वैश्विक स्तरपर खासकर भारत में 1990 दशक क़े पूर्व का एक ऐसा दौर चला था जिसमें हर परिवार व दंपति केवल बेटे की चाह रखती थी, प्रवास के पूर्व लिंग परीक्षण कर बेटियों की गर्भ में ही हत्या कर अबॉर्शन करवा दिया जाता था, जिसकी अति हो गई थी।1960 के दशक में, जब 15 देशों में गर्भपात कानूनी था, भारत में प्रेरित गर्भपात के लिए कानूनी ढांचे पर विचार-विमर्श शुरू किया गया था। गर्भपात की चिंताजनक रूप से बढ़ती संख्या ने स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय को सतर्क कर दिया गया था। भारत सरकार ने भारत के लिए गर्भपात कानून का मसौदा तैयार करने के लिए सुझाव देने के लिए शांतिलाल शाह के नेतृत्व में 1964 में एक समिति गठित की थी। इस समिति की सिफारिशों को 1970 में स्वीकार कर लिया गया और संसद में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी बिल के रूपमें पेश किया गया था ।यह बिल अगस्त 1971 में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट 1971 के रूप में पारित हुआ,मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) अधिनियम, 1971 भारत में सीएसी सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए कानूनी ढांचा प्रदान करता है। गर्भावस्था के 20 सप्ताह तक की कई स्थितियों के लिए गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति है,पर अब गर्भावस्था के 24 सप्ताह तक गर्भपात किया जा सकता है क्योंकि एमटीपी संशोधन अधिनियम 2021, 24 सितंबर 2021 से राजपत्र में अधिसूचना द्वारा लागू हो गया है। अवैध रूप से अबॉर्शन कर बेटियों का गर्भ में हत्या का परिणाम आज हम हर समाज में देख रहे हैं कि अब 1980-90 में जन्मे लड़कों के लिए शादी विवाह के लिए लड़कियां मिलने में अति कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। मेरी नजर में इन दशकों क़े कई लड़के अभी कुंवारे बैठे हैं यानें लिंगानुपात रेश्यो बिगाड़ने की सजा मिल रही है, जो अभी लेवल पर धीरे-धीरे आ रही है। पिछले एक दशक में, बीबीबीपी योजना ने लैंगिक समानता और भारत में बालिकाओं की स्थिति में सुधार लाने में महत्वपूर्ण प्रगति की है।जन्म के समय राष्ट्रीय लिंगानुपात (एसआरबी) वर्ष 2014-15 के 918 से बढ़कर वर्ष 2023-24 में 930 हो गया है।माध्यमिक स्तरपर लड़कियों का सकल नामांकन अनुपात 75.51पेर्सेंट से बढ़कर 78पेर्सेंट हो गया है,और संस्थागत प्रसव 61पेर्सेंट से बढ़कर 97.3 पेर्सेंट हो गया है,इसकेअतिरिक्त ,पहली तिमाही के प्रसवपूर्व देखभाल पंजीकरण 61पेर्सेंट से बढ़कर 80.5 पेर्सेंट हो गए हैं। माननीय पीएम द्वारा 22 जनवरी, 2015 को शुरू की गई बीबीबीपी योजना ने भारत में लैंगिक भेदभाव और घटते बाल लिंग अनुपात से संबंधित महत्वपूर्ण मुद्दों को संबोधित कियाहै। यह योजना एक सांस्कृतिक बदलाव को बढ़ावा देने में सहायक रही है जो बालिकाओं को महत्व देती है, यह सुनिश्चित करती है कि उनके अधिकारों और अवसरों की रक्षा हो और महिलाओं के नेतृत्व वाले विकास का मार्ग प्रशस्त हो, बता दें 22 जनवरी 2015 को बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान की शुरुआत की गई थी जिसका पिछले 10 वर्षों में बहुत जोरदार सकारात्मक परिणाम देखने को मिला, जिससे उत्साहित होकर 22 जनवरी से 8 मार्च 2025 अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस तक भारत देश में जबरदस्त जनजागरण अभियान चलाकर चलाया जा रहा है जिसमें स्कूटर रैली, प्रभात फेरी, डिबेट, जुलूस सहित अनेको कार्यक्रम आयोजित हो रहे हैं जब हम किसी अभियान में सफ़ल होते हैं तो फिर इसी तरह का उत्साह होता है मनोबल ऊंचा हो जाता है परंतु जब आलोचक हो तो, इस उत्सव को और निखारने में भी हमें कुछ सीखने को मिलता है।चूँकि बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ की दसवीं वर्षगांठ पर जबरदस्त आगाज़ 22 जनवरी से 8 मार्च 2025 तक पूरा भारत बेटी मय से जागरूक होगा इसलिए आज हम मीडियम उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे,विज़न 2047 के लक्ष्य हो आज की बालिका हर क्षेत्र में कल की लीडर बनकर उभरे व राष्ट्रीय लिंगानुपात महिला पुरस्कार 100 पेर्सेंट समांतर सुनिश्चित तथा पर रणनीतिक जन जागरण में तीव्रता लानाआज बहुत ज़रूरी है। साथियों बात अगर हम महिला व बाल कल्याण विकास मंत्रालय द्वारा बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ की दसवीं वर्षगांठ 22 जनवरी 2025 को मनाने की करें तो, बुधवार को बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना, जो लैंगिक असंतुलन को दूर कर बालिकाओं को सशक्त बनाने के उद्देश्य से भारत सरकार की एक प्रमुख पहल है, की 10 वीं वर्षगांठ के महत्वपूर्ण अवसर पर समारोह मनाया गया। नई दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित उद्घाटन समारोह हुआ।इस कार्यक्रम में बीबीबीपी योजना के एक दशक की प्रगति पर प्रकाश डाला गया, जो महिलाओं और लड़कियों के सशक्तिकरण के लिए भारत सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।इसने विकसित भारत 2047 की परिकल्पना की भी पुष्टि की, जहां लैंगिक समानता एक नीतिगत प्राथमिकता ना होकर, एक सामाजिक मानदंड है.केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री ने अपने विशेष संबोधन में, बीबीबीपी के अंतर्गत स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में हुई प्रगति को रेखांकित किया,बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना की सफलता बाल लिंगानुपात संस्थागत प्रसव और लड़कियों की स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच में पर्याप्त सुधार से स्पष्ट है।भारत सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है कि प्रत्येक बालिका को वह देखभाल और अवसर प्राप्त हों जिसकी वह हकदार है ताकि वह भविष्य की नेता बन सके, अपने मुख्य वक्तव्य में, माननीय केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री,नें कहा परिवर्तनकारी प्रभाव को स्वीकार किया, इस बात पर जोर दिया कि यह योजना सामाजिक परिवर्तन के लिए उत्प्रेरक बन गई है, उन्होंने कहा,बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ पहल सरकारी योजना से आगे बढ़कर राष्ट्रव्यापी आंदोलन बन गई है,इस 10 साल की यात्रा ने बालिकाओं की स्थिति में सुधार लाने और उन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य और समग्र विकास के समान अवसर प्राप्त हों यह सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।माननीय महिला एवं बाल विकास राज्य मंत्री श्रीमती सावित्री ठाकुर ने अपना विशेष संबोधन देते हुए इस योजना द्वारा लाए गए सांस्कृतिक बदलाव पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ महिलाओं के उत्थान के प्रति हमारी सामूहिक प्रतिबद्धता को दर्शाता है. इस उपलब्धि का जश्न मनाते हुए हम एक ऐसा माहौल बनाने के लिए अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि करते हैं, जहां हर लड़की को शिक्षा, स्वास्थ्य और अवसरों से भरे भविष्य का अधिकार हो, इस अवसर पर सर्वोत्तम प्रथाओं का संग्रह, मिशन वात्सल्य पोर्टल, मिशन शक्ति पोर्टल और मिशन शक्ति मोबाइल ऐप सहित कई महत्वपूर्ण पहल शुरू की गईं, जो देश भर में महिलाओं और बच्चों के सशक्तिकरण के लिए सरकार की प्रतिबद्धता को और मजबूत करने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं. इस कार्यक्रम में सशस्त्र बलों, पुलिस,अर्धसैनिक बलों, चिकित्सा, विज्ञान, सरकार सहित विभिन्न क्षेत्रों की प्रतिष्ठित महिला अधिकारियों के साथ-साथ उत्साही छात्राएं भी उपस्थिति थीं। साथियों बात अगर हम इस अभियान की आलोचना की करें तो, सबसे पुरानी पार्टी के अध्यक्ष ने बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना के 10 साल पूरे होने पर सरकार द्वारा जश्न मनाए जाने के बीच बुधवार को दावा किया कि इस योजना के बजट का 80 प्रतिशत पैसा विज्ञापनों पर खर्च किया गया। उन्होंने इस योजना को बेटियों के साथ छलावा करार देते हुए सरकार से तीन सवाल किए।उन्होंने एक्स पर पोस्ट किया,पहला, बेटी बचाओ की जगह अपराधी बचाओ की नीति पार्टी ने क्यों अपनाई। मणिपुर की महिलाओं को न्याय कब मिलेगा। हाथरस की दलित बेटी हो या उन्नाव की बेटी, या फिर हमारी चैंपियन महिला पहलवान,पार्टी ने हमेशा अपराधियों को संरक्षण क्यों दिया। दूसरा, क्यों देश में हर घंटे महिलाओं के खिलाफ 43 अपराध रिकॉर्ड होते हैं। हर दिन 22 अपराध ऐसे हैं जो हमारे देश के सबसे कमजोर दलित- आदिवासी वर्ग की महिलाओं और बच्चों के खिलाफ दर्ज होते हैं।पीएम लाल किले के भाषणों में कई बार महिला सुरक्षा पर बोल चुके हैं, पर कथनी और करनी में फर्क क्यों। तीसरा, क्या कारण है कि 2019 तक बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना के लिए आवंटित कुल धनराशि का करीब 80 प्रतिशत केवलमीडिया -विज्ञापन में खर्च हुआ है। दावा किया गया कि जब संसद की स्थायी समिति ने यह तथ्य उजागर किया, तब इस योजना में इस्तेमाल किए गए कोष में 2018-19 से 2022-23 के बीच 63 प्रतिशत की भारी कटौती की गई। बाद में इसको मिशन शक्ति के अंतर्गत संबल नामक योजना में समाहित करके, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना पर खर्च किए आंकड़े ही सरकार ने देने बंद कर दिए। उनका कहना है कि संबल के 2023-24 के लिए आवंटित धन और उपयोग किए गए धन में भी 30 प्रतिशत की कटौती हुई है। उन्होंने सवाल किया कि क्या आंकड़ों की हेराफेरी कुछ छिपाने के लिए की गई।आगे कहा, बीते 11 वर्षों में सरकार ने महिला एवं बाल विकास मंत्रालय पर खर्च हुआ बजट, पूरे बजट के खर्च की तुलना में आधा क्यों कर दिया? क्या हर ट्रक के पीछे बेटी बचाओ चिपकाने या फिर हर दीवार पर यह पेंट करवा देने से महिलाओं के खिलाफ अपराध, या महिलाओं को अत्याचार के बाद न्याय मिलेगा? क्या उनके लिए रोजगार के अवसर, उनको अच्छी स्वास्थ्य सुविधा मिलेगी। अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना की दसवीं वर्षगांठ- विज़न 2047 का लक्ष्य हो, आज की बालिका हर क्षेत्र में कल की लीडर बनकर उभरे।बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ की दसवीं वर्षगांठ पर जबरदस्त आगाज़-22 जनवरी से 8 मार्च 2025 तक पूरा भारत बेटी मय से जागरूक होगा।राष्ट्रीय लिंगानुपात महिला पुरुष का 100 परसेंट समांतर सुनिश्चितता पर रणनीतिक जनजागरण में तीव्रता लाना जरूरी है। ईएमएस / 24 जनवरी 25