(पुण्य तिथि पर विशेष ) राजमाता विजया राजे सिंधिया का जन्म 12 अक्टूबर 1919 को उनकी ननिहाल सागर में हुआ था। उनके पिता महेंद्र सिंह जालौन के डिप्टी कलेक्टर हुआ करते थे।वे अपने पिता की सबसे बड़ी संतान थी।दरअसल में उनके जन्म के 9 दिन पश्चात ही उनकी मां चूड़ा देवेश्वरी का सन्निपात ज्वर के कारण देहांत हो गया था।ऐसी विषम परिस्थिति में लेखा दिव्येश्वरी का बाल्यकाल ननिहाल में ही गुजरा।यहीं पर उनकी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा हुई।बाल्यकाल में इनका नाम लेखा था। इनका उक्त नाम इनकी नानी धन कुमारी ने रखा था। हालांकि उन्होंने कभी भी इस नाम से इन्हें संबोधित नहीं किया और न ही परिवार के किसी सदस्य ने इस नाम से उन्हें कभी पुकारा।नानी हमेशा लेखा दिव्येश्वरी को नानी कहकर ही पुकारती रही। नेपाल की भाषा की लोकभाषा में नानी का अर्थ होता है आंख की पुतली लेखा दिव्येश्वरी को नानी कहकर पुकारने के पीछे नाना नानी का यही अभिप्राय था।इनकी मां का देहांत होने के पश्चात लेखा दिव्येश्वरी का लालन-पालन नाना -नानी की देखरेख में इनकी ननिहाल सागर में हुआ। सागर के नेपाल हाउस में रहकर उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण की। हालांकि लेखा दिव्येश्वरी कि मां चूड़ा दिव्येश्वरी के देहांत के पश्चात उनके पिता ने उन्हें अपने साथ जालौन ले जाने कि इच्छा जाहिर की।लेकिन इनके नाना-नानी इसके लिए कतई राजी नही हुए। इस बात को लेकर कोर्ट कचहरी तक की नौबत आ गई। अंततः आपसी सहमति से यह तय हुआ कि ये 7 साल की होने तक नाना- नानी की देखरेख में सागर में ही रहेगी। लेकिन दुर्भाग्यवश से जब लेखा महज 2 वर्ष की थी तभी नाना का देहांत हो गया। लेखा दिव्येश्वरी की नानी धनकुमारी धार्मिक आस्थाओं से ओतप्रोत एक सौम्य व सरल महिला थी। इस कारण लेखा का लालन-पालन धार्मिक वातावरण में हुआ।उन्होंने बाल्यकाल से ही लेखा दिव्येश्वरी को यही संस्कार दिए। नानी के संस्कारों में दीक्षित होकर वे उन्हीं की तरह धर्म प्राण बन गई यद्यपि लेखा दिव्येश्वरी नानी जितने व्रत तो नहीं किया करती थी। लेकिन चतुर्मास में शाकाहारी भोजन करने लगती थी। मैट्रिक की परीक्षा पास करने के पश्चात लेखा दिव्येश्वरी ने बनारस के बेसेट कॉलेज में दाखिला लिया।जहां सादा जीवन उच्च विचार का उसूल अमल में लाया जाता था।यहां से प्रेरित होकर उन्होंने फ्रांस और इटालियन से आयातित कपड़ों को सदैव के लिए अलविदा कह दिया। जब लेखा दिव्येश्वरी के पिता का झांसी से मिर्जापुर स्थानांतरण हो गया तो उन्होंने लेखा दिव्येश्वरी का दाखिला आजमा बेला थाबर्न महिला कॉलेज लखनऊ में करा दिया।लेकिन वे यहां से बी ए की परीक्षा उत्तीर्ण नहीं कर सकी क्योंकि ननिहाल और घर में उनके विवाह की तैयारियां शुरू हो जाने के कारण उन्हें पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी। नेपाल हाउस सागर में पली-बढ़ी लेखा दिव्येश्वरी का विवाह 21 फरवरी 1941 को मराठा रीति रिवाज से ग्वालियर रियासत के अंतिम शासक जीवाजी राव सिंधिया के साथ सरस्वती महल में संपन्न हुआ। हालांकि इनके विवाह का सिंधिया रियासत के मराठा सरदारों ने काफी विरोध किया लेकिन जीवाजी राव सिंधिया ने विरोध की कतई परवाह नहीं की। शादी के पश्चात् वे सिंधिया राजघराने की परंपरा के अनुसार लेखा दिव्येश्वरी से महारानी विजया राजे सिंधिया के नाम से मशहूर हुई। शादी के पश्चात उन्होंने 5 बच्चों को जन्म दिया। 23 फरवरी 1942 को उन्होंने पहली पुत्री पद्मा राजे को जन्म दिया 31 अक्टूबर 1943 को उषा राजे और 10 मार्च 1945 को माधवराव सिंधिया को जन्म दिया इसके पश्चात 1953 में वसुंधरा राजे और 1954 में यशोधरा जी को जन्म दिया। राजमाता विजया राजे सिंधिया के पति जीवाजी राव सिंधिया कांग्रेस के कटु आलोचक थे। राजमाता सिंधिया कैलाश वासी पति जीवाजी राव सिंधिया ने भारत संघ में ग्वालियर राज्य का विलय करते समय चौवन करोड़ रुपए की विपुल धनराशि का कोष सरदार बल्लभभाई पटेल को सौंपा था।ग्वालियर में उस दौर में हिंदू महासभा का काफी बोलबाला था।स्थानीय कांग्रेसी इस बात से काफी घबराए हुए थे कि ग्वालियर के महाराज कहीं प्रतिपक्ष के उम्मीदवार को चुनाव में अपना समर्थन न दे दे। आखिरकार राजमाता विजया राजे सिंधिया ने जवाहरलाल नेहरू के दवाब में 1957 में कांग्रेस से अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत की। गुना संसदीय क्षेत्र से नामांकन पर्चा दाखिल कर उन्होंने अखिल भारतीय हिंदू महासभा के अध्यक्ष बी जी देश पांडे को पराजित किया। हालांकि गुना से लगी हुई दोनों सीटें पर हिंदू महासभा के उम्मीदवार ने जीत हासिल की। यह इस बात का प्रमाण है कि यदि राजमाता विजय राजे सिंधिया कांग्रेस की उम्मीदवार न होती तो कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया होता। राजमाता सिंधिया ने हिंदू महासभा को कमजोर करने के लिए पूरी ताकत झोंक दी हालांकि आगामी सालों में इस क्षति की पूर्ति करने के लिए काफी परिश्रम करना पड़ा। एक दौर ऐसा भी आया कि जब वे राजनीति को पीछे छोड़ अपने पति और बेटे बेटियो में मगन हो गई। इसी दौरान उनके पति की डायबिटीज में इजाफा हो गया और दुर्भाग्य से महज 45 वर्ष की आयु में 9 जून 1961 को उनका मुंबई में देहावसान हो गया।जिस वक्त उनके पति जीवाजी राव सिंधिया का निधन हुआ उनके इकलौते पुत्र माधवराव की उम्र महज 16 वर्ष की थी। पति के निधन के पश्चात वे महारानी से राजमाता बन स्वेत परिधान में विधवा का जीवन बिताने लगी। उन्होंने अपनी तमाम सारी इच्छाओं को तिलांजलि देकर धर्म को ही अपना ध्येय बनाया।हालांकि जब परिस्थितियों ने मोड़ लिया तो वे बिना किसी हिचकिचाहट के राजनीति के महासमर में कूद पड़ी और अपना अधिकांश वक्त राजनीति को देने लगी।लेकिन धार्मिक कार्य पूजा-पाठ में कोई कमी नहीं आई। इसी बीच मध्य प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ कैलाश नाथ काटजू पंडित जवाहरलाल नेहरू का संदेश लेकर राजमाता के पास आए कि वे देश सेवा में पूर्ववत जुटी रहे। आप की सहूलियत के लिए आपका निर्वाचन क्षेत्र गुना से बदलकर ग्वालियर कर दिया गया है। नेहरू जी के द्बारा। राजमाता विजयाराजे सिंधिया स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारतीय राजनीति में सक्रिय हो गई थी वर्ष 1957 में दूसरी लोकसभा के लिए सांसद चुनी गई थी वर्ष 1962, 1971, 1989 एवं1991 में आप पुनः सांसद चुनी गई राजमाता तीसरी।पांचवीं। नौवीं एवं दसवीं लोकसभा के लिए सांसद के रूप में चुनी गई थी। वर्ष 1967 में आप मध्यप्रदेश विधानसभा की सदस्य भी रही एवं वर्ष 1978 में राज्यसभा सांसद रही।वही राजमाता विजयाराजे सिंधिया के पुत्र माधवराव सिंधिया भी केंद्र सरकार में अनेक महत्वपूर्ण विभागों में मंत्री रहे।इसी क्रम में उनकी एक बेटी वसुंधरा राजे सिंधिया राजस्थान की दो मर्तबा मुख्यमंत्री और केंद्र सरकार में भी मंत्री रह चुकी है इसी तरह उनकी एक बेटी यशोधरा राजे सिंधिया वर्तमान में प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री के पद पर असीन है इसी तरह उनका नाती ज्योतिरादित्य सिंधिया केंद्र सरकार में संचार और पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्री का दायित्व संभाल रहे हैं। राजमाता जी जीवन की अंतिम श्वास तक अपने सत्याचरण देशभक्ति तथा आत्मत्याग के पथ पर चली।वे इन विषयों पर सिर्फ उपदेश ही नहीं दिया करती थी अपितु यही उनका आचरण और व्यवहार था। 25 जनवरी 2001 को सभी को शोक विव्हल छोड़कर चली गई। निसंदेह राजमाता विजया राजे जी कितनी महान थी। यह उनके निधन के बाद पश्चात ही उनके चाहने वालों को ज्ञात हो पाया इस दुनिया में नहीं है लेकिन युगों-युगों तक लोगों को उनकी याद आती रहेगी।इस अप्रतिम नेत्री का राजनीति में योगदान भी सदैव स्मरण रखा जाएगा। (मुकेश तिवारी स्वतंत्र पत्रकार हैं) ईएमएस / 24 जनवरी 25