भारत के दो प्रमुख राजनीतिक दल भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के बीच उम्र व अनुभव के हिसाब से भले ही ‘‘दादा और परपौते’’ सा रिश्ता हो, क्योंकि कांग्रेस डेढ़ सौ वर्ष से भी अधिक उम्रदराज है और भारतीय जनता पार्टी महज पैंतालीस साल की, कांग्रेस का जन्म 1885 के करीब एक विदेशी ए.ओ. ह्यूम दादा माने जाते है, जब पूर्व जनसंघ की कोंख से भाजपा का जन्म 1980 में हुआ, इस प्रकार इन दोनों प्रमुख दलों में उम्र के हिसाब से एक सौ साल से भी अधिक साल का अंतर है, कांग्रेस ने देश की आजादी के बाद अर्धशताब्दी से भी अधिक समय तक राज किया और इस नई सदी के साथ ही भाजपा का सितारा चमक पाया, किंतु कांग्रेस का नेहरूवंश साथ ही उतार-चढ़ाव में रहा और आज जब नेहरू खानदान (सोनिया-राहुल) राजनीति में ‘उन्नीसे’ सिद्ध हो रहे है, तब कांग्रेस भी अस्तांचल की ओर जाती नजर आ रही है। आज वह जहां देश में दूसरे क्रम की पार्टी मानी जाती है, वही कुशल व अनुभवी नेतृत्व के अभाव में अस्तांचल की ओर जाती नजर आ रही है। अर्थात् आज भारतीय राजनीतिक परिवार का मुखिया (परदादा) ‘कांग्रेस’ नही बल्कि (परपौता) ‘भाजपा’ है और ‘परदादाजी’ धीरे-धीरे मृत्यु शैय्या की ओर कदम बढ़ाते नजर आ रहे है। वैसे भारतीय राजनीति का अब तक का उसूल ही ऐसा रहा है, कि- ‘‘जो जीता वही सिकन्दर’’ और यहां कांग्रेस ने चाहे पचास साल से भी अधिक राज किया हो, किंतु पिछली एक चैथाई शताब्दी से तो भाजपा का ही बोल बाला है, वह भी देश के विशेषकर हिन्दी भाषी राज्यों व केन्द्र में। ....और चूंकि भाजपा व उसके सहयोगी देश के एक दर्जन से अधिक राज्यों पर अपना प्रभुत्व जमाए हुए है, इसलिए आज भाजपा सिर्फ सियासी हिसाब से नही बल्कि आर्थिक दृष्टि से भी अपने ‘परदादा’ से काफी आगे है। यदि आर्थिक दृष्टि से ही देखा जाए तो आज जितना धन भाजपा के पास है, उसका दसवां हिस्सा भी कांग्रेस के पास नही है। भाजपा के पास दो हजार दो सौ चवालीस (2244) करोड की राशि सिर्फ चन्दे के रूप में उपलब्ध है, तो कांग्रेस के पास 289 करोड़ रूपए और भारतीय राजनीतिक दलों के बीच आर्थिक दृष्टि से तीसरे क्रम पर बी.आर.एस. है, जिसके पास 580 करोड़ है, देश में सबसे ‘गरीब’ राजनीतिक दल तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) है, जिसके पास मात्र 6 करोड़ रूपए है। राजनीतिक दलों के ये आर्थिक आंकड़े हाल ही में चुनाव आयोग ने जारी किए है। अर्थात् देश की सबसे धनवान पार्टी भाजपा है, जिसकों चन्दें में अन्य दलों से 212 प्रतिशत से अधिक धन चंदे के रूप में प्राप्त हुआ है। वैसे सरसरी तौर पर देखा जाए तो आर्थिक वर्ष 2023-24 में कांग्रेस व भाजपा दोनों ही दलों के ही कोष में बढ़ौत्तरी देखी गई, भाजपा को पूर्व के मुकाबलें तीन गुना अधिक राशि की आमद हुई, वहीं कांग्रेस को भी पूर्व वर्ष के मुकाबलें अधिक धनराशि मिली। सबसे आश्चर्यजनक तथ्य यह उभर कर आया है कि उत्तरप्रदेश पर कभी राज करने वाला बहुजन समाज पार्टी दल को विवादित वर्ष में केवल बीस हजार रूपए का ही चन्दा प्राप्त हो पाया, इसलिए आर्थिक दृष्टि से यह दल सबसे निचले पायदान पर है। इसी बीच मौजूदा दौर में एक यह भी सचाई सामने आई है कि समय के साथ राजनीतिक दलों का भी सितारा ऊपर-नीचे होता है, देश में जहां काग्रेस का सितारा लगातार पांच दशक तक बुलंदी पर रहा तो पिछले पच्चीस सालों से भाजपा का सितारा बुलंदी पर है, ये सब समय-समय का खेल है, जो मानव के भाग्य से राजनीति के भाग्य तक चलते रहते हैै। आज जहां सबसे धनवान सत्तारूढ़ दल अपने प्रमुख प्रतिपक्षी दल के कोष पर खर्च करने की पाबंदी लगाने पर आमादा है, तो स्वयं चुनावों के दौरान ‘धन की गंगा’ प्रवाहित कर रहा है। अब ऐसी स्थिति में देश के राजनीतिक भविष्य की कल्पना कैसे की जा सकती है? सब समय-समय की बात है। ईएमएस / 24 जनवरी 25