26-Jan-2025
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* उपभोक्ता आयोग ने दिलाई बड़ी राहत कोरबा (ईएमएस) जानकारी के अनुसार जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, कोरबा ने बीमा क्लेम के मामले में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। इस मामले में पीड़िता की पैरवी वरिष्ठ अधिवक्ता सौरभ अग्रवाल ने की है। वे कोरबा जिले के वरिष्ठ लब्धख्याति अधिवक्ता लक्ष्मीनारायण अग्रवाल के सुपुत्र हैं। बताया जा रहा हैं की फरियादी श्रीमती अनिता सिंह, 52 वर्ष पति स्व. अभय राज सिंह निवासी पवन गैस एजेंसी के पीछे, सुभाष ब्लाक कोरबा के द्वारा उसके पति बीमाधारक स्व. अभयराज सिंह की मृत्यु बाद बीमा क्लेम किया गया। क्लेम पर विरोधी पक्षकार क्रमांक 2-एसबीआई जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड, रामा पोर्ट, द्वितीय तल, व्यापार विहार रोड बिलासपुर व विरोधी पक्षकार क्रमांक 3– एसबीआई जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड, 9वीं मंजिल, वेस्टपोर्ट, पैन कार्ड क्लब रोड, बानेर, पुणे (महाराष्ट्र) द्वारा कोई लाभ नहीं दिया गया। कारण बताया गया कि क्लेम की शर्त अवधि 28 दिन से पहले मौत हो जाने के करण उसे लाभ नहीं दिया जा सकता। उपभोक्ता आयोग ने दोषी पाए जाने पर भुगतान का निर्देश देने के साथ अर्थदंड भी आरोपित किया है। * बीमा कंपनी ने दी यह सफाई मामले में उपभोक्ता आयोग के समक्ष प्रतिवादियों (विरोधी पक्षकार) एसबीआई ने बताया कि बीमाधारक के हृदय रोग से ग्रस्त होने की जानकारी 14.12.2022 को प्राप्त हुई जिसके पश्चात् 18.12.2022 को उसकी मृत्यु उक्त रोग के कारण हो गई। इस प्रकार, बीमाधारक के रोग की जानकारी प्राप्त होने के पश्चात् वह बीमा पॉलिसी में नियत 28 दिवस की अवधि पर्यंत जीवित नहीं रहा था। फलतः बीमा पॉलिसी की शर्तानुसार बीमा धारक की मृत्यु के संबंध में क्षतिपूर्ति देय नहीं होने के कारण परिवादिनी द्वारा तत्संबंध में प्रस्तुत दावा विरोधी पक्षकार बीमा कंपनी के द्वारा विधिवत् निरस्त करते हुए तत्संबंधी लिखित सूचना पत्र 29.08.2023 के माध्यम से परिवादिनी अनिता सिंह को प्रदान की जा चुकी है। इस प्रकार, विरोधी पक्षकार द्वारा स्व. अभय राज सिंह एवं परिवादिनी को प्रदत्त बीमा सेवा में किसी प्रकार की कमी या त्रुटि नहीं की गई है। विरोधी पक्षकार क्षतिपूर्ति प्रदान करने के लिए दायित्वधीन नहीं है। विरोधी पक्षकार को निराधार रूप से परेशान करने के दुराशय से परिवादिनी द्वारा वर्तमान प्रकरण विधि विरूद्ध प्रस्तुत किया गया है। जिसके कारण विरोधी पक्षकार तथा उनके अधिकारियों को कारित मानसिक कष्ट हेतु परिवादिनी से 10,000/- रू. क्षतिपूर्ति स्वरूप दिलाते हुए प्रकरण सव्यय निरस्त किये जाने का निवेदन किया गया। अपने तर्क के समर्थन में विरोधी पक्षकार के द्वारा दस्तावेज प्रस्तुत किया गया। * जो अधिकार क्षेत्र में नहीं, वह शर्त पॉलिसी में कैसे ? इस मामले में उपभोक्ता आयोग ने कहा कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 में विहित प्रावधानों के अनुसार परिवादिनी विरोधी पक्षकारगण की उपभोक्ता एवं विरोधी पक्षकारगण उसके सेवा प्रदाता होना प्रमाणित है। ऐसे में विरोधी पक्षकारों का उक्त तर्क मान्य किये जाने योग्य नहीं है क्योकि बीमा संबंधी करार दोनो पक्षो पर समान रूप से लागू रहता है। बीमा कंपनी ऐसी कोई शर्त पॉलिसी में प्रावधानित नहीं कर सकती जो बीमा धारक के अधिकार क्षेत्र में ना हो। किसी इंसान की मृत्यु के संबंध में पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता। इंसान का जीवित रहना या मरना उसके अधिकार क्षेत्र में नही है। प्रस्तुत प्रकरण में बीमा धारक को जारी पॉलिसी दिनांक 31/03/2022 से 30/03/2022 तक वैध थी जिसमें प्रथम 90 दिन का वेटिंग पिरियड बीमाधारक ने पूर्ण कर लिया था जबकि बीमारी की जानकारी होने के 28 दिनों के भीतर ही बीमाधारक की मृत्यु कारित हो गई। बीमा पॉलिसी में प्रावधानित यह शर्त विधि अनुकूल नहीं होने से स्वीकार योग्य नहीं है। * पॉलिसी की सभी शर्तें नहीं बताती बीमा कंपनिया निश्चित निवेश, वित्तिय लोन को एक सुरक्षित तरीका प्रदान करता है। प्रस्तुत प्रकरण में बीमा कंपनी द्वारा बैंक द्वारा दिये गए लोन सुरक्षित करने के लिए बीमा करवाया गया था। पूर्व के बीमारियों को छुपाने के आधार पर विरोधी पक्षकार द्वारा बीमा कंपनी लोन की संपूर्ण अदायगी के दायित्व एवं अन्य लाभ से इंकार किया जाना उसके द्वारा की गई सेवा में कमी को दर्शाता है। प्रायः कोई भी बीमा कंपनी अपना बीमा प्रदाय किये जाने की होड़ में उपभोक्ताओं को प्रभावित किये जाने के प्रयास में पॉलिसी की सभी शर्तो को पूर्ण रूप से नहीं बताती है। बीमा कंपनियाँ सिर्फ लाभ के पक्ष की जानकारी उपभोक्ताओं को प्रदान करती हैं जबकि पॉलिसी की कमियाँ, उससे उपभोक्ताओं को भविष्य में होने वाली असुविधाओं, जटिलताओं की जानकारी प्रदान नहीं करती है, इसलिए बीमा दावा के समय बीमा कंपनी उक्त सभी कमियों को आधार बनाते हुए उपभोक्ताओं के दावा को निरस्त करती है। प्रकरण के अवलोकन से भी ऐसा प्रतीत होता है कि बीमा कंपनी द्वारा बीमा धारक को पॉलिसी के संबंध में समस्त जानकारियां प्रदान नहीं की थी जिससे यह अवधारणा की जा सकती है, कि बीमा धारक को पॉलिसी के अंतर्गत First 90 days Waiting Period और Survival period of 28 days के संबंध में पूर्व से जानकारी थी। ऐसी स्थिति परिवादिनी, ग्रुप लोन इन्शोरेंस पॉलिसी के तहत देय बीमा राशि 2,21,000/- रू. विरोधी पक्षकार द्वय से प्राप्त करने की अधिकारिणी है। फलस्वरूप विचारणीय प्रश्न क्रमांक 1 एवं 2 का निष्कर्ष “प्रमाणित” में दिया जाता है। * उपभोक्ता आयोग ने सुनाया यह फैसला उपभोक्ता आयोग फैसला सुनाते हुए कहा की चूंकि परिवादिनी के पति की मृत्यु COD-CARDIO PUMONARY ARREST WITH LEFT GANGLIO-CAPSULAR ICH WITH IVH से होना दस्तावेजों से प्रमाणित है जिसका पूर्वानुमान संभव नहीं है। ऐसी स्थिति में परिवादिनी ग्रुप लोन इश्योरेंस पॉलिसी के तहत देय बीमा राशि 2,21,000/- रू. विरोधी पक्षकार एसबीआई जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड से प्राप्त करने की अधिकारिणी है। यह भी निश्चित है कि विरोधी पक्षकार गण परिवादिनी को बीमाधन का भुगतान नहीं करने की वजह से परिवादिनी को मानसिक एवं आर्थिक रूप से परेशानी का सामना करना पड़ा होगा। जारी आदेश के अनुसार विरोधी पक्षकार परिवादिनी को बीमा धारक की मृत्यु उपरांत बीमा पॉलिसी के तहत देय बीमा राशि 2,21,000/- रूपए को संयुक्त अथवा पृथक-पृथक रूप से आदेश दिनांक से 30 दिवस के भीतर प्रदान करेंगे। विरोधी पक्षकार क्रमांक 02 एवं 03, परिवादिनी को मानसिक एवं आर्थिक क्षतिपूर्ति के एवज में 15,000/-रुपए संयुक्त अथवा पृथक-पृथक प्रदान करेंगे। विरोधी पक्षकार कमांक 01 परिवादिनी को मानसिक एवं आर्थिक क्षतिपूर्ति के एवज में 10,000/-रुपए पृथक रूप से आदेश दिनांक से 30 दिवस के भीतर प्रदान करेंगे।