की स्वतंत्रता पर सीधा हमला है। इस बीच, ओवैसी और डीएमके की कनिमोझी ने तर्क दिया है कि यह संविधान के कई अनुच्छेदों का उल्लंघन करता है, जिसमें अनुच्छेद 15 और अनुच्छेद 30 शामिल हैं। सिराज/ईएमएस 27जनवरी25