कुछ दिन पहले एक उद्योगपति ने अपने मुखारविंद से कहा था कि कर्मचारियों को सत्तर घंटे काम करना चाहिए। उसके कुछ दिन बाद एलएनटी के अध्यक्ष एस एन सुब्रमण्यम जी ने एक बात कह दी कि नहीं नहीं सत्तर घंटे में क्या होगा कर्मचारियों को कम से कम नब्बे घंटे काम करना चाहिए जैसे मैं करता हूं मैं भी तो आखिर इंसान हूं मैं जब नब्बे घंटे काम कर सकता हूं तो फिर कर्मचारियों को क्या परेशानी है। अब इन सुब्रमण्यम भाई साहब को कौन समझाए कि हुजूर आप इतनी बड़ी कंपनी के चेयरमैन हो आपकी ना तो कोई अटेंडेंस लगती है, ना कोई आपके ऊपर बॉस है, जब मर्जी आई ऑफिस आ गए जब मर्जी आई एसी कार में बैठे और घर निकल गए ,किसकी औकात है जो आपसे पूछे कि आपने पचास घंटे काम किया कि नब्बे घंटे, लेकिन कर्मचारियों के सर पर तो उनके बॉस की निगाह रहती है।,सरकारी विभागों की बात अलग है कि जहां दस बजे की ड्यूटी है तो कर्मचारी बारह बजे आ रहा है फिर एक बजे चाय पीने निकल जाता है दो बजे लंच कर लेता है तीन बजे तक गप्पे मारता है और चार बजे अपनी गाड़ी उठाकर घर निकल जाता है, लेकिन प्राइवेट में ऐसा थोड़ी है अगर आधे घंटे का लंच है तो फिर आधे घंटे में ही लंच करना पड़ेगा चाहे पेट भरे या ना भरे।इधर डॉक्टर और मनोचिकित्सक कह रहे हैं कि अगर पचपन घंटे से ज्यादा काम इंसान करता है तो उसको हार्ट की बीमारी हो सकती है, उसका मानसिक स्वास्थ्य खराब हो सकता है, हार्ट फेल का परसेंटेज बढ़ सकता है अब कर्मचारी अपने चेयरमैन की सुने या फिर चिकित्सकों की, डॉक्टर ये भी कहते हैं कि सात से आठ घंटे की नींद इंसान के लिए जरूरी है। आठ घंटे आदमी सोएगा फिर उठेगा तो ब्रश करेगा फ्रेश होगा, नहाएगा, तैयार होगा, खाना खाएगा फिर ऑफिस पहुंचेगा ,शाम को घर आएगा तो नाश्ता करेगा, फिर खाना खाएगा,बीबी कहेगी तो बाजार जाना पड़ेगा, फिल्म दिखाने की फरमाइश होगी तो उसे पूरा करेगा, नाते रिश्तेदारों से भी मिलने कभी कभी जान पड़ेगा, किसी की मौत मिट्टी में भी जाना पड़ सकता है तो उसके पास बचते ही कितने घंटे हैं लेकिन चेयरमैन साहेब तो ये भी कह रहे हैं कि कर्मचारी घर में रहेगा तो कितने घंटे कितनी देर बीवी को निहारेगा? हुजूरेआला बीवी को नहीं निहारेगा तो खाना कौन देगा, और फिर जिनकी नई शादी हुई है उसके लिए तो बीवी को निहारना बहुत जरूरी है शायद इसलिए महिंद्रा कंपनी के अध्यक्ष ने कह दिया कि मैं तो पूरे रविवार अपनी पत्नी को ही निहारता रहता हूं। अपने को तो लगता है कि अगर सुब्रमण्यम साहब की बात पर कर्मचारी यकीन कर ले और नब्बे घंटे काम करने लगे तो कुछ दिन में ना कहो घर के लोगों को ही ना पहचान पाएं हालात ये हो जायेंगे कि किसी दिन बाजार में अगर उनकी पत्नी उन्हें मिल जाए तो वो कहने लगें बहन जी आपको कहीं देखा है और पत्नी का भी उत्तर यही होगा कि हां भाई साहब मुझे भी आप कुछ पहचाने से लग रहे हैं आनंद तो वही उठा रहे हैं मध्य प्रदेश सरकार ने कुछ समय पहले एक आनंद विभाग बनाया था इस आनंद विभाग का उद्देश्य केवल इतना था कि समाज में लोगों में खुशी और सकारात्मकता बढ़े, जनता आनंद उठाए ,लेकिन जो हालात हैं उसको देखकर लग रहा है कि जनता तो हलाकान है आनंद अगर कोई उठा रहा है तो वो आनंद विभाग में तैनात अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और कर्मचारी, क्योंकि उनके पास धेले भर का काम नहीं है लेकिन हर महीने लाखों रुपए की तनख्वाह ठाठ से ले रहे हैं। अब जिनके पास कोई काम नहीं है और उसके बावजूद उन्हें अगर लाखों रुपए तनख्वाह के रूप में मिल रहे हैं तो इससे ज्यादा आनंद किसी भी इंसान को और क्या हो सकता है। पता लगा है कि इस विभाग में तीस कर्मचारी हैं लेकिन उनके पास कोई काम नहीं है ना तो उन्होंने आज तक ये सोचा है कि जनता को कैसे आनंद दें ना कभी इस बात पर विचार किया कि आखिर आनंद लोगों को आए तो आए कैसे, और फिर उन्हें इस बात की चिंता भी नहीं है आजकल तो इंसान अपनी सोचता है दूसरा भाड़ में जाए उससे अपना क्या लेना देना, शायद यही उद्देश्य लेकर आनंद विभाग के कर्ताधर्ता और कर्मचारी खुद के लिए आनंद उठाने में लगे हुए हैं, बाकी किसी को आनंद आए ना आए अपने ठेंगे से। वैसे भी आजकल आनंद सिर्फ नाम का रह गया है जिन लोगों का नाम भी आनंद है उनसे पूछो कि वे कितने कष्ट में है, महंगाई की मार है, बेरोजगारी चरम पर है, टैक्स पर टैक्स सरकार लगाए पड़ी है कहा तो गया था कि जीएसटी लगने के बाद एक ही टैक्स लगेगा यहां तो जीएसटी के ही कई रूप है एक केंद्रीय जीएसटी है तो दूसरी स्टेट जीएसटी है अब ऐसी परेशानियों के बीच कोई भी इंसान कैसे आनंद उठा सकता है, लेकिन सरकार को भी इन सब चीजों से क्या लेना देना है उसका साफ कहना है कि हमने आनंद विभाग बना दिया है अब तुम आनंद उठाना है तो उठाओ वरना जैसी परेशानी में जी रहे हो जीते रहो। सारे ठेकेदार इंजीनियर अंदर हो जाएंगे केंद्रीय केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी जी बीच-बीच में कुछ ऐसी बात बोल देते हैं जो अखबारों की सुर्खियां बन जाती है हाल ही में उनका एक बयान सामने आया है जिसमें उन्होंने कहा है कि खराब सड़क निर्माण को गैर जमानती अपराध बनाना चाहिए और जो भी ठेकेदार और इंजीनियर उस सड़क के लिए जिम्मेदार हैं उन सबको जेल भेजना चाहिए। वैसे बहुत ठीक कह रहे हैं गडकरी जी, लेकिन अगर उनकी इस बात पर यकीन कर लिया सरकार ने और ऐसा नियम बना दिया तो लगता है कि जिस संस्था पर सड़क बनाने का जिम्मा है उसमें बैठे तमाम अफसर और ठेकेदार अंदर हो जाएंगे ढूंढने पर भी एक ठेकेदार और अफसर नहीं मिलेगा जो उस डिपार्टमेंट में बच जाए। क्योंकि करोड़ों की सड़कों में घपलेबाजी होती है जिन सड़कों को बीस साल चलना चाहिए वे बीस महीने में ही अपनी असली औकात दिखा देती हैं। ठेकेदार बनाकर चला जाता है, अफसर कमीशन लेकर आराम की नींद में सो जाते हैं बचती है जनता तो वो गढ्ढों में धक्के खाते हुए लुढ़कती अपने गंतव्य तक पहुंच जाती है भले ही रास्ते भर वो सड़क बनाने वालों को गाली दे लेकिन उससे कुछ होता जाता नहीं है। गडकरी जी अगर वास्तव में सड़क निर्माण में गुणवत्ता चाहते हैं तो अपनी सरकार से पूरी पूरी ताकत लगाकर यह कहें कि गैर जमानती अपराध होना चाहिए, हो सकता है सरकार उनकी बात मान ले और इसे गैर जमानती अपराध बना दे लेकिन ऐसा लगता नहीं है क्योंकि सारी नीतियां तो अफसर ही बनाते हैं और अफसर कभी नहीं चाहेंगे कि कोई ऐसा कानून बनाया जाए जिससे उनके कमीशन पर आंच आए। सुपरहिट ऑफ़ द वीक आइने के सामने खड़ी श्रीमती ने श्रीमान जी से पूछा मैं बहुत ज्यादा मोटी लग रही हूं क्या? झगड़ा न हो जाये, सोचकर श्रीमान जी मुस्कुराकर बोले अरे नहीं, बिल्कुल भी नहीं। श्रीमती जी खुश होकर बोली ठीक है, तो फिर मुझे अपनी बाहों में उठाकर फ्रिज तक ले चलो, मुझे आइसक्रीम खानी है। सिचयूशेन को कंट्रोल के बाहर जाता देख श्रीमान जी बोले जानेमन, तुम यहीं रुको,मैं फ्रिज लेकर आता हूं। ईएमएस / 21 जनवरी 25