राष्ट्रीय
21-Jan-2025
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नई दिल्ली (ईएमएस)। भारत में बिकने वाली करीब 25 प्रतिशत दवाइयां नकली पाई जाती हैं। इन दवाओं को फर्जी कंपनियां प्रतिष्ठित ब्रांड्स के लेबल की नकल करके बाजार में बेच रही हैं, जिससे न केवल लोगों का स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है, बल्कि यह जानलेवा भी साबित हो सकता है। सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन की एक रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है कि आमतौर पर इस्तेमाल होने वाली 53 दवाइयों के सैंपल लैब टेस्ट में फेल हो चुके हैं। इन दवाओं में बुखार की दवा पैरासिटामोल, दर्द निवारक डिक्लोफेनेक, एंटीफंगल फ्लुकोनाजोल, विटामिन डी सप्लीमेंट, और बीपी व डायबिटीज की दवाएं शामिल हैं। नकली दवाओं में सक्रिय तत्व या तो होते ही नहीं हैं या गलत मात्रा में मिलाए जाते हैं, जिससे यह दवाएं रोगी को किसी भी तरह का लाभ पहुंचाने में विफल रहती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि नकली दवाओं का वैश्विक कारोबार 200 बिलियन डॉलर से अधिक है। इन दवाओं का उपयोग संक्रमणों के इलाज में असफल साबित हो सकता है और इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है। इसके अलावा, कई मामलों में इन दवाओं का सेवन करने से गंभीर दुष्प्रभाव होते हैं, जो कभी-कभी जानलेवा भी हो सकते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि नकली दवाएं केवल स्वास्थ्य को ही नहीं, बल्कि आर्थिक दृष्टि से भी समाज को गंभीर नुकसान पहुंचाती हैं। इन्हें रोकने के लिए सरकार को सख्त कदम उठाने की जरूरत है। नकली दवाओं की पहचान करना मुश्किल हो सकता है, लेकिन कुछ संकेत मददगार हो सकते हैं। असली दवाओं की पैकेजिंग उच्च गुणवत्ता की होती है, जबकि नकली दवाओं की पैकेजिंग में अक्सर स्पेलिंग मिस्टेक, धुंधली प्रिंटिंग या खराब सामग्री का इस्तेमाल होता है। इसके अलावा, कई कंपनियां अपनी दवाओं पर क्यूआर कोड या होलोग्राम लगाती हैं, जिसे स्कैन करके दवा की प्रामाणिकता की जांच की जा सकती है। अगर दवा लेने के बाद असर न हो या अचानक दुष्प्रभाव दिखने लगें, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। आधुनिक दौर में नकली उत्पादों की समस्या केवल खाद्य सामग्री तक सीमित नहीं रही, अब दवाइयों में भी मिलावट का संकट गहराता जा रहा है। सुदामा/ईएमएस 21 जनवरी 2025